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    सभी को हृदय से स्वीकार करना ही सामाजिक समरसता

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 07 Oct 2021 09:53 PM (IST)

    हमारा भारत एक विशालकाय देश है। यहां कई जाति धर्म के लोग रहते हैं। इन धर्मों के अलग-अलग नियम होते हैं जिस वजह से किसी भी देश के विकास में यह सामाजिक भेदभाव से कई सारी समस्या उत्पन्न होती है।

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    सभी को हृदय से स्वीकार करना ही सामाजिक समरसता

    हमारा भारत एक विशालकाय देश है। यहां कई जाति धर्म के लोग रहते हैं। इन धर्मों के अलग-अलग नियम होते हैं जिस वजह से किसी भी देश के विकास में यह सामाजिक भेदभाव से कई सारी समस्या उत्पन्न होती है। सामाजिक समरसता से तात्पर्य इस सामाजिक भेदभाव को खत्म करना और समाज के सभी वर्गों के लोगों में प्रेम भाव उत्पन्न करके सामाजिक समरसता अपनाना है यानी समाज के सभी लोग मिलजुलकर प्रेम पूर्वक रहे और उनमें एकता हो, यही सामाजिक समरसता कहलाती है। जिस देश में सामाजिक समरसता होती है वह देश बहुत ही तेजी से विकास करता है क्योंकि समाजिक समरसता की बेहद जरूरत होती है। हमें सभी को समाज में एकता बनाए रखने के लिए सामाजिक समरसता को अपनाना चाहिए और देश को विकास के नए पथ पर आगे बढ़ाना चाहिए। ईश्वर ने सृष्टि में सभी को मनुष्य के रूप में भेजा है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है। इस बात को हृदय से स्वीकार करना ही सामाजिक समरसता है।

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    - नीता श्रीवास्तव, आचार्य, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर।

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    हमारा देश भारत भूमि संतों मुनियों और राष्ट्रभक्तों के खून पसीने से सींची गई तपोभूमि है। यहां कई जाति और धर्म के लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्म और अलग-अलग जाति के लोग अलग-अलग नियमों में बंधे हुए हैं। भाषा, धर्म, जाति, खानपान देवी देवता में भी विविधता है, पर विभिन्न प्रकार के लोगों का समूह होने के बावजूद हम सब एक हैं। इसे ही सामाजिक एकता कहते हैं। सामाजिक समरसता कहने से सभी वर्गों के लोगों में प्रेम भाव जागृत करना और मिलजुल कर प्रेम पूर्वक रहना को समझा जाता है। किसी भी देश का विकास के लिए सामाजिक समरसता का बेहद जरूरत होती है। पुराने जमाने में छुआछूत भेदभाव के कारण सामाजिक समरसता की कमी थी। सामाजिक समरसता से ही सामाजिक एकता की प्रतिष्ठा हो पाएगी। जातिगत और धर्मगत व्यवधान से दूर रहकर स्वयं के व्यवहार में वांछित बदलाव लाना चाहिए । रूढ़ी परंपराओं को आधुनिक विज्ञानी मानकों पर परखा जाना चाहिए। हमारे व्यवहार से सभी लोगों को अपना मित्र बनाने वाला होने से समाज में समरसता का भाव विकसित होगा।

    - सस्मिता आचार्य, आचार्य, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर।

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    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना वह प्रगति नहीं कर सकता। एकता में बल है, यह एक पुरानी कहावत है, इसका मतलब है- हम एक साथ रहे तो हम और मजबूत होते जाएंगे। सामाजिक एकता का अर्थ है- विभिन्न विचारों और भिन्न आस्था के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारा बनाए रखना। मनुष्य समाज में भावना के कारण ही एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं और भावना के कारण ही वे एक दूसरे से दूरी बनाते हैं।

    सामाजिक समरसता का अर्थ है- सभी को अपने समान समझना। जातिगत भेदभाव एवं अस्पृश्यता को दूर कर लोगों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाना तथा समाज के सभी वर्गों एवं वर्णों के मध्य एकता स्थापित करना ही सामाजिक समरसता है। जाति दोष का भेद ही समाज में समरसता का अभाव उत्पन्न करता है। जिस देश में सामाजिक समरसता होती है वह देश बहुत तेजी से विकास करता है। समाज में रहने वाले लोगों में समाज के प्रति सेवा, सहयोग एवं समर्पण का भाव होगा तो देश में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी। सामाजिक एकता एवं समरसता से समाज के लोगों में एकजुटता आती हैं और सभी जाति धर्म के लोग मिलकर एक साथ रहते हैं। सामाजिक समरसता होने से समाज के लोगो में एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना रहती है ।

    -नम्रता शर्मा, आचार्य, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर।

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    सामाजिक समरसता एक ऐसा विषय है जिसकी चर्चा करना एवं उसे ठीक ढंग से कार्यान्वित करना आज समाज की एवं राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता है। समरसता है उद्देश्य हमारा, बढ़े जगत में श्रेय हमारा, कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक समरसता ऐसी संकल्पना है जो जातिगत भेदभाव एवं अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन कर समाज में परस्पर प्रेम और सौहार्द बढ़ाने का कार्य करती है। यदि सामाजिक समरसता समाज में स्थापना होगी तो निश्चय ही उस समाज में सामाजिक एकता की भी स्थापना होगी जो उसे निरंतर प्रगति और विकास के पथ में आगे लेकर जाएगी। कालक्रम के अनुसार सामाजिक समरसता को दो श्रेणी में बांटा गया है। प्राचीन काल से ही विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रम जैसे- यज्ञ, अनुष्ठान एवं पर्व समाज में समरसता स्थापित करते रहे हैं। क्योंकि इनमें समाज के सभी लोग भाग लेते हैं, जिससे लोग परस्पर एक-दूसरे के करीब आते हैं, जिससे समाज में समरसता बढ़ती है। सामाजिक समरसता का एक घटक संयुक्त परिवार प्रथा है। भारत में प्राचीन काल में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलन में रही है, जो लोगों में भावनात्मक सहयोग, चरित्र निर्माण एवं भावी पीढ़ी के समुचित विकास में सहायक रही है। इस प्रकार संयुक्त परिवार प्रथा सदस्यों के बीच समरसता की भावना का विकास करती है।

    - सीमा सिंह आचार्य, सरस्वती शिशु विद्या मंदिर।