कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले मुक्केबाज ने लिया संन्यास, अब करेंगे यह काम
कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले मुक्केबाज मनोज कुमार ने मुक्केबाजी से संन्यास ले लिया। वह अब कोचिंग में अपना करियर शुरू करेंगे। 39 साल के मनोज कुमार ने 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में एकमात्र गोल्ड मेडल जीत था। हालांकि वह दो बार एशियाई चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल भी जीता था। वह दो बार ओलंपिक में हिस्सा ले चुके हैं।

नई दिल्ली, स्पोर्ट्स डेस्क। कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने वाले पूर्व मुक्केबाज मनोज कुमार ने गुरुवार को कोचिंग में अपना करियर शुरू करने के लिए संन्यास लेने की घोषणा की। 39 वर्षीय मनोज कुमार ने 2010 के दिल्ली खेलों में अपना पहला और एकमात्र राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक जीता था।
वह दो बार एशियाई चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता भी हैं। उन्होंने अपना दूसरा और आखिरी राष्ट्रमंडल खेलों का कांस्य पदक 2018 गोल्ड कोस्ट खेलों में जीता था। वह दो बार के ओलंपियन भी हैं। उन्होंने 2012 लंदन और 2016 रियो डी जेनेरियो खेलों में भाग लिया था और दोनों ही संस्करणों में प्री-क्वार्टर फाइनलिस्ट रहे थे।
'सोच समझकर लिया फैसला'
हरियाणा के कैथल के रहने वाले मनोज ने पीटीआई से कहा, यह सोच-समझकर लिया गया फैसला है, क्योंकि 40 साल की उम्र के बाद मैं अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार स्पर्धाओं में भाग नहीं ले पाऊंगा। मैं अपनी क्षमता के अनुसार अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद संतुष्ट व्यक्ति के रूप में संन्यास ले रहा हूं। मुझे जो अवसर मिले, उसके लिए मैं आभारी हूं।
1997 में शुरू किया करियर
बात दें कि 1997 में जूनियर स्तर पर अपने मुक्केबाजी करियर की शुरुआत करने वाले मुखर मुक्केबाज ने 2021 में पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान से कोचिंग डिप्लोमा पूरा किया। गोल्ड कोस्ट खेलों के बाद चोटों और चयन मुद्दों पर राष्ट्रीय महासंघ के साथ विवाद ने उनके भारत के करियर को बाधित किया और उसके बाद उन्हें किसी भी अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में नहीं देखा गया।
कुरुक्षेत्र में खोली है अकादमी
अब उनका इरादा अपनी अकादमी को समय देने का है, जिसे उन्होंने कुरुक्षेत्र में बड़े भाई और लंबे समय से निजी कोच राजेश कुमार के साथ मिलकर स्थापित किया है। अकादमी के लिए कहा कि यह युवा एथलीटों के साथ अनुभवों को साझा करने का माध्यम बनेगा। यहां से निकले एथलीट एक दिन देश के लिए ओलंपिक मेडल जीतेंगे।
'खेल को अलविदा कहना भावुक'
उन्होंने कहा, किसी भी एथलीट के लिए खेल को अलविदा कहना बेहद भावुक पल होता है। अगर राजेश सर नहीं होते, तो मुझे ओलंपियन बॉक्सर के रूप में पहचान नहीं मिलती। उन्होंने मुझे बड़े सपने दिखाए और उन्हें हासिल करने के लिए मेरे रास्ते में आने वाली हर बाधा को दूर किया।
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