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    बिहार चुनाव: महागठबंधन में ओवैसी की पार्टी को नहीं मिलेगी जगह, लालू को सता रहा मुस्लिम वोट बंटने का डर

    By ARVIND SHARMAEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Sat, 21 Jun 2025 10:05 PM (IST)

    सीमांचल के चार जिले अररिया, कटिहार, पूर्णिया एवं किशनगंज को मुस्लिम बहुल माना जाता है, जहां पिछले चुनाव में ओवैसी को अच्छी सफलता मिली थी। इसे देखते हुए महागठबंधन की ओर से भी ओवैसी के लिए दरवाजा खुलने की उम्मीदें जगी। लेकिन अब खबर है कि ओवैसी की पार्टी को इसमें जगह नहीं मिलेगी।

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    खबरें है कि लालू अपने वोट बैंक में सेंधमारी का जोखिम नहीं लेना चाहते (फोटो: पीटीआई)

    अरविंद शर्मा, जागरण, नई दिल्ली। पहलगाम पर आतंकी हमले के बाद राष्ट्रभक्तों की पहली पंक्ति में खड़े होने वाले असदुद्दीन ओवैसी के लिए बिहार से अच्छी खबर नहीं है। विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में ऑल इंडिया मजलिसे-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआएमआइएम) को जगह नहीं मिलने जा रही है।

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    राजद प्रमुख लालू प्रसाद नहीं चाहते हैं कि उनके मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण में ओवैसी की पार्टी भी भागीदार बन जाए। तालमेल होने की स्थिति में ओवैसी को कम से कम वैसी 10-12 सीटें देनी पड़ेंगी, जहां मुस्लिम वोटरों की अधिकता है और लालू अपने वोट बैंक में सेंधमारी का जोखिम नहीं लेना चाहते। इससे ओवैसी पर भाजपा की बी-टीम का लगा दाग भी धुल जाता, जो राजद के लिए मुसीबत से कम नहीं होगा।

    पिछले चुनाव में मिली थी सफलता

    एआईएमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने तीन सप्ताह पहले भाजपा विरोधी सभी दलों से एकजुट होने की अपील की थी, जिसके बाद नए समीकरण की संभावनाओं पर बात होने लगी। सीमांचल के चार जिले अररिया, कटिहार, पूर्णिया एवं किशनगंज को मुस्लिम बहुल माना जाता है, जहां पिछले चुनाव में ओवैसी को अच्छी सफलता मिली थी। इसे देखते हुए महागठबंधन की ओर से भी ओवैसी के लिए दरवाजा खुलने की उम्मीदें जगी।

    हालांकि ईमान के बयान के बाद भी महागठबंधन की ओर से इसके लिए कोई बेताबी नहीं दिखाई गई, जिसके बाद ओवैसी भी अपने ट्रैक पर लौट आए। ओवैसी की पार्टी बिहार में अभी लगभग सौ सीटों पर तैयारी कर रही है। ईमान कहते हैं कि अगर गठबंधन हुआ तो ठीक नहीं तो अपने स्तर पर चुनाव लड़ेंगे। प्राथमिकताओं में सीमांचल की सारी सीटें तो है हीं, कुछ बाहर की सीटें भी शामिल होंगी।

    मुस्लिम वोटरों को गंवाना नहीं चाहती राजद

    लालू प्रसाद ने ढाई दशकों से बिहार में मुस्लिम वोटरों को सहेज कर रखा है। तमाम कोशिशों के बावजूद किसी अन्य दल की सेंध नहीं लग पाई है। पिछले विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 20 सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने लालू के एमवाई फार्मूले को झटका दिया और पांच सीटें भी जीती। लेकिन तेजस्वी यादव ने कुछ दिन बाद ही पांच में से उसके चार विधायकों को राजद में शामिल कर ओवैसी की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया था।

    ऐसे में ओवैसी को मौका देने का मतलब राजद के लिए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना होगा, क्योंकि मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी जितना मजबूत होंगे, लालू उतना ही कमजोर होते चले जाएंगे। लालू अपने आधार वोट बैंक में कोई नया 'प्रतिस्पर्धी' नहीं चाहते हैं। लालू परिवार से जुड़े सूत्र का यह भी तर्क है कि महागठबंधन के घटक दलों में सीटों की हिस्सेदारी को लेकर पहले से ही दांवपेच चल रहा है। कांग्रेस को भी 70 से कम सीटें नहीं चाहिए।

    भाकपा माले ने भी स्ट्राइक रेट के आधार पर पिछली बार की 16 सीटों से ज्यादा के लिए दबाव बना रखा है। भाकपा-माकपा की अपेक्षाएं भी बड़ी हो चुकी हैं। मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी एवं पशुपति पारस की पार्टी आरएलजेपी भी अपेक्षाओं के साथ लाइन में हैं। ऐसे में राजद के पास ओवैसी के लिए बहुत गुंजाइश नहीं है।

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