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सीरिया को लेकर ट्रंप की रणनीति छलावा है या कुछ और, कोई नहीं जानता

ट्रंप सीरियाई संकट के लिए मॉस्को को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनकी यह रणनीति है या छलावा कोई नहीं कह सकता।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 13 Apr 2018 10:54 AM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 12:31 PM (IST)
सीरिया को लेकर ट्रंप की रणनीति छलावा है या कुछ और, कोई नहीं जानता
सीरिया को लेकर ट्रंप की रणनीति छलावा है या कुछ और, कोई नहीं जानता

नई‍ दिल्ली [महेंद्र वेद]। पहले का दौर अलग था जब दुंदुभि बजाते हुए युद्ध की मुनादी की जाती थी या दुश्मन सेनाओं को चेताया जाता था। आज के तकनीक-प्रधान युग में तो सोशल मीडिया पर एक ट्वीट से प्रतिद्वंद्वी को ललकारा जा सकता है। ट्रंप ट्वीट करते हैं-रूस सीरिया की ओर दागी गई हर मिसाइल को गिराना चाहता है। तैयार हो जाओ रूस, क्योंकि वे मिसाइलें आ रही हैं। ये अच्छी, नई और स्मार्ट हैं। सेनाओं की हलचल बढ़े या न बढ़े। मिसाइलें दागी जाएं या न दागी जाएं। लेकिन आक्रोशित आरोप-प्रत्यारोपों या धमकियों का दौर तो चल ही रहा है और यह दुनिया को परमाणु जंग की आशंका से ग्रस्त करने के लिए काफी है।

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सैन्य कार्रवाई की चेतावनी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते सीरिया की राजधानी दमिश्क के नजदीक विद्रोहियों के कब्जे वाले शहर में हुए कथित रासायनिक हमले के बाद सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी। बचावकर्मियों व एक्टिविस्टों के मुताबिक इस रासायनिक हमले में 40 से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि सीरियाई सरकार व उसके मित्र रूस ने ऐसे किसी हमले से इन्कार किया है। बहरहाल ट्रंप के इस धमकी भरे ट्वीट का जवाब भी आया। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि अमेरिका की ओर से कोई भी मिसाइल हमला सीरिया के डोउमा में कथित रासायनिक हमले के सबूत मिटाने का प्रयास हो सकता है।

पूर्वी घोउटा में हमले 

गौरतलब है कि सीरियाई संकट के इस दौर में राजधानी दमिश्क के नजदीक स्थित पूर्वी घोउटा क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों में काफी हिंसक हमले हुए हैं और बीते शनिवार को हुए कथित रासायनिक हमले में दर्जनों लोगों के मरने की खबर है। यह हमला आए दिन होने वाली हिंसा की एक कड़ी है, जिसे सीरियाई लोग लगातार भुगत रहे हैं। बढ़ती हिंसा के चलते पिछले एक महीने में वहां 1600 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 2000 से ज्यादा घायल हुए। पूर्वी घोउटा क्षेत्र वर्ष 2013 से विद्रोहियों के कब्जे में है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट्स बताती हैं कि पिछले चार हफ्तों में ही एक लाख तीस हजार से ज्यादा सीरियाई अपना घर-बार छोड़कर जा चुके हैं। सीरिया पर इस वक्त सबकी निगाहें टिकी हैं। यह कहना गलत होगा कि शीतयुद्ध का दौर खत्म हो गया, बल्कि अब तो यह पिछली सदी के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से तनावपूर्ण होता जा रहा है। भले ही इस दौरान खिलाड़ी कुछ बदल गए हों, लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देश तो यथावत हैं।

अमेरिका सबसे बड़ी महाशक्ति 

हां, रूस अब पहले जैसी महाशक्ति नहीं रहा, लेकिन व्लादिमीर पुतिन जैसे साहसी नेतृत्व के साथ यह अब भी अपना दमखम दिखा रहा है। उसे चीन का भी साथ मिल सकता है, जो तेजी से विश्व की दूसरी महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। इस तरह का संयोजन वैश्विक मंच पर भू-राजनीतिक टकराव के लिहाज से घातक कहा जा सकता है। अमेरिका अब भी सबसे बड़ी महाशक्ति है, लेकिन अस्थिर ट्रंप के धुंधले वैश्विक नजरिये के साथ इसके लक्ष्य रोज बदलते रहते हैं। ट्रंप के अस्थिर रवैये का आलम यह है कि राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के सवा साल बाद भी वे अब तक अपनी पुख्ता टीम नहीं तैयार कर सके हैं। वे अब तक इतने लोगों को बर्खास्त कर चुके हैं, जितने उनके किसी भी पूर्ववर्ती ने नहीं किए होंगे। ट्रंप रूस पर नरम-गरम होते रहते हैं। वे सीरियाई संकट के लिए मॉस्को को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनकी यह रणनीति है या छलावा, कोई नहीं कह सकता।

अमेरिकी गुस्से की वजह

अमेरिकी गुस्सा इस वजह से है कि रूस की मदद से बशर अल असद ने न सिर्फ आइएसआइएस को उखाड़ फेंका, बल्कि निहत्थे नागरिकों के खिलाफ इसके हमले भी रोक दिए। कुल मिलाकर यही लगता है कि सीरियाई विवाद कई धड़ों द्वारा लड़ा जा रहा है। एक ओर असद सरकार और रूस की अगुआई वाले इसके अंतरराष्ट्रीय साथी हैं। उनका विरोध सुन्नी अरब विद्रोही समूहों के कमजोर गठजोड़ (जिसमें मुक्त सीरियाई सेना भी शामिल है), कुर्दिश सीरियाई डेमोक्रेटिक ताकतें (एसडीएफ), सलाफी जेहादी समूह (अल-नुशरा मोर्चा समेत) और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवांट (आइएसआइएल) द्वारा किया जा रहा है। इसके अलावा इस क्षेत्र में स्थित इराक, तुर्की जैसे देश व बाहरी ताकतें भी या तो सीधे इसमें लिप्त हैं या फिर किसी न किसी धड़े को समर्थन दे रही हैं।

हिज्बुल्ला को सैन्य मदद

ईरान, रूस और हिज्बुल्ला असद को सैन्य मदद देते हैं। रूस सितंबर 2015 से असद सरकार की मदद में हवाई ऑपरेशन चला रहा है। दूसरी ओर अमेरिकी की अगुआई वाला अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ वर्ष 2014 में स्थापित हुआ, जो कि आइएसआइएल को रोकने के लिए बना था। वह असद और उनके समर्थकों के खिलाफ हवाई हमलों को अंजाम दिया। गौरतलब है कि अमेरिका इराक में आइएसआइएल के खिलाफ लड़ रहा है, लेकिन सीरिया में इसका मददगार है। ओबामा ने इस विरोधाभास पर गौर किया था, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाए। हां, सीरिया की विरासत ट्रंप को ओबामा से मिली है, जिन्हें अफगानिस्तान और ईरान की विरासतें जॉर्ज बुश जूनियर से मिली थीं। लेकिन ओबामा बेहतर समझ के साथ क्यूबा और ईरान के साथ तनाव को दूर करने में सफल रहे।

रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल 

भले ही कुछ पश्चिमी ताकतें सीरिया में अमेरिकी अगुआई वाली मुहिम का हिस्सा हों, लेकिन अब वे थकने लगी हैं। फ्रांस अनमना है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरीजा मे भी अस्थिर बहुमत के साथ ब्रिटिश संसद को हल्के में नहीं ले सकतीं। इस तरह ट्रंप अपने रवैये से दुनिया को और उलझनकारी बना रहे हैं। उनके अधिकारी कहते हैं कि रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल एक तरह की बर्बरता है और अमेरिका इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। लेकिन अमेरिकी विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप अब भी ऐसी कोई राह नहीं तलाश सके हैं, जिससे घटनाक्रम में नाटकीय बदलाव आए। स्मार्ट मिसाइलें दागी जाती हैं या नहीं (हम तो यही चाहेंगे कि न दागी जाएं), लेकिन सीरिया में रह रहे या वहां से पलायन कर यूरोप में अवांछित शरणार्थी की दयनीय जिंदगी जीने को विवश लोगों की दिक्कतों का अंत होता नजर नहीं आता।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)

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