कोरोना से संक्रमित इंसान में क्यों नजर नहीं आते हैं लक्षण, जानें क्या कहती है रिसर्च रिपोर्ट
शरीर में बनने वाला एंटीबॉडीज हमें वायरस से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। लेकिन कोरोना से संक्रमित लोगों में सात से 10 दिनों के अंदर एंटीबॉडी बनना शुरू होता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। कोरोना वायरस की जांच को लेकर जो रैपिड किट खराब निकली वो दरअसल शरीर में एंटीबॉडीज के बनने की प्रक्रिया का पता लगाती थीं। शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज को लेकर एक रिसर्च रिपोर्ट सामने आई है जिसमें कहा गया है कि जिन लोगों में कम एंटीबॉडी बन रहा है उनमें फिर से कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही ये भी पता चला है कि कोरोना से संक्रमित लोगों में सात से 10 दिनों के अंदर एंटीबॉडी बनना शुरू होता है। कोरोना की जांच कर रहे डॉक्टरों के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोगों में इसकी मात्रा इतनी कम होती है कि यह पकड़ में ही नहीं आता।
रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, संक्रमण के बाद सिर्फ 14 फीसदी लोगों में उच्च स्तर का एंटीबॉडी बनता पाया गया है जबकि 40 फीसदी लोगों में मध्यम स्तर का एंटीबॉडी तैयार हुआ। 30 फीसदी लोग ऐसे पाए गए जिनमें एंटीबॉडी मुश्किल से बना और किसी वायरस से लड़ने की उसकी प्रतिरोधक क्षमता बनाने की मात्रा काफी कम थी। शोधकर्ताओं के मुताबिक, कम क्षमता के एंटीबॉडी वालों में संक्रमण पता करना मुश्किल है। ये जानकारियां फुदान यूनिवर्सिटी के शोध में सामने आई है।
आपको बता दें कि एंटीबॉडी टेस्ट सिर्फ इतना ही संकेत देते हैं कि वहां मरीज संक्रमित हो सकते हैं। जहां तक भारत की बात करें तो यहां इस तरह की जांच हॉट स्पॉट इलाकों में की जा रही है। इसका मकसद ये पता लगाना है कि उस इलाके में संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ेगी या नहीं। यदि इस जांच में ज्यादातर लोगों में एंटीबॉडीज का कम बनना या न बनना पाया गया तो इसका अर्थ है कि वहां के लोग इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं।
आपको ये भी बता दें कि इस वायरस के लक्षण नजर आना काफी हद तक इंसान की उम्र, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है। अगर रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है और वायरस कम है तो उस व्यक्ति में इसके लक्षण नहीं दिखाई देंगे। इसके अलावा जिन्हें लंबे समय से जुकाम या बुखार है और वो किसी न किसी दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं तो भी उनमें इसके लक्षण कम ही दिखाई देंगे। शोध के माध्यम से अब तक आई जानकारियों के मुताबिक 20 से 42 वर्ष की उम्र के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। यही वजह है कि इनमें इस वायरस के लक्षण कम ही दिखाई दे रहे हैं। वहीं बुजुर्गों के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का कम होने की वजह से वह इस वायरस से जल्द
संक्रमित हो जाते हैं। उनमें इसके लक्षण में जल्द ही दिखाई देने लगते हैं। हालांकि संक्रमण से उबर चुके लोगों पर अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले आए हैं। इस शोध से पता चला कि युवाओं की तुलना में बुजुर्ग और मध्यम उम्र के लोगों में एंटीबॉडी काफी तेजी से बना। इसका अर्थ ये भी है कि वायरस का हमला होते ही उनमें सबसे पहले एंटीबॉडी सक्रिय हुआ।
इस संबंध में डेनमार्क की सरकार उन सभी लोगों का एंटीबॉडी टेस्ट करने जा रही है जिनमें सर्दी-जुकाम, खांसी और बुखार जैसे लक्षण दिख रहे हों। संक्रमित लोगों में भी ऐसे लक्षण नजर आते हैं। इससे पहले गंभीर लक्षण वालों का ही परीक्षण हुआ। इसके अलावा जर्मनी भी अपने यहां पर बड़े पैमाने पर लोगों की जांच करने की शुरुआत कर रहा है। ये टेस्ट मुख्यत: तीन चरणों में किए जाएंगे। पहले चरण में रक्तदान शिविरों और अस्पतालों से नमूने लिए जाएंगे दूसरे चरण में खून के नमूने इकट्ठा किए जाएंगे। तीसरे चरण में व्यापक स्तर पर टेस्ट करने की तैयारी है।
ये भी पढ़ें:-
लॉकडाउन ने वो कर दिखाया जिसको करने में दुनिया भर की सरकारें अब तक नाकाम हो रही थीं
ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव में झेलनी पड़ सकती है कोरोना की मार, अफगान समझौता शायद ही करे मदद
शरीर में एंटीबॉडीज का पता लगाती है रैपिड टेस्ट किट, G और M पर उभरी लकीर बताती है पॉजीटिव
पहले से तय है किम के वारिस की भूमिका, कोई अनहोनी होने पर वही करेगी देश का नेतृत्व
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।