Odisha News: ओडिशा हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, माता-पिता कमाने में असमर्थ तो ही भरण-पोषण के अधिकारी
पिता को ट्रिब्यूनल कोर्ट से गुजारा भत्ता देने के मिले आदेश को चुनौती देकर बेटा ओडिशा हाईकोर्ट पहुंचा था। कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि केवल वरिष्ठता के आध ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, कटक। उड़ीसा हाईकोर्ट के न्यायाधीश शशिकांत मिश्र की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण राय देते हुए कहा है कि माता-पिता कमाने में असमर्थ हैं तो भरण पोषण के अधिकारी होंगे। उन्हें अपने बच्चे या रिश्तेदार से भरण पोषण के लिए केवल वरिष्ठता को ही आधार नहीं माना जा सकता है। हालांकि, अगर वे कमाने में असमर्थ हैं या उनके पास आय के कोई स्रोत नहीं हैं तो वे भरण-पोषण के पात्र हैं।
आय का साधन न होने पर भरण-पोषण के अधिकारी
उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, एक वरिष्ठ नागरिक जो अपने जीवन का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, ऐसे मामलों में उनके भरण-पोषण के लिए निर्देशित किया जा सकता है।
यदि उनका बच्चा या रिश्तेदार इसकी उपेक्षा कर रहा है। न्यायमूर्ति शशिकांत मिश्र की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है।
गुजारा भत्ता देने का आदेश रद
इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने पिता को गुजारा भत्ता देने के लिए बेटे को दिए गए आदेश भी रद कर दिया है। उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता के मुद्दे पर फिर से सुनवाई करने के लिए ट्रिब्यूनल कोर्ट को निर्देश दिया है। ट्रिब्यूनल दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका देगा।
- यह याचिका विचाराधीन है, उच्च न्यायालय के निर्देश पर याचिकाकर्ता बेटे की ओर से जमा की गई राशि ट्रिब्यूनल में मामले के निपटारे तक स्थायी जमा के रूप में रहेगी।
- ट्रिब्यूनल एक महीने के भीतर मामले का फैसला करेगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि पिता और पुत्र दोनों 24 फरवरी को न्यायाधिकरण के समक्ष पेश होंगे।
क्या है पूरा मामला
जानकारी के अनुसार 69 वर्षीय पिता को बेटे ने घर से बाहर निकाल दिया था और उनका पालन-पोषण नहीं कर रहा था। पीड़ित पिता ने गुजारा भत्ते के तौर पर मासिक 5,000 रुपये की मांग करते हुए अपने बेटे के खिलाफ रायगढ़ उप-जिलाधीश और भरण-पोषण ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया था।
ट्रिब्यूनल ने 16 फरवरी, 2024 को मामले की सुनवाई करते हुए बेटे को निर्देश दिया था कि वह घर के गेट की चाबी अपने पिता को सौंप दे और भरण पोषण के रूप में प्रति माह 5,000 रुपये का भुगतान करे। बेटे ने फैसले के खिलाफ रायगढ़ जिला जिलाधिश के साथ-साथ अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपील की थी।
जिला कलेक्टर ने 23 जुलाई, 2024 को 16 फरवरी ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखते हुए फैसला जारी किया था। बेटे ने इस तरह के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका में दलील दी गई थी कि ट्रिब्यूनल में ऐसा कोई दस्तावेजी साक्ष्य पेश नहीं किया गया है कि पिता अपनी परवरिश करने में असमर्थ है, ऐसे में मासिक गुजारा भत्ता राशि का भुगतान करने का आदेश कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है।

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