समुद्र में कम हो रही हैं मछलियां, खर्च में मुकाबले आय न के बराबर, अधर में लटका मछुआरों व नाव मालिकों का भविष्य
समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जाना मछुआरों और नाव मालिकों के लिए चुनौती बन रही है क्योंकि जितनी लागत और मेहनत लग रही है उस हिसाब से लाभ उतना नहीं मिल रहा है। ऐसे में इस पेशे पर आश्रित लोग चिंंतित हैं।

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। समुद्र से मछली पकड़कर अपना एवं अपने परिवार का जीवन चलाने वाले मछुआरे एवं मछली पकड़ने के लिए नाव व जाल की व्यवस्था करने वाले नाव मालिक खर्च की तुलना में आय नहीं होने से चिंता में पड़ गए हैं। असंतुलित मौसम और अत्यधिक नावों से निराश हैं। समुद्र में मछलियों की संख्या धीरे-धीरे घटने से लाखों रुपये खर्च कर चुके नाव मालिक को नाव बेचने की चिंता सता रही है क्योंकि अपेक्षित मछली पकड़ में नहीं आ रही हैं। ऐसे में इस आजीविका पर निर्भर 3,000 से अधिक मछुआरा परिवारों का भविष्य अंधकारमय है।
खर्च के मुकाबले नहीं हो रही नाव मालिकों और मछुआरों की कमाई
जानकारी के मुताबिक, समुद्र से मछली पकड़ने को तटीय क्षेत्रों के लोगों ने अपनी मुख्य आजीविका के रूप में चुना है मगर अब कई मछुआरे और नाव मालिक इस आजीविका से मुंह मोड़ रहे हैं। कुछ वर्षों में मछली की कई प्रजातियां समुद्र में नहीं पाई गई हैं। दूसरी ओर, दिन-प्रतिदिन नावों के लिए आवश्यक सब कुछ जैसे कि बर्फ, तेल, कर्मचारियों के वेतन, जाल और अन्य वस्तुओं में भारी वृद्धि से मछली पकड़ने के एक नाव के लिए कम से कम 5 लाख रुपये से अधिक खर्च होते हैं। लेकिन इसके विपरीत, जाल में कोई मछली नहीं है।
बाजारों में मछली का भाव कम होने से भी नुकसान
मछली का आयात कम होने और मछली के बाजार भाव कम होने से नाव मालिकों को नुकसान के ऊपर नुकसान उठाना पड़ रहा है। समुद्री मछलियों के प्रजनन सीजन के लिए 15 अप्रैल से 15 जून तक दो महीने का प्रतिबंध हटने के बाद मछली पकड़ने के लिए समुद्र में गईं कुछ नावें मछलियां पकड़ रही हैं, जबकि ज्यादातर नावें अभी भी समुद्र में मछली की तलाश में हैं।
समुद्र में मछली पकड़ना बना कठिन काम
इस बीच, इस अवधि के दौरान मछुआरों के लिए समुद्र में मछली पकड़ना एक कठिन काम बन गया है क्योंकि ओलिव रिडले कछुओं की दुर्लभ प्रजातियों का सामूहिक अंडा दान उत्सव 15 नवंबर से 15 अप्रैल तक शुरू होता है। गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के दौरान कछुए के सामूहिक अंडे दान स्थल गहिरमाथा अभयारण्य में गलती से प्रवेश करने के लिए नौकाओं को जब्त कर लिया जाता है। इसके बाद इन नावों को छुड़ाने में वर्षों लग जाते हैं और लाखों रुपये का जुर्माना लगाया जाता है।
समुद्र में मछली पकड़ने के कई और खतरे
मछुआरों को 15 अप्रैल से 15 जून तक प्रजनन के मौसम के प्रतिबंधों के बाद बाकी समय समुद्र में मछली पकड़नी पड़ती है। वहीं इस समय के दौरान कम दबाव और चक्रवात के भी खतरे रहते हैं और अक्सर नावों को जेटी से बांधकर रखना पड़ता है। इस वर्ष प्रथम चरण में इलिसी, पनियाखिया, चांदी, बहल, खंडा, बूरेई, कुमुति चंपा, फिरिका, उलेशिला, कंटिया और बांब मछली कुछ जाल में फंसी हैं मगर बाजार में मछली का भाव नहीं हो से मछुआरे चिंतित हैं।
लागत के मुकाबले मछलियां नहीं हो रहीं उपलब्ध
नौका मालिक रमेश नायक ने कहा कि अधिकांश समय चक्रवात के खतरे एवं गहरे समुद्र में उच्च स्तर का प्रतिबंध होने के कारण नौकाएं ठीक से मछली पकड़ने में सक्षम नहीं हैं। नाव मालिक विकास परिड़ा ने कहा है कि अगर प्रतिबंधों में ढील नहीं दी गई तो यह महंगा कारोबार अब और नहीं हो पाएगा।
मां धामराई मछुआरा संघ के पूर्व पदाधिकारी अभिमन्यु राउत ने बताया कि लागत की तुलना में मछली उपलब्ध नहीं होने से मछुआरों के साथ-साथ मालिकों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। 2019 की तुलना में 2022 में जहां समुद्री मछली के उत्पादन में 30-40 प्रतिशत की गिरावट आई, वहीं 2020-2021 में कोरोना महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में मछली की कम मांग के कारण मछुआरों को आयात और निर्यात दोनों में भारी नुकसान उठाना पड़ा।
मजबूरी के आगे घुटने टेक रहे मछुआरे और नाव मालिक
मछुआरों और मालिकों ने नौकाओं को खरीदने के लिए लाखों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन कर्मचारियों की अनुपलब्धता और अन्य खर्चों के कारण उन्हें बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। एक अन्य मछुआरे ने कहा कि अगर समुद्र में मछलियों की संख्या में इस तरह से गिरावट शुरू होती है, तो नाव मालिकों को इस साल की शुरुआत से अपनी नावों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
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