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    बिहार में जातीय दांव और SIR का मुद्दा फेल, यूपी विधानसभा चुनाव से पहले क्या होगी I.N.D.I गठबंधन की रणनीति?

    By JITENDRA SHARMAEdited By: Prince Gourh
    Updated: Sat, 15 Nov 2025 09:00 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनावों में सीधा संबंध न होते हुए भी, बिहार के नतीजे यूपी में मिशन 2027 की तैयारी कर रहे दलों के लिए सबक हैं। बिहार में महागठबंधन के मुद्दे निष्प्रभावी रहे, जिससे सपा की चिंता बढ़ सकती है। राजग ने 'जंगलराज' के मुद्दे को उठाकर सफलता पाई, वही रणनीति भाजपा यूपी में अपना रही है। गठबंधन दलों में बेहतर तालमेल राजग की जीत का कारण रहा।

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    बिहार में जातीय दांव और SIR का मुद्दा फेल (फाइल फोटो)

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। प्रत्यक्ष तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार के विधानसभा चुनाव का कोई संबंध नहीं है, लेकिन इन दोनों राज्यों में प्रभावी दलों की ताकत-कमजोरी और राजनीतिक परिस्थितियों को देखें तो बिहार के चुनाव परिणाम उत्तर प्रदेश में मिशन-2027 की तैयारियों जुटी पार्टियों को स्पष्ट सीख-सबक दे सकते हैं।

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    असल चिंता मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी के लिए हो सकती है, क्योंकि बिहार में उनके गठबंधन सहयोगियों के वही मुद्दे पूरी तरह निष्तेज हो गए हैं, जिनके भरोसे यूपी में दंगल में ताल ठोंकने की तैयारी है। कांग्रेस की प्राथमिकता में एसआइआर है, जिसका कोई असर नहीं दिखा।

    2027 में होंगे यूपी में चुनाव

    इसी तरह एनडीए के तरकश से निकले जंगलराज और भ्रष्टाचार के आरोपों के पैने तीर से वहां राजद को 'एमवाई' की ढाल नहीं बचा सकी तो सपा के 'पीडीए' को लेकर संशय स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए वर्ष 2027 में चुनाव होने हैं। उससे पहले सामने आए बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए कुछ संदेश छोड़े हैं।

    दरअसल, दोनों राज्यों में इन दोनों खेमों की ताकत और कमजोरी में काफी समानता है। जिस तरह बिहार में राजग ने मुख्य विपक्षी राजद के विरुद्ध जंगलराज को मुद्दा बनाया, ठीक उसी तरह कठघरे में उत्तर प्रदेश में सपा को खड़ा किया जाता है। अपराधियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का संदेश देने के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित पूरी भाजपा सपा शासनकाल का दौर याद दिलाना नहीं भूलते।

    यूपी में 'बुलडोजर बाबा' का दमखम

    ऐसे में राजग खेमा आश्वस्त हो सकता है कि सत्ता विरोधी लहर अब मिथक हो चली है। मोदी मैजिक के साथ वहां 'सुशासन बाबू' का चेहरा था तो यहां 'बुलडोजर बाबा' की धमक है। इनके विरुद्ध भ्रष्टाचार भी मुद्दा नहीं बना, जबकि दोनों राज्यों में पूर्ववर्ती सरकारें इस मामले में भी साफ्ट टारगेट हैं।

    अब विपक्ष के पास बचती है जातीय समीकरण की ताकत। जिस तरह राजद को पहले मुस्लिम-यादव समीकरण से ताकत मिलती रही, उसी तरह यूपी में सपा का आधार मुस्लिम-यादव (एमवाई) गठजोड़ रहा है। चूंकि, भाजपा की पकड़ सवर्णों के साथ ही दलितों-पिछड़ों पर मजबूत हुई है तो इसका सामना सिर्फ एमवाई से नहीं हो सकता।

    इसे देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक फार्मूले पर बेहतर काम किया, जिसका लाभ उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में मिला। मगर, भाजपा कल्याणकारी योजनाओं के सहारे इस वर्ग पर लगातार मेहनत कर रही है। ऐसे में अखिलेश के पीडीए दांव की कड़ी परीक्षा होनी है। हां, बिहार में कांग्रेस के बेहद लचर प्रदर्शन के बाद सपा यूपी में कांग्रेस पर कितना भरोसा जताएगी, इस पर भी निगाहें होंगी।

    NDA में दिखी बेहतर तालमेल

    वहीं, सत्ताधारी गुट को भी बिहार से इसे भी सबक मिला होगा। वहां राजग की जीत का बड़ा कारण गठबंधन दलों के बीच बेहतर तालमेल भी माना जा रहा है। ऐसे में भाजपा के सामने यहां सुभासपा और अपना दल (एस) जैसे दलों के साथ समन्वय बनाए रखने की चुनौती होगी, जिनके अनपेक्षित स्वर अक्सर सुनाई दे जाते हैं। बीते दिनों राष्ट्रीय लोकदल के कुछ नेताओं से भी गरम बहस हो चुकी है।

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