नए साल का जश्न, लेकिन पता है इसे मनाया क्यों जाता है?
न्यू ईयर को आप सेलिब्रेट कर रहे होंगे। लेकिन इसको क्यों सेलिब्रेट करते हैं और हमारे देश में कितनी बार मनाया जाता है इस बात की जानकारी नहीं है तो जान लो।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। हर बार की तरह इस बार भी सभी लोगों नए साल का जश्न मना रहे हैं। हो भी क्यों न, नया साल खुशियां, उमंग नई उम्मीदें और पार्टी करने जैसे तमाम नए बहाने लेकर आता है। ये भी कह सकते हैं कि अपनी खुशी का इजहार करने के लिए ये खास दिन होता है। लोग नए साल पर अपने सपनों को उड़ान देना चाहते हैं। बीती बातों को भूलकर नई शुरूआत करना चाहते हैं। इस उत्साह के बीच एक बात पर कभी गौर करना जरूरी है, कि एक जनवरी को नया साल क्यों सेलिब्रेट किया जाता है। इतना ही नहीं हमारे देश में नए साल का जश्न कितनी बार मनाया जाता है। शायद नहीं पता होगा...तो हम बताते हैं कि इसके पीछे की कहानी और इसके इतिहास के बारे में।
पहले अपने देश के बारे में जान लेते हैं कि हमारे देश में कितनी बार नये साल का उत्सव मनाया जाता है। भारत में अलग-अलग धर्म हैं और इन सभी धर्मों में नया साल अलग-अलग दिन मनाया जाता है। पंजाब में नया साल बैशाखी के दिन मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में भी बैशाखी के आस-पास ही इस उत्सव को मनाया जाता है। महाराष्ट्र में मार्च-अप्रैल के महीने आने वाली गुड़ी पड़वा के दिन नया साल मनाया जाता है। गुजरात में इसको दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है। वहीं, इस्लामिक कैलेंडर में भी नया साल मुहर्रम के नाम से जाना जाता है।
इंडिया में न्यू ईयर सेलिब्रेशन कितनी बार?
हिंदू नव वर्ष
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से, हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नया संवत भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादी आदि नामों से भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
जैन नव वर्ष
दीपावली के अगले दिन से, जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत भी कहा जाता है। इसी दिन से जैन समुदाय अपना नया साल मनाते हैं।
पंजाबी नव वर्ष
पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होली के दूसरे दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है।
पारसी नव वर्ष
पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव मनाया जाता है। 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने नवरोज मनाने की शुरुआत की थी।
ईसाई नव वर्ष
1 जनवरी से नए साल की शुरुआत 15 अक्टूबर 1582 से हुई। इसके कैलेंडर का नाम ग्रिगोरियन कैलेंडर है। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर बनाया। तब से 1 जनवरी को नववर्ष मनाते हैं।
हर धर्म में अलग-अलग दिन और महीनों में नया साल मनाने की प्रथा है। लेकिन इनके बावजूद हम सभी 1 जनवरी को क्यों नया साल मनाते हैं? यहां आपको इसी सवाल का जवाब मिल जाएगा।
नए साल का उत्सव लगभग 4000 साल से भी पहले बेबीलोन में 21 मार्च को मनाया जाता था, जो कि वसंत के आने की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव तभी मनाया जाता था। रोम के बादशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45 वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, तब विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया।
नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को होता है। अलग-अलग संस्कृतियों के अपने कैलेंडर और अपने नव वर्ष होते हैं। दुनिया के देश अलग-अलग समय पर नया साल मनाते हैं।
पहचान बढ़ाने का अच्छा मौका
नए साल को सेलिब्रेट करते समय बहुत से लोग अपने आस-पास के लोगों के साथ पार्टी करते हुए करीब आते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जान पहचान बढ़ाने के लिए ये अच्छा मौका है। इस मौके पर जान पहचान वालों के अलावा बहुत से अनजान लोग भी आपको बधाई देते हें। हर आने वाला साल अपने साथ ढेरों उतार-चढ़ाव लेकर आता है। जिनकी मदद से आपको एक बेहतर इंसान बनने में मदद मिलती है।
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