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    'आप सेना में रहने लायक नहीं', मंदिर जाने से इनकार करने वाले ईसाई अफसर की बर्खास्तगी पर SC ने लगाई मुहर  

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने सेना से बर्खास्त एक ईसाई अधिकारी की याचिका खारिज कर दी, जिसने मंदिर के गर्भगृह में धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से इनकार किया था। अदालत ने इसे घोर अनुशासनहीनता माना। अधिकारी ने धार्मिक स्वतंत्रता का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने सेना के पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण को बरकरार रखा और बर्खास्तगी को उचित ठहराया।

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    सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी पर लगाई मुहर।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक पूर्व ईसाई अधिकारी की याचिका खारिज कर दी जिसमें सेना से उसकी बर्खास्तगी को चुनौती दी गई थी। अधिकारी ने अपनी तैनाती वाले स्थल पर मंदिर के गर्भगृह में रेजिमेंट की धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेने से कथित तौर पर इन्कार कर दिया था। इसके बाद उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

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    शीर्ष अदालत ने अपीलकर्ता अधिकारी के कृत्य को घोर अनुशासनहीनता माना और कहा कि पंथनिरपेक्ष सेना से उन्हें तो बस इसीलिए बाहर कर देना चाहिए था। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया। हाई कोर्ट ने सेना की कार्रवाई को बरकरार रखा था।

    सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

    शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता अधिकारी सैमुअल कमलेसन का आचरण सैन्य अनुशासन के अनुरूप नहीं था। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'वह किस तरह का संदेश दे रहे हैं? उन्हें तो बस इसीलिए बाहर कर देना चाहिए था। यह किसी सैन्य अधिकारी की ओर से घोर अनुशासनहीनता है। नेतृत्वकर्ता को तो उदाहरण पेश करना चाहिए। आप अपने सैनिकों का अपमान कर रहे हैं। जब एक पादरी ने आपको सलाह दी, तो आपने उसे नहीं माना। वर्दी में रहकर आप इस बात पर निजी राय नहीं रख सकते कि आपका धर्म क्या अनुमति देता है।'

    अपीलकर्ता के वकील ने क्या कहा?

    कमलेसन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उनके मुवक्किल को उनकी तैनाती स्थल पर स्थित एक मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इन्कार करने के एकमात्र कृत्य के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने इन्कार इसलिए किया क्योंकि यह उनके ईसाई धर्म का उल्लंघन है। अधिकारी ने इसके अलावा सभी बहु-धार्मिक स्थलों और रेजिमेंट कार्यक्रमों में सम्मानपूर्वक भाग लिया।

    चीफ जस्टिस ने पूछा ये सवाल

    प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया, 'क्या एक अनुशासित बल में इस तरह का आचरण जायज है?'' उन्होंने कहा कि एक सैन्य नेतृत्वकर्ता अपने सैनिकों के साथ उस जगह जाने से कैसे इन्कार कर सकता है जिसे वे पवित्र मानते हैं। पीठ ने कहा कि सिख सैनिकों की मौजूदगी को देखते हुए रेजिमेंट में एक गुरुद्वारा भी है।

    प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया, 'गुरुद्वारा सबसे पंथनिरपेक्ष स्थानों में से एक है.. जिस तरह से वह व्यवहार कर रहे हैं, क्या वह अन्य धर्मों का अपमान नहीं कर रहे?''
    वरिष्ठ वकील ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत अपीलकर्ता के धर्म पालन के मौलिक अधिकार को सिर्फ इसलिए नहीं छीना जा सकता क्योंकि उन्होंने वर्दी पहनी है।

    जस्टिस बागची ने सवाल किया, 'अनुच्छेद-25 आवश्यक धार्मिक विशेषताओं की रक्षा करता है, हर भावना की नहीं.. ईसाई धर्म में मंदिर में प्रवेश करना कहां वर्जित है?''

    पीठ ने कहा कि अधिकारी ने एक स्थानीय पादरी की सलाह को भी नजरअंदाज कर दिया, जिसने कथित तौर पर कहा था कि ''सर्व धर्मस्थल'' में प्रवेश करना ईसाई धर्म का उल्लंघन नहीं होगा।

    बर्खास्तगी रद के अनुरोध पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'आप भले ही 100 चीजों में उत्कृष्ट हों, लेकिन भारतीय सेना अपने पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण के लिए जानी जाती है.. आप अपने ही सैनिकों की भावनाओं का सम्मान करने में विफल रहे हैं।''

    जब अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि नोटिस जारी नहीं करना समाज के लिए एक गलत संदेश होगा, तो पीठ ने कहा, इससे एक कड़ा संदेश जाएगा।

    क्या है मामला?

    वर्ष 2017 में तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त करने वाले कमलेसन को सिख कर्मियों वाली 'बी' स्क्वाड्रन के 'ट्रुप लीडर' के रूप में तैनात किया गया था। रेजिमेंट में एक मंदिर और एक गुरुद्वारा था, लेकिन कोई सर्व धर्मस्थल या चर्च नहीं था। कमलेसन ने दावा किया था कि वह साप्ताहिक धार्मिक परेड के लिए दोनों स्थानों पर सैनिकों के साथ गए, लेकिन धार्मिक अंतरात्मा का हवाला देते हुए आरती, हवन या पूजा के दौरान गर्भगृह में प्रवेश करने से परहेज किया।

    सेना का कहना था कि अधिकारी ने अनिवार्य रेजिमेंटल परेड में शामिल होने से बार-बार इन्कार किया और वरिष्ठ अधिकारियों ने उसे अनुशासन के महत्व पर सलाह देने के कई प्रयास किए। लेकिन उसने इन्कार कर दिया और इससे यूनिट की एकजुटता कमजोर हुई, जो प्रभावी परिचालन के लिए आवश्यक है।

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