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    कहां जाए बेचारे जंगली जानवर! ओडिशा के जंगलों में शिकारियों का आतंक, जंगल छोड़ कर भाग रहे हैं बाघ-हाथी

    ओडिशा के जंगलों में जानवर इन दिनों शिकारियों तस्‍करों और आग लगने की वजह से परेशान हैं। इन पर लगाम कसने में इसलिए भी दिक्‍कतें आ रही हैं क्‍योंकि वन विभाग में कई पद खाली पड़े हैं। ऐसे में जानवर डर के साये में जी रहे हैं।

    By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Fri, 03 Mar 2023 10:15 AM (IST)
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    ओडिशा के जंगलों में शिकारियों का आतंक, जानवर परेशान

    संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। ओडिशा वन विभाग में बीट गार्ड के 40 प्रतिशत से अधिक रेंजर के 58 प्रतिशत और अन्य फील्ड स्तर के 35 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। वन एवं पर्यावरण विभाग के आंकड़ों के अनुसार वन रक्षकों के प्रथम पंक्ति रक्षक के स्वीकृत 5,376 पदों में से 2,169 पद रिक्त हैं। ओ‍िशिकारियों, तस्करों, जंगल की आग और अन्य अनधिकृत गतिविधियों के खिलाफ जंगल की रक्षा में इस पद पर बड़े पैमाने पर रिक्तियां वन और वन्यजीव अधिकारियों के लिए एक चुनौती बन गई हैं। हालांकि, यह एकमात्र मुद्दा नहीं है। विभाग फॉरेस्टर, डिप्टी रेंजर, फॉरेस्ट रेंजर, सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) और मंडल वन अधिकारी (डीएफओ) सहित कई अन्य रैंकों पर भी कर्मचारियों की कमी है।

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    वन विभाग के कई पद हैं खाली

    आंकड़ों के अनुसार, विभाग के वन और वन्यजीव प्रभागों में कुल 551 रेंजरों में से 325 पद खाली पड़े हैं, जिसके कारण विभाग को कई स्थानों पर अपने डिप्टी को पद का प्रभार सौंपना पड़ा है। कुल 282 में से 100 से अधिक डिप्टी रेंजर के पद भी खाली हैं। दूसरी ओर राज्य में वनपाल के 2530 पदों में से 478, एसीएफ के 341 में से 174 और डीएफओ के 111 पदों में से 22 पद अभी भरे जाने हैं।

    विधानसभा में उठा विभाग में रिक्‍त पदों का मुद्दा

    वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रदीप कुमार अमात ने हाल ही में विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि विभाग के 12,827 स्वीकृत पदों में से 5,272 पद रिक्त हैं। उन्होंने विधानसभा को सूचित किया था कि कुल 8,238 व्यक्तियों को राज्य में वन और वन्यजीव प्रबंधन के लिए अनुबंध और आउटसोर्सिंग के आधार पर फील्ड स्तर पर लगाया गया है। मंत्री ने बताया कि राज्य सरकार इस संबंध में लगभग 142.13 करोड़ खर्च कर रही है ।

    ओडिशा के सिमलीपाल व अन्य अभ्यारण्य से भाग रहे हैं वन्यजीव

    ओडिशा के सिमलीपाल नेशनल पार्क (एसएनपी) सहित अन्य अभयारण्यों में जंगली जानवर अपने सामान्य प्राकृतिक आवास को छोड़ रहे हैं और शिकारियों से लगातार खतरे के कारण मानव बस्तियों में भटकने के बाद लौटने से डर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार जानवर खुद को बचाने की कोशिश में अपने प्राकृतिक आवास छोड़ने के बाद अपने आवास का ट्रैक खो देते हैं और भटक जाते हैं।

    जंगली जानवर चुन रहे हैं कहीं और रहने का विकल्‍प

    सिमलीपाल अभयारण्य के सुरक्षात्मक क्षेत्र में रहने वाला और बाद में पड़ोसी क्योंझर में भटकने वाला एक रॉयल बंगाल टाइगर इसका एक जीता जागता उदाहरण है। माना जा रहा है कि बाघ मानव आवास की ओर बढ़ रहा है, जिससे क्योंझर जिले के निवासियों में दहशत और चिंता फैल गई है। हाथी और अन्य जंगली जानवर भी वन्यजीव अभयारण्य छोड़कर अनारक्षित वनों और जन बस्तियों के आसपास रहने का विकल्प चुन रहे हैं।

    शिकारियों की गोलियों की आवाज से जानवरों में डर

    शिकारियों द्वारा चलाई गई गोलियों की आवाज से वन्य जीवों में इतना भय व्याप्त हो गया है कि वे सिमलीपाल सहित अन्य अभयारण्यों में अपने प्राकृतिक आवास में वापस जाने से घबरा रहे हैं। वन्यजीव प्रेमी और प्रकृति प्रेमी आशंकित हैं कि अगर यह समस्या लंबे समय तक बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब सिमिलिपाल अभयारण्य के साथ ओडिशा का अन्य अभयारण्य जंगली जानवरों से विहीन हो जाएगा।

    जंगलों हाथियों का शव बरामद

    अगर हम केवल सिमलीपाल अभ्यारण्य की ही बात करें, तो सिमलीपाल वन प्रभाग के जेनाबिल वन परिक्षेत्र के अंतर्गत गुरुंडिया वन खंड में तीन वन अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने और एक हाथी के शिकार और बाद में उसके शव को जलाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार करने के बाद वन विभाग कोई प्रगति करने में विफल रहा है। पंद्रह से अधिक वन अधिकारियों को हाथी का अवैध शिकार करने और शव जलाने में शामिल बताया गया था, लेकिन वन विभाग ने उनमें से केवल तीन को ही गिरफ्तार किया है।

    शिकारियों का कैसे हो रहा जंगल में प्रवेश

    इसी तरह, अभ्यारण्य के दक्षिण वन मंडल के पीठाबाटा वन परिक्षेत्र के बालीखाई वन खंड में हाल ही में एक हाथी के दांत काटे जाने के मामले में वन विभाग का उदासीन रवैया सामने आया है। घटना को 21 दिन बीत चुके हैं, लेकिन वन विभाग अभी तक शिकारियों को गिरफ्तार नहीं कर पाया है। चर्चा है कि अगर वन अधिकारी जंगल की रक्षा के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर गश्‍त कर रहे हैं, तो शिकारी उनकी मौजूदगी में जंगल में कैसे घुस सकते हैं और जंगली जानवरों का शिकार कर सकते हैं?

    परेशन जानवर इधर-उधर भटकने को मजबूर

    इसी तरह, दो महीने के भीतर तस्करों के पास से तीन बाघों की खाल जब्त करना इस बात का संकेत है कि एसएनपी जंगली जानवरों के लिए असुरक्षित हो गया है। अब, एक रॉयल बंगाल टाइगर सिमलीपाल के मुख्य क्षेत्र से क्योंझर जिले के गांवों की ओर भटक रहा है, जिसने वन अधिकारियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। वन अधिकारी इस बात से चिंतित हैं कि एक रॉयल बंगाल टाइगर मुख्य क्षेत्र से कैसे भाग कर पड़ोसी जिले में भटक रहा है।

    स्थानीय संगठन भांजा सेना के जिला अध्यक्ष पिंटू मैती ने आरोप लगाया कि जंगली जानवर अपनी जान बचाने के लिए बाहर भाग रहे हैं क्योंकि रॉयल बंगाल टाइगर्स की गतिविधियों पर नजर रखने वाले शिकारी नियमित अंतराल पर मुख्य क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं।

    मामला होता जा रहा गंभीर

    इसके अलावा, सिमलीपाल नेशनल पार्क के अंदर कीटनाशकों को ले जाने पर प्रतिबंध है, लेकिन एक अनुबंधित वन कर्मी तुरम पुर्ती ने कथित रूप से वन कार्यालय में संग्रहीत कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली। पुर्ती, जो एकमात्र गवाह था जिसने एक हाथी के अवैध शिकार और उसके बाद शव को जलाने पर तीन वन अधिकारियों द्वारा धमकी और गाली दिए जाने के बाद अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली या उसे मार दिया गया। वन्यजीव प्रेमियों ने आरोप लगाया कि जहां जांच ठप हो गई है और अब जांच में गड़बड़ी हो रही है वहीं कोई भी वरिष्ठ अधिकारी इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहा है।

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