चुनाव तारीखों का एलान, लेकिन सीट बंटवारे पर अब भी नहीं बन पा रही सहमति; क्या फंस रहा है पेच?
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। राजग में लोजपा प्रमुख चिराग पासवान सीटों की संख्या को लेकर अड़े हैं जिससे भाजपा और जदयू के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। वहीं महागठबंधन में मुकेश सहनी की मांगों और कांग्रेस की अधिक सीटों की चाहत से मामला फंसा हुआ है।

अरविंद शर्मा, जागरण, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, मगर सियासी मोर्चों पर अभी भी सीट बंटवारे का संग्राम थमा नहीं है। न तो सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और न ही विपक्षी महागठबंधन के भीतर हिस्सेदारी का फॉर्मूला पूरी तरह तय हो सका है।
दोनों खेमों में घटक दलों की खींचतान इस कदर बढ़ चुकी है कि उम्मीदवारों की घोषणा टलती जा रही है। बड़े दलों के बीच परस्पर सहमति भले बन गई हो, पर छोटे सहयोगी अब भी ' बड़ी हिस्सेदारी' की जिद पर अड़े हैं।
राजग में चिराग बने सबसे बड़ा पेच
राजग में भाजपा-जदयू के बीच लगभग सहमति बन चुकी है। दोनों दल सौ-सौ सीटों से अधिक पर लड़ने को तैयार हैं। लोकसभा चुनाव में तय शर्तों के मुताबिक विधानसभा चुनाव में जदयू बड़े भाई की भूमिका में रहेगा। लेकिन बड़ी मुश्किल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान को लेकर है। पिछली विधानसभा में रणनीति के तहत गठबंधन से अलग होकर उन्होंने चुनाव लड़ा था।
भाजपा को छोड़ दिया था और जदयू के हिस्से की सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। अब राजग में लौटने के बाद वह सांसदों की संख्या के अनुपात में विधानसभा की सीटें लेने पर अड़े हैं। उनके छह सांसद हैं और तर्क है कि प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं, इस हिसाब से उन्हें कम से कम 30 सीटें चाहिए।
धर्मेंद्र प्रधान दिल्ली लौटे
भाजपा 20-22 सीटों से अधिक देने के पक्ष में नहीं है, जबकि जदयू को डर है कि चिराग को ज्यादा सीटें मिलीं तो उसके पारंपरिक समीकरण बिगड़ जाएंगे। जदयू पहले ही यह साफ कर चुका है कि गठबंधन में किसी को हावी नहीं होने दिया जाएगा।
भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान सोमवार देर रात पटना से दिल्ली लौट आए हैं और मंगलवार को चिराग से बैठक कर समाधान की कोशिश करेंगे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का दावा है कि जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को मना लिया गया है, मगर अंतिम फैसला चिराग के रुख पर टिका है।
महागठबंधन में सहनी का पेच और कांग्रेस की कशमकश
महागठबंधन में भी स्थिति कम जटिल नहीं है। राजद-कांग्रेस के बीच पहले से तनातनी थी, अब विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) प्रमुख मुकेश सहनी ने नई पेच डाल दी है। 2020 में भाजपा की पहल पर वीआइपी को राजग में 11 सीटें मिली थीं और उसने चार पर जीत दर्ज की थी। बाद में उनके अधिकांश विधायक भाजपा में चले गए। इस बार सहनी राजद के साथ हैं। मांग का दायरा भी बड़ा हो गया है।
सहनी की जिद न केवल राजद-कांग्रेस समीकरण को प्रभावित कर रही है, बल्कि वामदलों की हिस्सेदारी भी अधर में डाल रही है। वामदल को भी 35 से ज्यादा सीटें चाहिए। कांग्रेस भी पिछली बार मिली 'कमजोर सीटों' से सबक लेते हुए जीत की संभावना वाली सीटें चाहती है। कांग्रेस 60 सीटों से कम पर समझौता नहीं चाहती। राजद ने कम के लिए दबाव बना रखा है। साझेदारी पर अब भी पर्दा है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।