पाकिस्तान में महिलाओं के लिए अब बुर्का पहनना जरूरी नहीं
पाकिस्तान में महिलाओं को बुर्का पहनने की बंदिश से मुक्ति मिलने जा रही है। एक संवैधानिक इस्लामिक निकाय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में इस आशय की व्यवस्था दी है। फैसले में कहा गया है कि इस्लामिक कानून के तहत महिलाओं के लिए चेहरे, हाथ और पैर को ढंकना जरूरी नहीं
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में महिलाओं को बुर्का पहनने की बंदिश से मुक्ति मिलने जा रही है। एक संवैधानिक इस्लामिक निकाय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में इस आशय की व्यवस्था दी है। फैसले में कहा गया है कि इस्लामिक कानून के तहत महिलाओं के लिए चेहरे, हाथ और पैर को ढंकना जरूरी नहीं है।
सोमवार को इस्लामिक सिद्धांत परिषद (सीआइआइ) की बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता मौलाना मोहम्मद खान शेरानी ने की। बैठक के बाद सीआइआइ प्रमुख ने मीडिया को बताया, 'चेहरे, हाथों को कलाई तक और पैरों को ढंकना मुस्लिम महिलाओं के लिए अनिवार्य नहीं है।' उन्होंने कहा कि इससे कहीं अच्छा नियमों का पालन करना और समाज में सावधान होकर रहना है। शेरानी ने साफ किया कि यदि नुकसान का खतरा हो तो चेहरे और पूरे शरीर को ढंकना अनिवार्य है। वह हालांकि नुकसान को परिभाषित नहीं कर सके।
सीआइआइ की बैठक में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी की डॉ. शामिआ रहील काजी भी उपस्थित थी। बुर्के पहन कर आने के बावजूद उन्होंने इस फैसले का विरोध नहीं किया।
सीआइआइ प्रमुख शेरानी अभी तक महिलाओं के लिए बुर्का पहनने के समर्थक हैं। इसके बावजूद उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि इस्लाम में ऐसा करना अनिवार्य नहीं है।
कट्टरपंथी परिवारों को लाभ :
ज्ञात हो कि चेहरा पूरी तरह ढका रहने से पाकिस्तान में कट्टरपंथी परिवारों के लिए कंप्यूटरीकृत राष्ट्रीय पहचान कार्ड (सीएनआइसी) हासिल करना मुश्किल हो गया था। इस कार्ड के लिए महिलाओं को फोटो खिंचवाते समय चेहरे से नकाब हटाना जरूरी है। माना जा रहा है कि सीआइआइ की व्यवस्था से सीएनआइसी में ऐसी महिलाओं को आसानी होगी।
संवैधानिक है सीआइआइ :
इस्लामी कानून तैयार करने में मदद के लिए 1973 में सीआइआइ की स्थापना की गई थी। इसके फैसले सरकार के लिए अनिवार्य नहीं होते हैं।