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'शून्य' से बाहर निकलने की जंग लड़ रहा योद्धा, खामोशी में बयां हो रही बहादुरी की कहानी

एक योद्धा दुश्‍मनों के छक्‍के छुड़ाने के बाद शून्‍य से जंग लड़ रहा है। लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह नट पिछले 33 माह से यह जिद्दोजहद कर रहे हैं और सेना इसमें उनका पूरा साथ दे रही है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 29 Aug 2018 09:18 AM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2018 08:53 PM (IST)
'शून्य' से बाहर निकलने की जंग लड़ रहा योद्धा, खामोशी में बयां हो रही बहादुरी की कहानी
'शून्य' से बाहर निकलने की जंग लड़ रहा योद्धा, खामोशी में बयां हो रही बहादुरी की कहानी

जालंधर, [मनुपाल शर्मा]। भारत माता के इस दुलारे योद्धा की सीमा पर दुश्‍मनों से दो-दो हाथ करने के बाद भी लड़ाई जारी है। वह 33 माह से 'शून्‍य' से निकलने की जंग लड़ रहा है। आसमान में ताकती आंखें, शांत हो चुके लब, गहन खामोशी और 33 माह से मिलिट्री अस्पताल ही ठिकाना। दो बच्चियों को अपने पापा के एक बार फिर से बोलने और उठने का इंतजार है। जालंधर छावनी के मिलिट्री अस्पताल के ऑफिसर वार्ड में सैन्य योद्धा लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह नट की खामोशी ही उनकी वीरगाथा को बयां करती है।

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33 माह से कौमा में
लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह नट नवंबर 2015 से ऐसी ही स्थिति में हैं। उनकी याद्दाश्त और आवाज जा चुकी है। कभी-कभार पुकारे जाने पर वह आंखें खोलते हैं। अदम्य साहस से खतरनाक आतंकी को खत्म करने पर सेना ने उन्हें सेना मेडल से भी नवाजा है। लेकिन, उनके परिवार को उनके फिर से बोल उठने और उनकी प्‍यारी मुस्‍तान का बेसब्री से इंतजार है।

परिवार के साथ लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह नट।(फाइल फोटो)

जम्मू-कश्मीर के हाजीनाका (कुपवाड़ा) में 22 नवंबर, 2015 को आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह नट के जबड़े में गोली लगी थी। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र होने के कारण उन्हें तुरंत मिलिट्री अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका। उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए पहुंचा हेलीकॉप्टर भारी धुंध के कारण उतर नहीं पाया और लौट गया। उनके घायल होने के लगभग आठ घंटे बाद डॉक्टरों की एक टीम घटनास्थल तक पहुंची, लेकिन तब तक काफी खून बह चुका था और दिमाग को ऑक्सीजन की सप्लाई में भी कमी आ गई थी।

परिवार को उनके बोल उठने का इंतजार
जंगली इलाके में कोई इमरजेंसी सुविधा भी नहीं होने के कारण डॉक्टरों ने मौके पर ही उनके गले में पाइप डालकर ऑक्सीजन देने का फैसला किया। करणवीर सिंह का हौसला ऐसा था कि उन्होंने बेहोश हुए बिना ही गले में कट लगवाया और पाइप डलवाई। दूसरे दिन सुबह हेलीकॉप्टर से उन्हें ऊधमपुर लाया गया। यहां से उनकी नाजुक हालत को देखते हुए उन्हें नई दिल्ली के आर्मी रेफरल अस्पताल में रेफर किया गया।

दो बार कार्डियक अरेस्ट, दस माह आइसीयू में रखा
लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह की पत्नी नवप्रीत बताती हैं कि जो पायलट हेलीकॉप्टर से उन्हें ऊधमपुर तक लाया था। उनके मुताबिक जब पायलट ने पूछा कि वह कैसा महसूस कर रहे हैं तो उन्होंने थम्सअप कर उनका भी हौसला बढ़ाया। जब उन्हें दिल्‍ली के रेफरल अस्पताल शिफ्ट किया जा रहा था, तो रास्ते में पाइप हिल जाने के कारण उनके दिमाग को जा रही ऑक्सीजन की सप्लाई रुक गई।

दिमाग को ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से उनकी याद्दाश्त व आवाज चली गई। तब से वह उसी स्थिति में हैं। अस्पताल में उन्हें दो बार कार्डियक अरेस्ट हुए, लेकिन डॉक्टरों की टीम ने उन्हें बचा लिया। उन्हें वहां दस माह आइसीयू में भी रखा गया।

बड़ी बेटी गुनीत (14) पिता को ऐसे हालात में देख नहीं पाती और भावुक हो जाती है। जबकि छोटी बेटी अशमीत (4) पापा के ठीक होने के इंतजार में उनकी तरफ देखती रहती है। करणवीर के परिवार को सेना ने जालंधर में ही निवास दे रखा है। उनका परिवार यहीं रह रहा है।

पिता बोले, सेना कर रही है पूरा सहयोग
मूल रूप से बटाला के गांव ढडियाला नत्थ के रहने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह के पिता रिटायर्ड कर्नल जगतार सिंह बताते हैं कि सेना उन्हें पूरा सहयोग दे रही है। 11 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल दुष्यंत सिंह लगातार उनके संपर्क में हैं। एमएच के कमांडेंट ब्रिगेडियर अविनाश दास रोजाना एक बार खुद मिलने आते हैं। एक्स सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट कर्नल बलबीर सिं‍ह ने कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह और उनकी देखभाल कर रही भारतीय सेना दोनों ही एक मिसाल हैं।

वर्दी पहनने का इतना जुनून कि दोबारा ज्वाइन की थी आर्मी
लेफ्टिनेंट कर्नल करणवीर सिंह नट में वर्दी पहनकर देश के लिए कुछ कर गुजरने का इतना जज्बा था कि उन्होंने दो बार आर्मी ज्वाइन की। पहली बार उन्होंने 1998 में सेना में कमीशन प्राप्त किया था और बतौर शार्ट सर्विस कमीशन आफिसर उनकी 19 गाट्र्स यूनिट में नियुक्ति हुई थी। उन्हें परमानेंट कमीशन नहीं प्राप्त हुआ और 14 वर्ष की नौकरी के बाद 2012 में सेना छोड़नी पड़ी। उन्हें सेना से बाहर रहना कतई मंजूर नहीं था। अगले ही साल 2013 में उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी (टीए) के जरिए फिर सेना को अपनी सेवाएं देनी शुरू कीं।


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