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दक्षिण एशिया में भूटान ही एकमात्र ऐसा देश जिसके साथ चीन के नहीं है कूटनीतिक संबंध

सामरिक मामलों के विश्लेषकों को पीएम मोदी की भूटान यात्रा में चीन द्वारा भूटान को अपने प्रभाव में न ले पाने की रणनीतिक यात्रा नजर आ रही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 12:27 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 02:36 PM (IST)
दक्षिण एशिया में भूटान ही एकमात्र ऐसा देश जिसके साथ चीन के नहीं है कूटनीतिक संबंध
दक्षिण एशिया में भूटान ही एकमात्र ऐसा देश जिसके साथ चीन के नहीं है कूटनीतिक संबंध

[विवेक ओझा]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले भूटान गए थे और मई 2019 में फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद वह 17 अगस्त को दो दिवसीय यात्रा पर भूटान पहुंचे। भारत और भूटान के बीच हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, नॉलेज नेटवर्क, मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल, स्पेस सेटेलाइट और रूपे कार्ड के इस्तेमाल समेत 10 समझौते पर हस्ताक्षर हुए। भारत और भूटान के बीच यह निर्णय हुआ है कि इसरो भूटान में एक ग्राउंड स्टेशन लगाएगा। भारत ने इससे पहले भी भूटान को व्यक्तिगत स्तर पर सार्क सेटेलाइट का लाभ देने का प्रस्ताव किया था। मोदी ने भारतीय रूपे कार्ड को भी भूटान में लॉन्च किया। इससे पहले रूपे कार्ड सिंगापुर में ही लॉन्च किया गया था। मोदी ने 1629 में निर्मित सिमतोखा जोंग में रूपे कार्ड को लॉन्च किया। दक्षेस मुद्रा स्वैप प्रारूप के तहत भूटान के लिए मुद्रा स्वैप सीमा बढ़ाने पर मोदी ने कहा कि भारत का रुख सकारात्मक है। विदेशी विनिमय की जरूरत को पूरा करने के लिए वैकल्पिक स्वैप व्यवस्था के तहत भूटान को अतिरिक्त 10 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराए जाएंगे।

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धार्मिक मठ
भूटान में जोंग धार्मिक मठों और प्रशासनिक केंद्र के रूप में रहे हैं। ऐतिहासिक सिमटोखा जोंग स्थल के प्रांगण में प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस के पौधे का रोपण भी किया और भूटान को पर्यावरणीय रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जो सच भी है। तिब्बती बौद्ध लामा शब्दरूंग नामग्याल द्वारा 1629 में निर्मित सिमटोखा जोंग इस देश के सबसे पुराने किलों में एक है। नामग्याल को भूटान के एकीकृत करने वाले के तौर पर देखा जाता है। इस स्थान को महत्व देकर भारत ने एक नई प्रकार की स्पिरिचुअल डिप्लोमेसी की शुरुआत की है।

मोदी ने 18 अगस्त को भूटान में रॉयल विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित किया। भारत में भूटानी छात्रों की घटती संख्या को देखते हुए सॉफ्ट पावर पालिटिक्स और कल्चरल डिप्लोमेसी के लिहाज से ऐसा किया जाना आवश्यक था। दोनों देशों के नेताओं ने भारत के नेशनल नॉलेज नेटवर्क और भूटान के ड्रक रिसर्च एंड एजुकेशन नेटवर्क के बीच अंतर-संपर्क की ई-वॉल का भी अनावरण किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘भूटान की प्रगति में बड़ा सहयोगी बनना भारत के लिए गौरव की बात है। भूटान की पंचवर्षीय योजना में भारत का सहयोग जारी रहेगा।’

‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’
भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और भूटान एक दूसरे की परंपरा समझते हैं। भारत भाग्यशाली है कि वह राजकुमार सिद्धार्थ के बुद्ध बनने की जगह रहा। उनका कहना था कि मैं आज भूटान के भविष्य के साथ हूं, आपकी ऊर्जा महसूस कर सकता हूं। मोदी ने यह भी कहा कि मैं भूटान के इतिहास, वर्तमान या भविष्य को देखता हूं तो मुझे दिखता है कि भारत और भूटान के लोग आपस में काफी परंपराएं साझा करते हैं। भूटान के युवा वैज्ञानिक भारत आकर अपने लिए एक छोटा सेटेलाइट बनाने पर काम करेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आप दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं, अगर आप पूछेंगे कि भूटान के बारे में क्या जानते हो, तो जवाब हमेशा ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ का कॉन्सेप्ट मिलेगा। मुझे इस जवाब पर कभी आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि भूटान ने खुशी का भाव समझ लिया है।’

सामाजिक आर्थिक नियोजन
भारत ने भूटान के सामाजिक आर्थिक नियोजन और सशक्तीकरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 1961 में भारत की वित्तीय मदद से भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुआत हुई और आज भूटान अपनी 12वीं पंचवर्षीय योजना का क्रियान्वयन कर रहा है। भारत ने भूटान को इस मामले में बड़ी मदद की है। दरअसल भारत और भूटान के संबंधों की कहानी 1949 से शुरू होती है जब दोनों देशों के बीच भारत भूटान मैत्री संधि संपन्न हुई। इस संधि में प्रावधान किया गया कि भूटान अपने आंतरिक मामले में पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहेगा, लेकिन विदेशी मामलों में वह भारत के मार्गदर्शन और निर्देशन में काम करेगा। वर्ष 2007 में दोनों देशों के बीच इस संधि की समीक्षा की गई और भारत ने भूटान को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के परिचालन के लिए प्रेरित किया।

ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट
नवंबर, 2018 में भूटान के प्रधानमंत्री ने असम में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर समिट में भाग लिया और परोक्ष रूप से भारत के एक्ट ईस्ट पॉलिसी और लुक ईस्ट पॉलिसी में एक सहायक की भूमिका निभाते हुए गुवाहाटी में अपना कांस्युलेट ऑफिस खोलने की घोषणा की। भूटान ने भी अपनी पैराडिप्लोमेसी कुशलता का परिचय देते हुए राज्य सरकार में एक्ट ईस्ट डिपार्टमेंट गठित करने की घोषणा की। इस तरह असम भारत का पहला राज्य बना है जिसने एक्ट ईस्ट डिपार्टमेंट का गठन किया है। यहां यह जानना जरूरी है कि आज उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों को चीन के कुत्सित मंसूबों से बचाने के लिए भारत कुछ देशों को लामबंद करने की रणनीति पर चल रहा है। भूटान इस रणनीति की अहम कड़ी बन रहा है। इसके साथ ही भारत ने जापान के साथ एक्ट ईस्ट फोरम का गठन 2017 में किया है जिसकी अक्टूबर 2018 में दूसरी बैठक आयोजित हुई है। इस फोरम के जरिये जापान भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में अवसंरचनात्मक विकास के लिए परियोजनाएं चलाएगा और उन्हें वित्त पोषित भी करेगा। इस प्रकार भूटान, जापान, लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत आसियान के देशों को उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों के विकास के काम में लगाने की रणनीति पर भारत काम कर रहा है।

असम ने कहा है कि वह भूटान के तर्ज पर अपने सकल घरेलू उत्पाद में राज्य के नागरिकों की प्रसन्नता की गणना करने पर भी विचार कर रहा है। भूटान के साथ ही जिन देशों को उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों से जोड़ने का काम भारत ने किया है, वह भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक डिप्लोमेसी का प्रमाण है। ये सभी देश बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, ये साझी सांस्कृतिक विरासत के भी उत्तराधिकारी हैं। तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को भारत ने पहले ही राजनीतिक शरण दे रखा है। बांग्लादेश को भी सिलीगुड़ी गलियारे के जरिये उत्तर पूर्वी भारत से आबद्ध करने की कोशिश हाल में की गई है। त्रिपुरा में सबरूम नामक जगह पर फेनी नदी पर बांध निर्माण और उत्तर पूर्वी भारत को चटगांव पोर्ट से जोड़ने की योजना भी बनाई गई है। इसी कड़ी में भारत बांग्लादेश के बीच अखोरा अगरतला रेल लिंक भी बनाना शुरू कर दिया गया है।

पनबिजली सहयोग
भारत भूटान संबंधों का सबसे मजबूत आधार पनबिजली सहयोग रहा है। भारत के वित्तीय मदद से भूटान की शुरुआती तीन पनबिजली परियोजनाएं कुरीछू (60 मेगावाट), चूखा (336 मेगावाट), ताला (170 मेगावाट) आज कार्यशील हैं और इनसे उत्पादित पनबिजली भारत खरीदता है। 2009 में दोनों देशों ने एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया जिसमें यह सहमति बनी कि भारत 2020 तक भूटान को 10 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन कराने में सहयोग कर उससे अधिशेष बिजली खरीदेगा। इसके बाद भारत ने भूटान के पुनातसंगछू (1,200 मेगावाट), वांगछु (570 मेगावाट) खोलांगचू परियोजना और हाल में मांगड़ेचू (720 मेगावाट) पनबिजली परियोजनाओं में मदद की है।

भारतीय प्रधानमंत्री और भूटानी प्रधानमंत्री ने मिलकर मांगदेचू पनबिजली परियोजना का उद्घाटन किया। हाइड्रोपावर संबंधों को मजबूती देने में इसे महत्वाकांक्षी परियोजना माना गया है। इस परियोजना से भूटान की ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी और सरप्लस ऊर्जा भारत को निर्यात कर दी जाएगी। भारत भूटान का सबसे बड़ा ट्रेड और डेवलपमेंट पार्टनर है। दोनों देशों के बीच लगभग 9,000 करोड़ रुपये का द्विपक्षीय व्यापार है। भूटान अपने कुल आयात का 80 प्रतिशत से अधिक भारत से करता है और भूटान के कुल निर्यात का 85 प्रतिशत से अधिक भारत को किया जाता है। भूटान की तीन चौथाई बिजली भारत को निर्यात की जाती है।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]

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