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    गर्भ में पल रहे जुड़वा बच्चों में से पहले जन्मा मृत बच्चा; फिर 52 दिन बाद बिना ऑपरेशन हुआ स्वस्थ बच्चे का जन्म

    By Jagran NewsEdited By: Arijita Sen
    Updated: Fri, 06 Jan 2023 04:15 PM (IST)

    महिला के पेट में जुड़वां बच्‍चे थे। प्रसव पीड़ा के बाद उसने पहले मृत बच्‍चे का जन्‍म दिया। चूंकि दूसरा बच्‍चा उस वक्‍त अपरिपक्‍व था इसलिए डॉक्‍टरों ने ...और पढ़ें

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    डॉक्‍टरों ने 52 दिनों के बाद दूसरे बच्‍चे का प्रसव कराया

    शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। गर्भ में जुड़वा बच्चा होने की बात पता चलने के बाद अक्टूबर महीने में एक महिला ने पहले मृतक शिशु को जन्म दिया और फिर दूसरे शिशु को दिसंबर महीने में जन्म दिया है। पहला बच्चे का जन्म अक्टूबर महीने में हुआ था जबकि दूसरे बच्चे का जन्म 52 दिन बाद दिसंबर महीने में हुआ। इन 52 दिनों में कीम्स (कलिंगा इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस) के डाक्टरों ने अथक प्रयास करते हुए मां एवं शिशु दोनों का जीवन बचाने में सफलता हासिल की है।

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    IVF प्रक्रिया से महिला ने किया था गर्भधारण

    मां, मोटापे, उच्च रक्तचाप और मधुमेह से पीड़ित थी, लेकिन कीम्स के डॉक्टरों की बदौलत मां और बच्चा दोनों अब स्वस्थ हैं। यहां सबसे खास बात यह है कि आईवीएफ प्रक्रिया से मां ने गर्भधारण किया है, जो कि ओडिशा स्वास्थ्य देखभाल के इतिहास की पहली घटना है, जब लंबे समय में बिना सिजेरियन सेक्शन के जुड़वा बच्चों को जन्म दिया गया है।

    प्रसव पीड़ा के बाद महिला ने पहले मृत शिशु को दिया जन्‍म

    जानकारी के मुताबिक, कटक जिले के केंदुपटना की प्रभाति बेउरा (31) प्रसव पीड़ा होने पर 28 अक्टूबर को कीम्स डॉक्टर के पास पहुंची। परीक्षणों के बाद यह पाया गया कि उनके पेट में जुड़वा बच्चा है। इसके बाद 29 अक्टूबर को प्रभाति को सामान्य प्रसव पीड़ा हुई और उसने एक मृत शिशु को जन्म दिया। चूंकि पेट में रहने वाला अन्य एक शिशु अपरिपक्व होने एवं सामान्य प्रसव ना होने से डॉक्टर प्रभाति का सावधानी से इलाज करने के साथ बच्चे को पेट में ही रखने को बाध्य हुए। मां को मोटापा, उच्च रक्तचाप और मधुमेह था और डॉक्टरों ने मां और बच्चे दोनों का जीवन रक्षक दवाओं से इलाज किया।

    52 दिनों के बाद दूसरे बच्‍चे का डॉक्‍टरों ने कराया प्रसव

    आईवीएफ प्रक्रिया से गर्भधारण होने के कारण दोनों शिशु की गर्भ नाली अलग हो गई थी। इसका फायदा उठाकर कीम्स के डॉक्टर मां और बच्चे दोनों को बचाने में कामयाब रहे। 52 दिनों के लंबे अंतराल के बाद 19 दिसंबर को पेट में रहने वाले अन्य शिशु का प्रसव कराया गया। मृतक बालिका का वजन 550 ग्राम था, जबकि जन्म लेने वाले बालक का वजन 1370 ग्राम है। बच्चे को आईसीयू में रखा गया है।

    कीम्‍स के डॉक्‍टरों ने स्‍वीकारी चुनौती

    डॉ ज्योत्सनामयी पंडा, डॉ प्रमिला जेना और उनकी मेडिकल टीम ने इस तरह के दुर्लभ इलाज को एक चुनौती के रूप में लिया। उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं के उपचार का प्रबंधन करने के लिए कीम्स के पास एक हाईस्कोप गर्भावस्था निगरानी समिति है। समिति में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ शामिल हैं। यह समिति समय-समय पर बुनियादी रोगी देखभाल सिद्धांतों के आधार पर ऐसी गर्भवती महिलाओं के इलाज और देखभाल के लिए आवश्यक निर्णय लेती है।

    ICU में हो रही है बच्‍चे की देखभाल

    कीम्स बाल रोग विशेषज्ञ डा. सत्या पंडा और डा मानस नायक ने कहा है कि मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं, फिर भी कुछ और दिन निगरानी में रखा जाएगा, जब तक कि बच्चे का वजन 1750 ग्राम तक नहीं पहुंच जाता। कीट एंड किस के संस्थापक अच्युत सामंत ने इस तरह के दुर्लभ सफल इलाज के लिए संबंधित मेडिकल टीम को धन्यवाद दिया और मां और बच्चे दोनों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।

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