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    शीतल देवी ने तीरंदाजी में गोल्ड मेडल किया हासिल, ओडिशा की खिलाड़ी को दी शिकस्त

    Updated: Sun, 23 Mar 2025 10:07 PM (IST)

    शीतल ने तीरंदाजी की ट्रेनिंग माता वैष्णो देवी श्राइन तीरंदाजी अकादमी से ली जहां पायल नाग ने भी अभ्यास किया। कठिनाइयों को पीछे छोड़ते हुए शीतल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा साबित की। उन्होंने पेरिस 2024 पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया था। बचपन में शीतल पेड़ों पर चढ़ने का शौक रखती थीं जिससे उनके ऊपरी शरीर की ताकत विकसित हुई।

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    शीतल देवी ने ओडिशा की खिलाड़ी को हराकर जीता गोल्ड।

     जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रविवार को खेले गए खेलो इंडिया पैरा गेम्स (केआइपीजी) 2025 के फाइनल मुकाबले में जम्मू-कश्मीर की शीतल देवी ने ओडिशा की पायल नाग को हराकर स्वर्ण पदक जीता। कंपाउंड तीरंदाजी ओपन फाइनल में शीतल ने 109-103 के स्कोर से जीत दर्ज की। 18 वर्षीय शीतल और 17 वर्षीय पायल ने पोडियम पर जगह बनाई।

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    जीत के बाद शीतल देवी ने कहा, पायल ने शानदार प्रदर्शन किया और भविष्य में वह भारत के लिए और भी पदक जीतेगी। माता रानी के आशीर्वाद से मैंने खेलो इंडिया पैरा गेम्स में अपना दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया।

    शीतल ने कठिनाइयों को छोड़ा पीछे

    शीतल ने तीरंदाजी की ट्रेनिंग माता वैष्णो देवी श्राइन तीरंदाजी अकादमी से ली, जहां पायल नाग ने भी अभ्यास किया। कठिनाइयों को पीछे छोड़ते हुए, शीतल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा साबित की। उन्होंने पेरिस 2024 पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया था।

    शीतल का जन्म 10 जनवरी 2007 को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के लोइधर गांव में हुआ था। जन्म से ही वह फोकोमेलिया नामक दुर्लभ जन्मजात विकार से पीड़ित थीं, जिससे उनके हाथों का पूरा विकास नहीं हो पाया। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खेलों में अपनी रुचि बनाए रखी।

    पेड़ों पर चढ़ने का था शौक

    बचपन में शीतल पेड़ों पर चढ़ने का शौक रखती थीं, जिससे उनके ऊपरी शरीर की ताकत विकसित हुई। भारतीय सेना ने उनके करियर को संवारने में अहम भूमिका निभाई। 2021 में किश्तवाड़ में सेना द्वारा आयोजित एक युवा कार्यक्रम में कोचों ने उनकी प्रतिभा पहचानी और उन्हें तीरंदाजी में प्रशिक्षण दिया।

    2023 में चेक गणराज्य में विश्व तीरंदाजी पैरा चैंपियनशिप में उन्होंने कंपाउंड ओपन महिला स्पर्धा में रजत पदक जीता। वह इस प्रतियोगिता में पदक जीतने वाली पहली आर्मलेस तीरंदाज बनीं। उनके कोचों ने शुरुआत में प्रोस्थेटिक्स के जरिए उनकी मदद करने की कोशिश की, लेकिन बाद में उनके लिए विशेष तकनीक विकसित की गई।

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