भारत और जापान के बीच ऐतिहासिक परमाणु करार, NSG पर मिला समर्थन
पीएम की इस यात्रा के दौरान जापान ने एनएसजी की सदस्यता को लेकर भारत के समर्थन का भी एलान कर दिया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कूटनीति के मामले में जापान को बेहद पारंपरिक माना जाता है लेकिन आज भारत के लिए जापान सरकार ने एक अहम परंपरा को तोड़ दिया। इसी का नतीजा है कि भारत व जापान के बीच टोक्यो में ऐतिहासिक आण्विक करार पर हस्ताक्षर हो गया। यह हस्ताक्षर पीएम नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम शिंजो एबे के बीच शुक्रवार को चली लंबी द्विपक्षीय वार्ता के बीच किया गया।
भारत और जापान के बीच नौ द्विपक्षीय सहयोग संधियों पर हस्ताक्षर किये गये जो इन दोनो देशों के आपसी रिश्तों को और मजबूती देंगे।जापान के पीएम एबे के साथ व्यक्तिगत रिश्ते बना चुके मोदी इस समझौते को अपनी सरकार की एक अहम उपलब्धि के तौर पर देख सकते हैं। जापान दुनिया में आण्विक युद्ध से प्रभावित एकमात्र देश है। इसलिए वह आण्विक मुद्दे पर बेहद सख्त रवैया अपनाता है।
वर्ष 1998 में भारत ने जब परमाणु विस्फोट किया था तब जापान ने सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था। लेकिन नए समझौते के मुताबिक अब जापान की कंपनियां न सिर्फ भारत में आण्विक ऊर्जा संयंत्र लगा सकेंगी बल्कि आण्विक ऊर्जा बनाने के लिए जरुरी तकनीकी भी भारत अब जापान से ले सकेगा। भारत ने अभी तक नाभिकीय अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किया है इस लिहाज से यह समझौता बेहद अहम हो जाता है।
मोदी ने कहा भी है कि, जापान के साथ हुए समझौते ने हमें एक कानूनी ढांचा उपलब्ध कराया है कि एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावजूद हम आण्विक ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल में जिम्मेदारी से काम करेंगे और परमाणु अप्रसार के लिए भी काम करेंगे।
उन्होंने जापान सरकार व पीएम एबे को धन्यवाद भी दिया है।जापान को आण्विक ऊर्जा तकनीकी में दुनिया में सबसे बेहतरीन मानी जाती है। वैसे भारत अभी तक अमेरिका, रूस, साउथ कोरिया, मंगोलिया, फ्रांस, नामिबिया, अर्जेटीना, कनाडा, कजाखिस्तान, आस्ट्रेलिया के साथ परमाणु करार कर चुका है। इन संधियों के बलबूते ही भारत अगले दो दशकों में भीतर 60 हजार मेगावाट बिजली आण्विक ऊर्जा से बनाने की योजना बना चुका है। मोदी ने यह कहा भी है कि इस समझौते से हमें जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने में मदद मिलेगी।
एबे ने कहा है कि, ''जापान पूरी दुनिया से परमाणु हथियारों का खात्मा करना चाहता है। यह समझौता इस उद्देश्य से ही किया गया है।'' सनद रहे कि जापान में इस समझौते के प्रस्ताव का काफी राजनीतिक विरोध हो रहा था। पीएम एबे ने कितना बड़ा कदम उठाया है यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जापान ने अभी तक किसी ऐसे देश के साथ आण्विक समझौता नहीं किया जिसने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है।मोदी और एबे के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में साउथ चाइना सी का मुद्दा भी उठा जो पड़ोसी देश चीन को नागवार गुजर सकता है।
इनकी वार्ता के बाद दोनों देशों की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि समुद्र में आवागमन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के नियमों का सभी देशों को पालन करना चाहिए। भारत व जापान साउथ चाइना सी के तनाव से जुड़े सभी देशों से आग्रह किया है कि वह आपसी समझ बूझ व बातचीत से इसे दूर करे। साथ ही किसी भी पक्ष को बल इस्तेमाल करने की धमकी भी नहीं देनी चाहिए व तनाव बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं उठाने चाहिए। बताते चलें कि एक दिन पहले ही चीन सरकार के प्रमुख पत्र ने भारत व जापान को साउथ चाइना सी से अलग रहने की ताकीद किया था।
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