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    एंकर : फ‌र्स्ट एड सेंटर बन गया है रेलवे अस्पताल

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 15 Jun 2017 02:46 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, बंडामुंडा: चक्रधरपुर रेल मंडल के अधीन बंडामुंडा सी सेक्टर स्थित रेलवे

    एंकर : फ‌र्स्ट एड सेंटर बन गया है रेलवे अस्पताल

    जागरण संवाददाता, बंडामुंडा: चक्रधरपुर रेल मंडल के अधीन बंडामुंडा सी सेक्टर स्थित रेलवे अस्पताल महज फ‌र्स्ट एड सेंटर बनकर रह गया है। मरीजों के लिए सुविधाओं के नाम पर प्राथमिक उपचार छोड़ यहां किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है। रेल यात्रियों या फिर रेल कर्मचारियों के अचानक बीमार पड़ने पर यह अस्पताल केवल मरीजों को रेफर करता है। इमरजेंसी में मरीजों को राउरकेला इस्पात जनरल अस्पताल या राउरकेला सरकारी अस्पताल भेजा जाता है। इस अस्पताल की अव्यवस्था के कारण बंडामुंडा बाजार में स्थित प्राईवेट क्लीनिक में लोगों को इलाज कराना पड़ता है। रेलवे अस्पताल में कुव्यवस्था के कारण यहां दिन-ब-दिन मरीजों की संख्या घटती जा रही है।

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    गौरतलब है कि करोड़ों की लागत से रेलवे अस्पताल का भव्य भवन बनाया गया है। यहां प्रत्येक माह लाखों रुपये चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी, दवा आदि के नाम पर रेलवे का खर्च हो रहा है लेकिन मरीजों का टोटा है। जिससे रेलवे अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।

    आधा दर्जन इलाके के रेलकर्मी है निर्भर: बंडामुंडा रेलवे कॉलोनी के कुल 2600 रेल कर्मचारियों के साथ ही जराइकाले, भालुलता, बिसरा, बांगुरकेला समेत बरसुआं एवं विमलागढ़ सेक्शन के करीब दो हजार रेल कर्मचारी एवं उनके परिवार के स्वास्थ्य का जिम्मा बंडामुंडा रेलवे अस्पताल पर है।

    अस्पताल में नहीं है मूलभूत सुविधाएं : रेलवे अस्पताल में मरीजों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही है। रेलवे के अन्य डिवीजनों में जहां मरीजों की सुविधाओं के लिए रेल प्रशासन व अस्पताल प्रशासन प्रयासरत है। वहीं बंडामुंडा रेलवे अस्पताल में मरीजों के लिए आधुनिक उपचार की व्यवस्था नहीं है। अस्पताल की एंबुलेंस तक जर्जर पड़ी हुई है।

    बस सर्टिफिकेट लेने पहुंचते हैं रेलकर्मी : रेल कर्मचारी अपनी बीमारी के दौरान केवल अनफिट या फिट सर्टिफिकेट लेने अस्पताल आते हैं। रेल कर्मचारियों को इसके लिए भी दो से तीन महीने या फिर उससे भी ज्यादा इंतजार करना होता है।

    डॉक्टर भी उदासीन : नाम नहीं छापने की शर्त पर अस्पताल में भर्ती रेल कर्मचारी कहते हैं कि रविवार को सभी डॉक्टर छुट्टी पर चले जाते हैं। इस कारण मरीजों का हाल लेने वाला कोई नहीं रहता है। रात में इमरजेंसी वार्ड में रहने वाले डॉक्टर घर में रहकर ड्यूटी करते है। मरीज ने बताया कि 20-30 साल पहले इस अस्पताल की हालत बहुत अच्छी थी। रेल कर्मचारियों के साथ-साथ आसपास के लोग भी अपना इलाज कराने आते थे। लेकिन अब हालत खस्ता हो चुकी है। लोग यहां आने से कतराते हैं।

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    मरीजों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आई है। लेकिन हां आधुनिक सुविधाएं नहीं हैं, क्योंकि रेलवे के नियमों के मुताबिक मंडल स्तर पर यही सुविधा मिल सकती है। यहां एक विशेषज्ञ चिकित्सक ही स्वीकृत हैं। जहां तक जर्जर एंबुलेंस की बात है तो इसे बदलना है जिसकी प्रक्रिया शीघ्र शुरू होगी। लेकिन इसमें छह महीने लगेंगे।

    डॉ. संतोष कुजूर, एसीएमएस, बंडामुंडा रेलवे अस्पताल