RS चुनाव को लेकर AAP में फिर महाभारत, जानें किसने-किसको बताया 'कौरव'
निजी मतभेदों के चलते कुमार विश्वास के नाम पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व राजी नहीं है।
नई दिल्ली (आशुतोष झा)। राज्यसभा की तीन सीटों पर दावेदारी को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) का भीतरी संघर्ष बेशक बृहस्पतिवार को सड़क पर आ गया है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व अब भी चुप्पी साधे हुए है। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित आप कार्यालय के बाहर और भीतर धरना व प्रदर्शन की तैयारी में जुटे कुमार विश्वास के सैकड़ों समर्थक देर शाम विश्वास का ट्वीट आने पर ही शांत हुए। उन्होंने ट्वीट में फिर दोहराया कि पारदर्शिता के मुद्दों के लिए संघर्ष करें, हित-अहित के लिए नहीं। स्मरण रखिए अभिमन्यु के वध में भी उसकी विजय है।
इससे पहले जब कुमार विश्वास राजस्थान के प्रभारी बने थे तब कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान अपनी तुलना अभिमन्यु से की थी। अब राज्य सभा की सदस्यता को लेकर आप के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के खेमे ने इस बार आर-पार के संघर्ष के लिए कमर कस ली है।
विश्वास खेमे की सीधी टक्कर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खेमे से है। विश्वास समर्थकों का दावा है कि वह एक व्यक्ति की तानाशाही बर्दाश्त नहीं करेगे।
अगर कुमार विश्वास को टिकट नहीं मिलता तो विरोधी गुट के साथ रहने का कोई तुक नहीं बनता। जिस प्रकार कुमार खुद की तुलना अभिमन्यु से कर रहे हैं, कार्यकर्ता कुमार विरोधी गुट को कौरव साबित करने में जुटे हैं।
पार्टी ऑफिस पर प्रदर्शन कर रहे नाम उजागर न करने की शर्त पर एक कार्यकर्ता ने बताया कि अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास व संजय सिंह आप की वह बुनियाद है, जिस पर दिल्ली में सरकार बनी है। इन्हीं नेताओं के सहारे पार्टी को पूरे देश में भी पहचान मिली है।
वहीं, केजरीवाल, सिसोदिया व विश्वास की पार्टी बनने से पहले की दोस्ती भी रही है। सियासत में आने के बाद कुछ ऐसे लोग पार्टी से जुड़ गए, जिन्होंने न सिर्फ पुरानी दोस्ती में दरार डाली, बल्कि सियासी तौर एक-दूसरे के बीच दुश्मनी भी करा दी है।
इसका सबसे ज्यादा नुकसान विश्वास को हुआ। पार्टी खड़ी करने में अहम भूमिका निभाने वाले संस्थापक सदस्य व तेज-तर्रार नेता विश्वास को हाशिये पर डालने की कोशिश हो रही है। आलम यह है विश्वास को राज्य सभा में भेजने लायक तक नहीं समझा जा रहा है।
सूत्रों की मानें तो निजी मतभेदों से कुमार विश्वास के नाम पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व राजी नहीं है। वहीं, संजय सिंह और आशुतोष के नाम पर भी अभी ज्यादा विचार नहीं हुआ है।
पार्टी ने अभी तक बाहर की सात नामचीन हस्तियों से संपर्क किया है, लेकिन इनमें से किसी ने भी आप के दम पर राज्य सभा जाने पर अपनी सहमति नहीं दी। इसकी अहम वजह पार्टी की खोती सियासी साख बनी है।
पार्टी नेतृत्व का कहना है कि अभी पीएसी की बैठक नहीं हुई है। तीन-चार जनवरी को इसकी बैठक होगी। इसमें राज्य सभा भेजे जाने वाले नामों पर चर्चा होगी। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी हर तरह के विकल्प पर विचार कर रही है।
बता दें कि बीते दिनों चुनाव आयोग ने राज्य सभा चुनाव की अधिसूचना जारी की थी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि पाच जनवरी होगी। वहीं, 16 जनवरी को चुनाव होना है।
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