भगवान जगन्नाथ को सोने के वेश में देखने उमड़ा भक्तों का सैलाब, 138 प्रकार के रत्नों से प्रभु को किया सुसज्जित
पवित्र एकादशी तिथि में आज चतुर्धा विग्रहों ने सोना वेश में भक्तों को दर्शन दिया है। इसके लिए चतुर्धा विग्रहों को नाना प्रकार के स्वर्ण आभुषणों से सजाया गया। महाप्रभु के इस अपूर्व रूप को देखने के लिए लगभग 15 लाख श्रद्धालुओं का जमावड़ा जगन्नाथ धाम में हुआ है। ऐसे में दर्शन के लिए लगी भीड़ को ध्यान में रखते हुए जगन्नाथ धाम में सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए गए।

जागरण संवाददाता, पुरी। पवित्र एकादशी तिथि में आज चतुर्धा विग्रहों ने सोना वेश में भक्तों को दर्शन दिया है। इसके लिए चतुर्धा विग्रहों को नाना प्रकार के स्वर्ण आभुषणों से सजाया गया।
महाप्रभु के इस अपूर्व रूप को देखने के लिए लगभग 15 लाख श्रद्धालुओं का जमावड़ा जगन्नाथ धाम में हुआ है। ऐसे में दर्शन के लिए लगी भक्तों की भीड़ एवं सोना वेश को ध्यान में रखते हुए जगन्नाथ धाम में सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए गए।
गदगद नजर आए भक्त
वहीं दूसरी तरफ चांदी की परत से सुशज्जित सिंहद्वार को देखकर भी भक्त गदगद नजर आए। महाप्रभु के इस अपूर्व एवं अनुपम रूप का दर्शन भक्त आत्म विभोर हो गए।
प्रभु के श्रीपयर, श्रीभुज के साथ मस्तिस्क पर सोने की किरिटी, कमर में सोने की पट्टी ओड़िआणी, कान में कुंडल, आंख में भंवरी के ऊपर चन्द्र एवं सूर्य, गले में घागड़ा, बाहाड़ा, सेवती, कदम्ब एवं बाघनखी जैसे आभूषणों से सजाया गया था।
138 प्रकार के रत्नों ने सुसज्जित दिखे भक्त
इसके साथ ही विशेष आयुध एवं आभूषण से सुसज्जित किया गया। ब्रह्राण्ड के ठाकुर को कुल 138 प्रकार के रत्न से सुसज्जित देख भक्त आश्चर्यचकित होने के साथ ही पुलकित हो रहे थे।
महाप्रभु का एक वर्ष में पांच बार सोना का वेश किया जाता है। चार बार रत्न सिंहासन पर जबकि एक बार रथ के ऊपर प्रभु को सोने के वेश में सजाया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में रत्न सिंहासन पर चतुर्धा विग्रहों को माघपूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा, एवं दशहरा के अवसर पर सोने के वेश में सजाया जाता है और प्रभु भक्तों को सोने के वेश में दर्शन देते हैं।
हर धर्म के लोग करते हैं महाप्रभु के दर्शन
हालांकि, जगन्नाथ मंदिर के अंदर सभी वर्ग या धर्म संप्रदाय के लोग महाप्रभु के इस अनुपम वेश का दर्शन नहीं कर पाते हैं, मगर रथ के ऊपर होने वाले सोना वेश का हर धर्म एवं संप्रदाय के लोग महाप्रभु का दर्शन करते हैं।
सोना वेश के इतिहास के ऊपर नजर डालें तो राजा कपिलेन्द्र देव के समय से महाप्रभु के सोने का वेश आरंभ हुआ है। कपिलेन्द्र देव कृष्णानदी तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।
कई राजाओं को पराजित कर उनके किरिटी, मुकुट, सिंहासन एवं सोना को 16 हाथियो की पीठ पर लादकर लाए थे। इस सोने को उन्होंने अपने कार्य में नहीं लगाकर महाप्रभु के कार्य में लगा दिए।
विभिन्न राज्य पर विजय प्राप्त कर राजा कपिलेन्द्र देव द्वारा लाए गए सोना से महाप्रभु के लिए विभिन्न अलंकार तैयार किए गए थे। महाप्रभु निराकार, निरंजन, परमब्रह्म हैं।
दारूब्रह्म के हाथ एवं पैर नहीं होने की बात जो लोग कहते हैं, आज उन्हीं लोगों को महाप्रभु ने स्वयं सम्पूर्ण होकर रथ पर बिराजमान हैं।
महाप्रभु को आज सोने के श्रीभुज एवं श्री पयर लगाया गया है। रथयात्रा अंतिम चरण में आज महाबाहु के इस रूप का दर्शन कर भक्त भी खुद को धन्य मान रहे हैं।
कड़ी की गई सुरक्षा व्यवस्था
महाप्रभु के सोना वेश के लिए पुरी में भक्तों की भीड़ को ध्यान में रखते हुए पुलिस प्रशासन की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई थी। इस वर्ष ड्रोन के माध्यम से ट्रैफिक संचालन किया गया।
सोना वेश में भीड़ को नियंत्रित करने एवं आ रहे श्रद्धालुओं को परेशानी ना हो इसके लिए 51 प्लाटुन पुलिस फोर्स तैनात की गई थी। इसके साथ ही बड़दांड को जोड़ने वाले 16 मार्ग को सील कर दिया गया था।
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