Move to Jagran APP

छोरे ने जकार्ता में रचा इतिहास और यहां बरस पड़ीं अांखें, गोल्‍ड जीत निकाली पुरानी टीस

किसान परिवार में जन्मे गांव उझाना के मनजीत चहल ने एशियन गेम्स में 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। मनजीत की जीत पर परिजनों की आंखें बरस पड़ीं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 09:08 PM (IST)Updated: Wed, 29 Aug 2018 11:57 AM (IST)
छोरे ने जकार्ता में रचा इतिहास और यहां बरस पड़ीं अांखें, गोल्‍ड जीत निकाली पुरानी टीस
छोरे ने जकार्ता में रचा इतिहास और यहां बरस पड़ीं अांखें, गोल्‍ड जीत निकाली पुरानी टीस

नरवाना [महा सिंह श्योरान]। किसान परिवार में जन्मे गांव उझाना के मनजीत चहल ने एशियन गेम्स में 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। नरवाना में पुराना बस स्टैंड के पास रहने वाले परिवार के लोग उसकी दौड़ को टकटकी लगाए देख रहे थे। जैसे ही उसने दौड़ पूरी कर गोल्ड पर कब्जा जमाया परिजनों के अांखें बरस पड़ीं। मनजीत ने इस जीत से अपनी पुरानी टीस भी निकाल ली। वह 2014 में कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के लिए क्‍वालीफाई करने से महज सेंकेंड के सौंवें हिस्‍से से चूक गया था। तभी से उसने जुनून पाल लिया था।

loksabha election banner

पिता रणधीर चहल और मां बिमला देवी ने बताया कि मनजीत पहली 400 मीटर दौड़ में पीछे रह गया था तो उनकी उम्मीद टूटने लग गई थी, लेकिन अगली 400 मीटर दौड़ में उसने अन्य धावकों को पछाड़ना शुरू कर दिया तो जान में जान आई। मनजीत ने अंतिम क्षण में दूसरों से आगे निकलकर दौड़ जीत लिया तो खुशी का ठिकाना न रहा। उसने मेरे दूध का कर्ज चुका दिया और अपनी साधना व संघर्ष को सफल बना दिया।

यह भी पढ़ें: अब 'शून्य' से बाहर निकलने की जंग लड़ रहा योद्धा, खामोशी में बयां हो रही वीरता की कहानी

मनजीत ने स्वर्ण पदक जीता तो मां बिमला देवी और अन्‍य परिजनों की अांखों से खुशी के अांसू बरस पड़े। मनजीत के दौड़ पूरी करते हुए परिजन खुशी के मारे उछल पड़े। मां बिमला देवी ने कहा कि मनजीत ने न केवल अपने गांव का बल्कि भारतवर्ष का नाम रोशन कर दिया है। 

मनजीत चहल ने बेटे का मुंह तक नहीं देखा

एथेलीट मनजीत चहल के मन में एशियन गेम्स से पदक लाने की ललक थी। मनजीत के बेटे अभिर ने जन्म लिया तो उस समय वह ट्रेनिंग पर ही था। वह अपने घर भी नहीं आ सका। वह पांच महीने से अपने परिवार से दूर रहकर एशियन गेम्स में पदक लाने के लिए तैयारियां कर रहा था। मनजीत को परिवार से दूर रहने का गम जरूर था, लेकिन देश के लिए पदक जीतना उसका जुनून था। यही जुनून उसको एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल लाने में कामयाब कर गया। 

 खुशी मनाते मनजीत के पारिवारिक सदस्य। 

पिता रणधीर ने बताया कि मनजीत बचपन से ही खूब दौड़ता था। वर्ष 2000 में नवदीप स्टेडियम में एथलेटिक्स की 15 बच्चों की नर्सरी में उसका चयन हो गया था और वह 2005 तक नर्सरी में एथलेटिक्स की बारीकियां सीखता रहा। इस दौरान उसने स्कूल की प्रतियोगिताओं के दौरान अनेक मेडल भी जीते, जिससे उसका हौसला बढ़ता ही चला गया।

यह भी पढ़ें: चंडीगढ़ की पहली महिला कैब चालक निकली 'रिवॉल्वर रानी', पुलिस ने किया गिरफ्तार

पिता ने बताया कि वर्ष 2005 में नर्सरी बंद हो जाने के कारण उसने स्पोटर्स कॉलेज, जांलधर में दाखिला ले लिया। वहां से ही उसने नेशनल स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया। इसके बाद 2008 में उसका नेशनल स्तर पर स्वर्ण पदक आया, तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह 2009 में नेशनल चैपिंयन रहा।

इसी प्रतिभा के आधार पर 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में उसका चयन हो गया। जिसमें वह क्वालीफाइंग हीट में 5वें स्थान पर रहा, लेकिन मनजीत के मन अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक लाने की ललक थी। इसके बाद मनजीत का एनआइएस, पटियाला में चयन हो गया और वह 2013 तक वहीं रहा। वहां उसने बारीकियां सीखकर पुणे में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में भाग लिया, लेकिन वहां भी उसको चौथे स्थान पर सब्र करना पड़ा।

मनजीत के पदक जीतने के बाद खुश उनका परिवार।

पिता ने बताया कि बेटा पटियाला कैंप में रहा और उसके बाद म्यंमार के भूटान में ट्रेनिंग के लिए गया था। इसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर के बंगलुरू के ऊटी में प्रशिक्षण लेता रहा। यहीं से उसका चयन एशियन गेम्स के लिए 800 मीटर और 1500 मीटर में चयन हो गया। उन्होंने बताया कि उनको सबसे बड़ी खुशी है कि एक छोटे से शहर के लड़के ने विश्व पटल पर शहर और गांव का नाम रोशन कर दिया। 

कॉमनवेल्थ गेम्स में नहीं क्वालीफाई करने का रहा मलाल

मनजीत चहल वर्ष 2014 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए कैंप में तैयारियां कर रहा था। उसने कॉमनवेल्थ में क्वालीफाई करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी, लेकिन उसका दुर्भाग्य था कि वह सेकेंड के 100वाें सेकेंड हिस्से पहले स्थान पर आने वाले से पिछड़ गया और कॉमनवेल्थ गेम्‍स के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाया था। मनजीत चहल अपने पिता को कहता था कि वह कॉमनवेल्थ और बड़ी प्रतियोगिताअें में जरूर खेलेगा और देश के लिए पदक जीतेगा। इसलिए वह तभी से अब तक कैंपों में भाग लेता रहा और दिन रात पसीना बहाता रहा।

पीटीआइ मेवा सिंह नैन रहे मनजीत के मार्गदर्शक

जब मनजीत चहल ने वर्ष 2000 में एथलेटिक्स नर्सरी में दाखिला लिया तो मेवा सिंह नैन पीटीआइ ने मनजीत में कुछ कर गुजरने की ललक देखी, तो उसने उसको एथलेटिक्स की बारीकियां देनी शुरू कर दी। जिसके बाद मनजीत ने मुड़कर नहीं देखा। मनजीत चहल आज भी मेवा सिंह नैन पीटीआई को अपना आदर्श मानते हैं। 

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.