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    उत्तर प्रदेश की राजनीति में ताल ठोंक रहा बिरादरी का बल, एकजुटता के प्रयासों के हैं कई मायने

    Updated: Fri, 19 Sep 2025 06:48 PM (IST)

    वर्ष 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में जाति आधारित रैलियों के खिलाफ याचिका दायर हुई जिस पर दलों ने जवाब नहीं दिया। अब फिर सुनवाई शुरू हुई है। राजनीतिक दलों ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। सपा पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) की एकजुटता पर काम कर रही है तो भाजपा खेमे के नेता भी जोर दिखा रहे हैं।

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    जातीय समूह का राजनीतिक दलों पर अप्रत्यक्ष दबाव।

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। वर्ष 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई थी कि राजनीतिक दलों को जाति आधारित रैलियों से रोका जाए, अन्यथा उनका पंजीयन रद हो। न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण याचिका पर सभी दलों को नोटिस जारी किया, लेकिन किसी दल ने जवाब नहीं दिया।

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    अब फिर उस मामले में सुनवाई शुरू हुई है, लेकिन इन प्रयासों की परिणति फिलहाल तो अनिश्चितता के धुंधलके में ही घिरी दिखाई देती है, क्योंकि दलों का सहारा लेकर जातीय विषबेल ने समाज में इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि जातीय समूह राजनीतिक दलों पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने के लिए मैदान में आ चुके हैं।

    राजनीतिक दलों ने शुरू की तैयारी

    ताजा घटनाक्रम सामने है कि किस तरह दलों से आगे बढ़कर अलग-अलग पार्टियों से जुड़े नेता सामाजिक संगठनों की आड़ में बिरादरी का बल दिखाकर सत्ता और सियासत में मनचाही भागीदारी के लिए ताल ठोंक रहे हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव वर्ष 2027 में होने हैं। इसके लिए राजनीतिक दलों ने संगठनात्मक मजबूती के लिए तैयारी शुरू की है तो जातीय डोर के सहारे राजनीतिक सुख के पालने में झूल रहे नेताओं ने भी अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है।

    क्या हुआ जो किसी नेता के मुंह से खुलकर मोलभाव की बात सामने नहीं आई। क्या हुआ जो खुलकर किसी नेता ने अपने दल को स्पष्ट चेतावनी नहीं दी कि उनकी जाति की अनदेखी न की जाए, लेकिन जिस तरह के आयोजन हुए हैं, उनका संदेश राजनीतिक जानकार अवश्य समझ रहे हैं।

    किस पार्टी की क्या है तैयारी?

    जैसे कि संगठन के रूप में सपा बेशक पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) की एकजुटता के फार्मूले पर काम कर रही है, लेकिन उसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी गुर्जर बिरादरी की ताकत जुटाने पर आमादा हैं। अब तक उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर गुर्जर सम्मेलन हो चुके हैं और बाकी अभी होने हैं। यह राजनीतिक दल समझें कि यह संदेश किसके लिए है कि प्रदेश की करीब 130 विधानसभा सीटों पर गुर्जर मतदाताओं के प्रभाव का दावा किया जा रहा है।

    ऐसे ही जोर भाजपा खेमे के नेता भी दिखा रहे हैं। लखनऊ के एक पांच सितारा होटल में अगस्त में हुई 40 क्षत्रिय विधायकों की कुटुंब बैठक चर्चा में है। बताया गया है कि एक भाजपा नेता ने कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई, जिसमें न सिर्फ भाजपा, बल्कि सपा के दो बाकी क्षत्रिय विधायक शामिल हुए और सूत्रों के अनुसार क्षत्रिय नेताओं का एक वाट्सएप ग्रुप बनाया गया है, जिसमें अन्य दलों के भी क्षत्रिय नेता जोड़े गए हैं।

    इसी तरह आंवला में प्रदेश सरकार के मंत्री धर्मपाल सिंह ने लोध सम्मेलन किया, जिसमें मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, सांसद साक्षी महाराज, पूर्व सांसद राजवीर सिंह, मुकेश राजपूत सहित अन्य सजातीय नेताओं ने मंच सजाया।

    लखनऊ में ही कुर्मी समाज का एक सम्मेलन सरदार पटेल बौद्धिक मंच के बैनर तले हुआ, जिसमें प्रदेश सरकार में मंत्री अपना दल एस के कार्यकारी अध्यक्ष आशीष पटेल शामिल हुए। बताया जाता है कि आयोजन के मेजबान भाजपा के सजातीय नेताओं के बहुत घनिष्ठ हैं। इन आयोजनों के यही निहितार्थ निकाले जा रहे हैं कि टिकट बंटवारे में राजनीतिक दल इन बिरादरियों के नेताओं की अनदेखी न कर सकें, इसके लिए ही चुनाव के इतने पहले से ही इस तरह एकजुट ताकत दिखाने का प्रयास है।

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