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    Raksha Bandhan: भगवान जगन्नाथ को बांधी गई दुनिया की सबसे बड़ी राखी, पटारा बिसोई सेवकों ने की है तैयार

    Updated: Sat, 09 Aug 2025 09:45 PM (IST)

    Raksha Bandhan पर बहनों ने भाइयों को राखी बांधकर आशीर्वाद दिया। भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने भी सुभद्रा से राखी बंधवाई। गम्हा पूर्णिमा पर बलभद्र जयंती मनाई गई। श्रीमंदिर में विशेष अनुष्ठान हुए और दुनिया की सबसे बड़ी राखी (World largest Rakhi) अर्पित की गई। भगवान सुदर्शन चार आश्रमों की यात्रा पर निकले और बलभद्र की प्रतिमा का विसर्जन मार्कंड पुष्करणी में हुआ।

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    पुरी श्रीमंदिर में मनाया गया रक्षा बंधन और बलभद्र जयंती का भव्य उत्सव

    जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। राखी पूर्णिमा के अवसर पर शनिवार को बहनों ने अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधकर रक्षा आशीर्वाद लिया है। ऐसे में पुरी दुनिया को अपनी विभिन्न लीलाओं के जरिए संदेश देने वाले जगत के नाथ जगन्नाथ महाप्रभु एवं उनके बड़े भाई बलभद्र जी ने भी बहन सुभद्रा से राखी बंधवाई और मानवीय लीला का बड़ा संदेश दिया है।

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    आज गम्हा पूर्णिमा (राखी पूर्णिमा) का पावन अवसर को भगवान बलभद्र का जन्मदिन होने के कारण बलभद्र जयंती के रूप में भी मनाया गया। इस शुभ दिन पर पुरी श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई भगवान बलभद्र के जन्मोत्सव और Raksha Bandhan के पर्व को लेकर विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया गया। सुबह सुबह मंदिर का द्वार खुलने के बाद मंगल आरती, अवकाश नीति, भोगमंडप, सर्वांग नीति के बाद बहन सुभद्रा ने राखी बांधी। इसी तरह से संध्या धूप के बाद प्रभु बलभद्र जी का जन्मोत्सव मनाया गया।

    यहां उल्लेखनीय है कि रक्षाबंधन के लिए पटारा बिसोई सेवकों ने दुनिया की सबसे बड़ी राखी (World largest Rakhi) तैयार की है, जिसे मां सुभद्रा ने अपने भाइयों को अर्पित की। साथ ही, उन्होंने राखी उत्सव के लिए विशेष ‘गुआमाला’ भी बनाई है। परंपरा के अनुसार, देवी सुभद्रा की ओर से सिंहारी सेवक भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र के हाथों में राखी बांधी गई।

    इस पावन दिन पर भगवान सुदर्शन चार आश्रमों की यात्रा पर निकले और भगवान बलभद्र के जन्म अनुष्ठान मार्कंड पुष्करणी में सम्पन्न हुए। दोपहर धूप के बाद भगवान सुदर्शन का पहले मंगलार्पण किया गया, फिर मिट्टी से भगवान बलभद्र की प्रतिमा का निर्माण किया गया। पूजा पंडा सेवक प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा कर ‘जातकर्म’ संस्कार आरंभ किया।

    इसके पश्चात पंचोपचार, शीतला मनोही और बंदापना की रस्में पूरी की गई। अंत में भगवान बलभद्र की प्रतिमा का विसर्जन मार्कंड पुष्करणी में किया गया। इसके बाद विमनाबडु सेवक भगवान सुदर्शन को चार आश्रमों की यात्रा पर लेकर रवाना हुए, जहां भ्रमण के बाद वे पुनः श्रीमंदिर लौट आए।

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