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    अरविंद चिंदबरम की सालों की मेहनत रंग लाई, ग्रैंड शतरंज टूर के लिए वाइल्ड कार्ड मिला

    Updated: Sat, 08 Mar 2025 07:52 PM (IST)

    प्राग मास्टर्स में खिताब जीतने वाले अरविंद चिंदबरम वैश्विक शतरंज में डी गुकेश और आर प्रगनानंद की तुलना में देर से उभरे हैं और 25 वर्ष की आयु में उन्होंने जिस तरह से जीवन की बाधाओं को पार किया है उसे देखते हुए लगता है कि वह प्रगति करते रहेंगे। मदुरै में जन्मे अरविंद जब तीन वर्ष के थे उन्होंने अपने पिता को खो दिया था।

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    अरविंद चिंदबरम को मिला मेहनत का फल। इमेज- एक्‍स

     पीटीआई नई दिल्ली : प्राग मास्टर्स में खिताब जीतने वाले अरविंद चिंदबरम वैश्विक शतरंज में डी गुकेश और आर प्रगनानंद की तुलना में देर से उभरे हैं और 25 वर्ष की आयु में उन्होंने जिस तरह से जीवन की बाधाओं को पार किया है, उसे देखते हुए लगता है कि वह प्रगति करते रहेंगे। मदुरै में जन्मे अरविंद जब तीन वर्ष के थे, उन्होंने अपने पिता को खो दिया था और उनकी मां एलआइसी एजेंट के रूप में काम करती थीं। उन्होंने मदुरै छोड़कर चेन्नई में बसने का फैसला किया जो भारत की अनौपचारिक शतरंज की राजधानी है।

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    अब वर्षों के त्याग और कड़ी मेहनत का फल आखिरकार मिल रहा है। विश्व चैंपियन गुकेश वेल्लामल स्कूल में पढ़ते थे और अब वहीं से एक और प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मिल गया है। अरविंद आखिरकार गुकेश के सीनियर हैं। अरविंद को प्राग में जीत से पोलैंड में प्रतिष्ठित ग्रैंड शतरंज टूर के लिए वाइल्ड कार्ड मिल गया है।

    उन्होंने कहा, 'टूर्नामेंट के दौरान मुझे निमंत्रण मिल रहे हैं और ग्रैंड शतरंज टूर रैपिड और ब्लिट्ज (टूर्नामेंट) उनमें से एक है।' आम तौर पर विश्व रैंकिंग में शीर्ष-20 में जगह बनाने पर शीर्ष टूर्नामेंट में कम से कम कुछ निमंत्रण की गारंटी होती है लेकिन प्राग से पहले ही अरविंद ने शारजाह मास्टर्स और बील इंटरनेशनल में अपनी भागीदारी की पुष्टि की थी जो क्रमश: मई और जुलाई में होने वाले इवेंट हैं।

    अरविंद को अब चोलामंडलम समूह का समर्थन प्राप्त है, लेकिन बहुत कम लोगों को याद है कि जब 2013 में विश्वनाथन आनंद ने चेन्नई में मैग्नस कार्लसन को अपना विश्व खिताब गंवा दिया था, उसी समय स्कूली छात्र अरविंद शहर के दूसरी ओर एक अंतरराष्ट्रीय ओपन प्रतियोगिता में ध्यान आकर्षित कर रहे थे। यह वही टूर्नामेंट था जहां अरविंद ने ओपन स्पर्धा जीतकर अपना पहला जीएम नार्म हासिल किया और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    वह 2015 में ग्रैंडमास्टर बन गए और लगातार सुधार कर रहे हैं। 2019 में अरविंद ने क्लासिकल, रैपिड और ब्लिट्ज में इंडियन ओपन जीता और यह दुर्लभ उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने। पिछले नवंबर में उन्होंने आखिरकार चेन्नई ग्रैंडमास्टंर्स टूर्नामेंट जीता और 2700 ईएलओ रेटिंग को पार किया। अब प्राग मास्टर्स में उनकी जीत ने गुकेश, अर्जुन और प्रज्ञानानंद के चौथे स्तंभ के रूप में उनकी स्थिति की पुष्टि की। प्राग में अरविंद ने तीन जीत और छह ड्रा से कुल छह अंक बनाए। मास्टर्स जीतने के बाद शुक्रवार दोपहर तक अरविंद लाइव व‌र्ल्ड रैंकिंग में 14वें और भारत में चौथे स्थान पर थे।

    क्लासिकल शतरंज हमेशा रहेगा महत्वपूर्ण

    शतरंज के बदलते परिदृश्‍य से बेफिक्र मौजूदा विश्व चैंपियन डी गुकेश सभी प्रारूपों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि फ्रीस्टाइल शतरंज जहां रोमांच पैदा करता है वहीं अपने समृद्ध इतिहास के साथ क्लासिकल शतरंज हमेशा सबसे महत्वपूर्ण बना रहेगा। शतरंज में अभी दो वर्ग सामने आ रहे हैं। इनमें एक वर्ग जहां फ्रीस्टाइल का समर्थक है तो दूसरा वर्ग क्लासिकल शतरंज के प्रति वफादार बना हुआ है। इससे शतरंज में विभाजन की संभावना बन गई है। पिछले वर्ष चीन के डिंग लिरेन को हराकर विश्व चैंपियन बनने वाले गुकेश को नहीं लगता है की शतरंज दो गुट में बंट जाएगा।

    गुकेश ने इंडिया टुडे कान्क्लेव 2025 में कहा, 'मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचता। फ्रीस्टाइल काफी रोमांचक है और मैं इसमें खेल कर खुश हूं। लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह तेजी से आगे बढ़ रहा है। फ्रीस्टाइल में अभी तक केवल दो ही बड़े टूर्नामेंट हैं।' उन्होंने कहा, 'मैं चाहता हूं कि फ्रीस्टाइल सशक्त हो जाए, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह शतरंज के मूल प्रारूप पर हावी हो जाएगा। क्लासिकल शतरंज का इतिहास और विरासत इसे और अधिक महत्वपूर्ण बनाती है।'

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