मिट जाना ही जिनकी नियति है, पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ बर्बरता के किस्से नए नहीं
पाकिस्तान में 95 प्रतिशत मुस्लिम हैं और शेष पांच प्रतिशत अन्य समुदाय। इनमें सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू है लेकिन कुल जनसंख्या में उसकी भागीदारी ...और पढ़ें

राजीव सचान: बीते सप्ताह भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची को यह कहना पड़ा कि पाकिस्तान को अपने यहां के अल्पसंख्यकों के प्रति जिम्मेदारी निभानी चाहिए। उन्होंने यह बात पाकिस्तान के सिंध प्रांत के संघार जिले की हिंदू विधवा दया भील की बर्बर तरीके से हुई हत्या के सिलसिले में कही। दया भील का सिर तन से जुदा करने के साथ उनके शव को बुरी तरह क्षत-विक्षत कर दिया गया था। उनके साथ दुष्कर्म करने के बाद उनकी खाल तक उतार ली गई थी। पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ ऐसा बर्बर व्यवहार नई बात नहीं। वहां आए दिन हिंदुओं पर इसी तरह कहर बरपाया जाता है। इस तरह की घटनाओं का पाकिस्तान का राष्ट्रीय मीडिया मुश्किल से ही संज्ञान लेता है। वह तब भी मौन धारण किए रहता है, जब पीड़ित-प्रताड़ित हिंदू धरना-प्रदर्शन करते हैं। अधिकतर मामलों में हिंदुओं के उत्पीड़न, अपहरण, हत्या की खबरें स्थानीय स्तर पर प्रचारित-प्रसारित होकर रह जाती हैं। पाकिस्तान में हर दिन किसी न किसी हिंदू या ईसाई लड़की का अपहरण कर उसका किसी मुस्लिम से जबरन निकाह कराया जाता है, यह झूठ प्रचारित करके कि उसने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार कर लिया।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया माध्यमों के अनुसार पाकिस्तान में प्रति वर्ष अल्पसंख्यक समुदायों की करीब एक हजार लड़कियों का अपहरण और जबरन निकाह कराया जाता है। अधिकतर शिकार हिंदू लड़कियां बनती हैं और अधिकांश मामलों में निकाह उन्हीं से होता है, जो इन लड़कियों का अपरहण करते हैं। अपहरण करने वालों का साथ मुल्ला मौलवी, पुलिस और न्यायाधीश यानी पूरा तंत्र देता है। ऐसे ही एक कुख्यात मौलवी मियां मिट्ठू को हाल में ब्रिटेन की सरकार ने प्रतिबंधित किया है। मियां मिट्ठू अब तक सैकड़ों हिंदू लड़कियों को कथित तौर पर उनकी मर्जी से इस्लाम में दाखिल करा चुका है। वह कई दलों से जुड़ा रहा है। पाकिस्तान के इने-गिने मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार या फिर यू ट्यूब पर सक्रिय एक्स मुस्लिम उसके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते रहे हैं, लेकिन ऐसा कुछ होने के बजाय उसे राजनीतिक दलों का संरक्षण ही मिलता रहा है। इसी कारण ब्रिटेन ने उस पर पाबंदी लगाई है, लेकिन इसके प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि, इससे उसकी या पाकिस्तान की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।
पाकिस्तान में 95 प्रतिशत मुस्लिम हैं और शेष पांच प्रतिशत अन्य समुदाय। इनमें सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू है, लेकिन कुल जनसंख्या में उसकी भागीदारी लगभग डेढ़ प्रतिशत बची है। मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को छल-बल से अपने दीन यानी इस्लाम में लाने की ऐसी सनक सवार है कि उनकी लड़कियों का उनके बालिग होने के पहले ही अपरहण कर लिया जाता है। लड़की चाहे 13 साल की हो या 14 की, थाने और अदालतें उसे 18 साल की ही साबित करक दम लेती हैं। पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों की स्थिति कुछ वैसी ही है, जैसी एक समय इस्लामिक स्टेट के इलाके में यजीदी महिलाओं की थी। विभाजन के समय पश्चिमी पाक यानी आज के पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी करीब 14 प्रतिशत थी। जिस दर से उनकी आबादी घटी है, उससे यह तय है कि अगले कुछ दशकों में वहां अंगुलियों पर गिने जाने लायक हिंदू ही बचेंगे-ठीक वैसे ही जैसे अफगानिस्तान में बचे हैं। इसका बड़ा कारण अल्पसंख्यकों और खासकर हिंदुओं के प्रति पाकिस्तान के शासन और समाज में व्याप्त घृणा है। यह इस हद तक है कि स्कूली किताबों में उन्हें हीन और नापाक बताया जाता रहा है। इसी कारण अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न से बचाने वाले प्रस्तावित विधेयक कानून का रूप नहीं ले पा रहे
हैं।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक न केवल तिरस्कार के चलते हाशिये पर हैं, बल्कि वे कानूनी रूप से भी दोयम दर्जे के नागरिक हैं। वहां जब सफाई कर्मियों की भर्ती निकलती है तो यह साफ लिखा होता है कि केवल हिंदू और ईसाई ही आवेदन कर सकते हैं। पाकिस्तान ने अल्पसंख्यकों के दमन के लिए तमाम तरीके अपना रखे हैं। इनमें सबसे खतरनाक है ईशनिंदा कानून। किसी पर हमला करने, पीट-पीटकर मार डालने या जेल भेज देने के लिए यह अफवाह पर्याप्त होती है कि उसने ईशनिंदा की है। पिछले दिनों वहां एक हिंदू लड़के लव कुमार को इसलिए ईशनिंदा का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया, क्योंकि उसने एक फेसबुक पोस्ट में यह लिख दिया था कि जब हिंदू लड़कियों का अपहरण होता है तो ऊपरवाला पसीजता क्यों नहीं? उसका “गुनाह” यह गिनाया गया कि उसने ऊपरवाला की जगह “मौला” लिखा। हालांकि सिंध में ईश्वर या भगवान को मौला से संबोधित करना आम है, लेकिन लव कुमार की किसी ने नहीं सुनी।
पाकिस्तान में ईसाइयों के उत्पीड़न पर तो तब भी पश्चिमी देश न केवल आवाज उठाते हैं, बल्कि पीड़ितों की मदद के लिए आगे भी आते हैं। ईसाई महिला आसिया बीबी ईशनिंदा के फर्जी आरोप में लंबे समय तक जेल में रहने के बाद जब रिहा हुई थीं तो पश्चिमी देशों की मदद से कनाडा भेज दी गई थीं। किसी हिंदू के नसीब में ऐसा कुछ नहीं होता, क्योंकि उनके लिए कभी कोई नहीं बोलता-भारत भी नहीं। पिछले सप्ताह विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का जो बयान सामने आया, वह एक औपचारिक बयान था और सबको पता है कि पाकिस्तान ऐसे बयानों को कभी भाव नहीं देता।
(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)

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