शिक्षा नीति में हिंदी, संस्कृत और योग को मिलेगी तवज्जो
प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में उपलब्ध करवाने के साथ ही हिंदी, संस्कृत और योग को प्रमुखता देने पर सहमति बन सकती है।
नई दिल्ली। नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने से पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय नए सिरे से राज्यों और विशेषज्ञों से विमर्श करेगा। वैसे, सुब्रह्माण्यम समिति की ओर से सौंपे गए मसौदे में से कई पर सहमति बनने की उम्मीद है।
इनमें प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में उपलब्ध करवाने के साथ ही हिंदी, संस्कृत और योग को प्रमुखता देने पर सहमति बन सकती है। लेकिन 12वीं के बाद कॉलेजों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक परीक्षा आयोजित करने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने में मुश्किल हो सकती है।
मंत्रालय के वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक, शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने पर तेजी से काम हो रहा है। पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्माण्यम की अध्यक्षता में बनी मसौदा समिति की रिपोर्ट का अध्ययन किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि जिन बातों पर आसानी से सहमति बन जाने की उम्मीद है, उसमें भाषा नीति सबसे प्रमुख है।
हिंदी-अंग्रेजी पहली कक्षा से
समिति ने बच्चों की प्रारंभिक पढ़ाई मातृभाषा में ही कराने का सुझाव दिया है। खासकर छठे वर्ष में पहली कक्षा की औपचारिक पढ़ाई से पहले आंगनबाड़ी और नर्सरी आदि में तो गतिविधियां मातृभाषा में ही आयोजित होनी चाहिए।
यही वह समय है जब बच्चा बहुत तेजी से सीखता है, लेकिन उस दौरान अगर उसे भाषाई दीवार की वजह से बात समझ में नहीं आई तो सारा प्रयास बेमतलब रह जाएगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आगे की स्कूली शिक्षा भी मातृभाषा में ही उपलब्ध करवाने पर जोर दिया जाए।
ये भी पढ़ेंः कोलकाता में लड़कियों के पीछे पड़ा 'भूत', शाम होते ही कर रहा गंदी हरकत
वैसे, पहली कक्षा से हिंदी और अंग्रेजी की शुरुआत की जा सकती है। खास बात है कि संघ ने पिछले वर्ष अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में भी ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया था। साथ ही राज्यों से हुए मशविरे में भी इस पर सहमति बनी थी।
हिंदी-संस्कृत को बढ़ावा
भाषा नीति में हिंदी को बढ़ावा देने की भी बात प्रमुखता से शामिल की गई है। इसका कहना है कि संविधान में ही कहा गया है कि हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना केंद्र सरकार की जिम्मेवारी होगी ताकि यह देश भर के लोगों को जोड़ने का माध्यम बन सके।
इसमें संस्कृत को बढ़ावा देने का भी प्रस्ताव किया गया है। संस्कृत को किसी शास्त्रीय भाषा के तौर पर नहीं बल्कि देश की संस्कृति और साहित्य की जीवंत परंपरा के रूप में पेश किया जाए। मसौदे में योग प्रशिक्षण को भी हर स्कूल में लागू करने पर जोर दिया गया है। ये ऐसे प्रस्ताव हैं जिन्हें लेकर मौजूदा सरकार पहले से ही सक्रिय है।
ये भी पढ़ेंः भोपाल से दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के विमान में खराबी, सीएम शिवराज भी थे मौजूद
शिक्षा के लिए अलग कैडर
शिक्षा पर खर्च बढ़ाकर जीडीपी के छह फीसदी तक लाने को लेकर भी विरोध की संभावना नहीं है। मगर 12वीं के बाद कॉलेजों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अलग से एक प्रवेश परीक्षा आयोजित करने और शिक्षा के प्रशासन को संभालने के लिए अलग से एक अखिल भारतीय कैडर विकसित करने को लेकर राज्यों से विचार-विमर्श अहम होगा। अगर अधिकांश राज्यों ने इस पर सहमति नहीं दी तो ऐसे प्रस्तावों को नई नीति में शामिल नहीं किया जाएगा।