जानें, EU से ब्रिटेन के अलग होने पर भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना होगा असर
ब्रिटेन में ईयू से अलग होने के लिए जनमत संग्रह हो रहा है। जानकारों का मानना है कि जनमत संग्रह के फैसले का विश्व अर्थव्यवस्था पर गहरा असर होगा।
लंदन। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने अथवा बाहर निकलने (ब्रेक्जिट) को लेकर आज होने वाले जनमत संग्रह पर पूरी दुनिया की नजर है। जनमत संग्रह के पहले शेयर बाजारों, बॉन्ड और रुपए में उठा-पटक के बीच रिजर्व बैंक ने बुधवार को वित्तीय बाजार में स्थिति सामान्य बनाए रखने के लिए नकदी समर्थन समेत सभी जरूरी कदम उठाए जाने का वादा किया है।
भारत पर पड़ने वाला असर
ब्रिटेन के ईयू से बाहर जाने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. सबसे बड़ी चिंता यूरो मुद्रा के कमजोर होने की है. अगर यूरो कमजोर होती है तो डॉलर मजबूत होगा. लिहाजा इसका असर भारतीय मुद्रा रुपया पर भी पड़ेगा। रुपया के कमजोर होने की आशंका बढ़ जाएगी. उधर यूरोपियन यूनियन के देशों में भारत का ब्रिटेन से सबसे बढ़िया संबंध है। ब्रिटेन के रास्ते अन्य देशों में भारत व्यापार कर सकता है। उसकी संभावनाएं भी कम हो जायेगी।
ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से अलग होने की वजह कहीं मुसलमान तो नहीं ?
जनमत संग्रह के नतीजे का असर पूरी दुनिया में दिखेगा। ब्रेक्जिट टर्म बेहद लोकप्रिय है। ब्रिटेन के भीतर पहली बार यूरोपियन यूनियन के बाहर रहने को लेकर चर्चा उस वक्त शुरू हो गयी जब ग्रीस आर्थिक संकट में फंस चुका था। ग्रीस व इटली के गंभीर संकट का असर यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों पर भी पड़ रहा था। ब्रिटेन यूरोप का बेहद अहम देश है। अन्य यूरोपियन देशों के मुकाबले वह आर्थिक व समारिक रूप से काफी मजबूत है। ब्रिटेन की सीधी पहुंच अमेरिका के व्हाइट हाउस तक है. इस लिहाज से देखा जाये तो उसकी पहचान एक सक्षम देश के रूप में है। वहां के लोग नहीं चाहते थे कि दूसरे देशों की गलतियों के वजह से उसे नुकसान उठाना पड़े।
यूरोपियन यूनियन से बाहर जाने के पीछे की वजह
विशेषज्ञों की माने तो ब्रिटेन के लोग अपने सांस्कृतिक पहचान को लेकर बेहद सजग रहते है। ब्रिटेनवासियों को ऐसा महसूस हो रहा है कि उन्हें यूरोपियन यूनियन में रहने से पहचान का संकट पैदा हो गया। दूसरी वजह, वहां आने वाली शरणार्थियों की संख्या में लगातार वृद्धि को भी बताया जा रहा है। यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों के मुकाबले ब्रिटेन ने काफी कम शरणार्थियों को स्वीकार किया है। उधर शरणार्थी बेहद कम वेतन में काम करने को तैयार है। यूरोपियन यूनियन के अन्य सदस्य पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के ब्रिटेन आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है। ऐसे हालत में रोजगार को लेकर संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। साल 1957 में जब यूरोपियन यूनियन की स्थापना हुई थी तो ब्रिटेन शामिल नहीं होना चाहता था। 1973 में ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में शामिल हुआ।
यूरोपियन यूनियन में बने रहने के पीछे की वजह
ज्यादातर अर्थशास्त्रियों की माने तो ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से बाहर होना घाटे का सौदा साबित होगा। वह भी तब जब पहले से ही दुनिया के हर देश वैश्विक मंदी का माहौल है। यूरोप, ब्रिटेन का सबसे बड़ा निर्यातक है। यही नहीं ब्रिटेन में एफडीआई का सबसे बड़ा सोर्स भी यही देश हैं।