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    दृष्टिहीनता के खिलाफ लड़ाई ताकि मिलता रहे नजरों का नजराना

    By Srishti VermaEdited By:
    Updated: Thu, 12 Oct 2017 11:38 AM (IST)

    दृष्टिहीनता के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इसे मनाया जाता है। दुनिया सहित भारत में भी दृष्टिहीनता के खिलाफ जंग जारी है।

    दृष्टिहीनता के खिलाफ लड़ाई ताकि मिलता रहे नजरों का नजराना

    नई दिल्ली (जागरण न्यूज नेटवर्क)। मधुमेह जैसे रोगों के तेजी से बढ़ने के साथ ही दृष्टिहीनता का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है। आज विश्व दृष्टि दिवस है। दृष्टिहीनता के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इसे मनाया जाता है। दुनिया सहित भारत में भी दृष्टिहीनता के खिलाफ जंग जारी है। भारत में नेत्र चिकित्सकों की नितांत कमी है। लेकिन कुछ नेत्र चिकित्सक अपने मिशन में दृढ़ता के साथ जुटे हुए हैं। दृष्टिहीनता के खिलाफ अपने स्तर पर बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं दिल्ली के डॉ. जयंत शेखर गुहा।

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    क्लीनिक भर काफी नहीं : डॉ. गुहा ने कुछ नेत्र चिकित्सकों का एक समूह बनाया है। देश के अलग-अलग हिस्सों में गांव-देहात- झुग्गियों में जाकर गरीबों को नेत्र उपचार मुहैया कराना और उन्हें दृष्टिहीनता के प्रति जागरूक करना इनकी मुहिम का हिस्सा है। इसके लिए वह वर्चुअल मोबाइल रेटिना व्हीकल्स और पेशेंट ट्रांसपोर्टेशन व्हीकल्स की मदद लेते हैं।

    ताकि कोई छूट न जाए : मोबाइल रेटिना व्हीकल एक बड़ी वैन है, जिसे अत्याधुनिक जांच उपकरणों और संचार
    तकनीकों से लैस किया गया है। ये वैन पिछड़े इलाकों और गांवों में जाती हैं। वैन में नेत्र चिकित्सक और सहायक तैनात होते हैं। इस वैन के माध्यम से गरीब परिवारों के दस वर्ष के बच्चों से लेकर सभी आयु वर्ग के लोगों का नेत्र परीक्षण ऑन द स्पॉट किया जाता है। वैन में मौजूद अत्याधुनिक जांच मशीनों को शहर में बनाए गए कंट्रोल रूम से आधुनिकतम संचार तकनीक के माध्यम से जोड़ा गया है। जहां मौजूद सीनियर नेत्र चिकित्सकों तक भी वैन के जरिये की गई जांच की लाइव रिपोर्ट पहुंचती है। इस प्रक्रिया से तुरंत तय किया जाता है कि किस मरीज को दवा की और किसे सर्जरी की आवश्यकता है। जिन लोगों की सर्जरी की जानी है, उन्हें वहीं मौजूद पेशेंट ट्रांसपोर्टेशन व्हीकल के जरिये शहर में स्थित नेत्रालय में लाया जाता है। जहां उनकी निशुल्क सर्जरी की जाती है। ठीक हो जाने पर उन्हें वापस उनके घर पहुंचा दिया जाता है। इस मुहिम के तहत प्रति वर्ष औसत पचास हजार से अधिक लोगों की इस तरह जांच की जाती है। इनमें से औसत दो सौ केस ऐसे होते हैं, जिनमें सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। डॉ. गुहा कहते हैं कि इस तरह के प्रयास की देश में जरूरत है, लेकिन सरकार इसे लेकर सुस्त है।

    पत्थर-पैलेट गन से भी सामना : पूर्वी दिल्ली में साई रेटिना फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. गुहा दिल्ली की झुग्गी बस्तियों सहित कश्मीर की वादियों में भी काफी चर्चित हैं। कश्मीर में पैलेट गन और पत्थरबाजी में घायल होने वालों का नेत्र उपचार करने में उन्हें एक्सपर्ट माना जाता है। जम्मू-कश्मीर सरकार के बुलावे पर वह पिछले सात साल से यह सेवाएं दे रहे हैं। आंख में धंस जाने वाले पैलेट गन के छर्रों को निकालने के लिए उन्होंने विशेष सर्जिकल उपकरण तैयार किए हैं। कश्मीर में उन्हें इस काम को अंजाम देने में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बकौल डॉ. गुहा, एक दफा कश्मीर में तैनात एक जवान, जो कि कश्मीरी ही था, उसने मुझसे कहा कि डॉक्टर साहब, जो लोग हमें पत्थरों से लहुलुहान कर रहे हैं, आप उनका उपचार करने के लिए इतनी आफत मोल क्यों ले रहे हैं। मैंने कहा, सबसे पहले वह एक मरीज है।

    जिस तेजी से मधुमेह बढ़ रहा है, दृष्टिहीनता भी उसी तेजी से बढ़ रही है। बच्चे भी इसकी जद में हैं। भारत में नेत्र रोगों से बचाव के लिए जागरूकता की बेहद कमी है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।- डॉ. जयंत शेखर गुहा, नेत्र सर्जन

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