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पल-भर में हजारों-लाखों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं 'कैमिकल वैपंस'!

रासायनिक एवं जैविक हथियारों की सहायता से हजारों-लाखों लोगों को पल भर में मौत की नींद सुलाया जा सकता है या फिर उन्हें तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में लाकर तिल-तिल कर मरने के लिए बाध्य किया जा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 13 Apr 2018 11:17 AM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 05:29 PM (IST)
पल-भर में हजारों-लाखों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं 'कैमिकल वैपंस'!
पल-भर में हजारों-लाखों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं 'कैमिकल वैपंस'!

नई‍ दिल्ली [राहुल लाल]। सीरिया के डोउमा में शनिवार को हुए रासायनिक हथियारों के हमलों से यह साफ है कि अब भी विश्व समुदाय रासायनिक हमले को रोकने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है। रासायनिक हथियार, जैविक हथियार एवं परमाणु हथियारों को मूलत: जनसंहारक हथियारों में शामिल किया जाता है। परमाणु हथियारों को लेकर विश्व समुदाय का रुख कुछ कठोर है, परंतु रासायनिक एवं जैविक हथियारों के खिलाफ वैसी कठोरता नहीं है। रासायनिक हमले का अर्थ है किसी युद्ध में रासायनिक पदार्थो के विषैले गुणों का उपयोग करके जन-धन को नुकसान पहुंचाना।

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पल भर में हजारों-लाखों लोगों की मौत 

रासायनिक हमले अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विस्फोटक बलों पर निर्भर नहीं होते हैं, बल्कि रसायनों के विषकारी घातक प्रभावों पर निर्भर होते हैं। वहीं जैविक हथियारों में किसी व्यक्ति को को मारने अथवा क्षति पहुंचाने के लिए जीवाणु, विषाणु अथवा फफूंदी जैसे टॉक्सिन का प्रयोग किया जाता है। इन रासायनिक एवं जैविक हथियारों की सहायता से हजारों-लाखों लोगों को पल भर में मौत की नींद सुलाया जा सकता है या फिर उन्हें तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में लाकर तिल-तिल कर मरने के लिए बाध्य किया जा सकता है। सबसे पहले रासायनिक हथियार के रूप में क्लोरीन गैस का प्रयोग जर्मनी ने प्रथम विश्वयुद्ध के समय किया था।

जैविक हथियारों से आक्रमण

वहीं जैविक हथियारों से आक्रमण के लिए अत्याधुनिक एवं महंगे साधन की आवश्यकता नहीं होती है। उन्हें तो बस छोटे-मोटे जानवरों, पक्षियों, हवा, पानी, मनुष्य आदि द्वारा फैलाया जा सकता है। यह कल्पना की जा सकती है कि यदि ये रासायनिक एवं जैविक हथियार आतंकवादियों के हाथ लग जाएं तो परिणाम कितने भयावह होंगे? ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर रासायनिक हथियारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समझौतों एवं कानूनों की क्या स्थिति है? 1899 के हेग कन्वेंशन से ही रासायनिक हथियारों का प्रयोग निषिद्ध है। इस पर सबसे नवीनतम संधि 1993 की रासायनिक हथियार कन्वेंशन यानी सीडब्ल्यूसी है, जिसमें रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल, उत्पादन और भंडारण का निषेध किया गया है।

स्वतंत्र संगठन है OPCW

रासायनिक हथियार निषेध संगठन (ओपीसीडब्ल्यू) हेग में स्थित एक स्वतंत्र संगठन है, जो सीडब्ल्यूसी के प्रावधानों को क्रियान्वित करता है। इस तरह वर्तमान में ओपीसीडब्ल्यू संयुक्त राष्ट्र की रासायनिक हथियारों पर निगरानी रखने वाली संस्था है। ओपीसीडब्ल्यू में 192 हस्ताक्षरकर्ता देश हैं, जो वैश्विक आबादी का 98 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। जून 2016 तक इन देशों में कुल रासायनिक हथियारों के भंडार 72,525 मीटिक टन में से 66,368 टन भंडार को खत्म कर दिया गया था। इस तरह लगभग 92 प्रतिशत भंडार को खत्म कर दिया गया था। भारत ने 14 जनवरी, 1993 को आधिकारिक तौर पर सीडब्ल्यूसी पर हस्ताक्षर करने के बाद जून 1997 में 1044 टन सल्फर मस्टर्ड का भंडार होने की घोषणा की थी। 14 मई, 2009 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र में यह एलान किया कि उसने अपने रासायनिक हथियारों के भंडार को पूरी तरह खत्म कर दिया है।

UNSC में पास नहीं हो सका प्रस्ताव 

उत्तर कोरिया ने सीडब्ल्यूसी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। माना जा रहा है कि वही रासायनिक हथियारों को सीरिया भेजता रहता है। दुख की बात है कि शनिवार के ताजा सीरियाई रासायनिक हमले को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पास नहीं हो सका। ये प्रस्ताव हमले की जांच से संबंधित थे। अमेरिका और उसके समर्थकों के प्रस्ताव पर रूस ने वीटो कर दिया। जाहिर है विश्व समुदाय को इन जनसंहारक हथियारों के प्रति अत्यंत कठोर रुख अपनाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि जो भी देश इन हथियारों के प्रयोग का दुस्साहस करे, उसका विश्व समुदाय मिलकर कठोर व प्रभावी विरोध दर्ज कराए। अगर इन जनसंहारक हथियारों के प्रति केवल रस्म अदायगी भरा विरोध दर्ज होता रहा तो यह संपूर्ण मानवता के लिए गंभीर खतरा बन जाएगा। इसलिए अब समय आ गया है कि विश्व को जनसंहारक हथियारों से मुक्त किया जाए। 

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