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    Adhinam Priest: कौन हैं तमिलनाडु के आदिनम संत, जिन्होंने की सेंगोल की पूजा? इनके सामने PM मोदी भी हुए नतमस्तक

    By Babli KumariEdited By: Babli Kumari
    Updated: Tue, 30 May 2023 02:14 PM (IST)

    देश ने जिस नए संसद भवन का सपना देखा था वह अब पूरा हो गया है। नई संसद में पवित्र सेंगोल की स्थापना के लिए तमिलनाडु से आए आदिनम संतों को लेकर देशभर में खूब चर्चा रही। आइए जानते हैं कौन हैं ये आदिनम संत और क्या है इनका इतिहास।

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    कौन हैं तमिलनाडु के आदिनम संत (जागरण ग्राफिक्स)

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र देश का सबसे सशक्त स्थल है लोकतंत्र का मंदिर कहलाने वाला इसका संसद भवन। जहां भारत के जन-जन की आकांक्षाओं और भविष्य की दिशा भी तय होती है। पीएम मोदी ने 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन कर दिया है। जिसके लिए भव्य तरीके से इस नई संसद को सजाया गया था। इसके उद्घाटन से पहले पीएम मोदी ने सेंगोल को भी लोकसभा में स्थापित किया। वैदिक मंत्र उच्चारणों के बीच इस सेंगोल को लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के बगल में स्थापित किया गया है।

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    इस पवित्र सेंगोल को स्थापित करने के लिए तमिलनाडु से आदिनम संतों को बुलाया गया था जिन्होंने पूरे विधि-विधान से सेंगोल को स्थापित कराया। इन आदिनम संतों के सामने पीएम मोदी नतमस्तक हुए। आइए जानते हैं कौन हैं ये आदिनम संत जिन्होंने नई संसद भवन में कराई सेंगोल की स्थापना।

    यह भी पढ़ें- What is Sengol: नए संसद भवन में स्थापित हुआ 'सेंगोल', नेहरू से जुड़ा है इतिहास; तमिलनाडु से खास कनेक्शन

    कौन होते हैं आदिनम संत ?

    • आदिनम संस्कृत के शब्द आधिपति से लिया गया है। जिसका मतलब होता है भगवान या मालिक। दक्षिण में इनका नेतृत्व आमतौर पर ब्राह्मण करते हैं। लेकिन कुछ आदिनम ऐसे भी होते हैं जिनके गुरु गैर-ब्राह्मण भी होते हैं। थिरुवदुथुरै आदिनम का नेतृत्व एक वैष्णव संत करते हैं जो ब्राह्मण नहीं हैं।
    • दक्षिणभारत में ऐसे कई मठ हैं जिनका नेतृत्व ऐसे ही आचार्य या स्वामी हो करते हैं। आदिनम हिंदू धर्म के एक विशेष शाखा से जुड़े होते हैं, जैसे शैववाद या वैष्णववाद। उनके पास समर्थकों की अच्छी-खासी संख्या होती है, जो हिंदू संस्कृति और परंपरा का विस्तार करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
    • दक्षिण भारत में ये आदिनम हिन्दू धर्म औार संस्कृति का अहम हिस्सा होते हैं। जो इसका प्रसार करते हैं। इतना ही नहीं, वे हिंदू धर्म के अध्ययन और अभ्यास के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।

    आदिनम संतों का महत्व?

    • हिन्दू धर्म में हमेशा से ही आदिनम का महत्व रहा है क्योंकि इनके जरिए ही दक्षिण में हिन्दू धर्म और संस्कृति का प्रचार किया गया और धार्मिक दायरे को बढ़ाया गया। वहीं, स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थाओं की शुरुआत के बाद से यहां पर धर्म की शिक्षा लेने वालों की तादात में कमी आई।
    • समय के साथ दायरा घटने के बाद भी दक्षिण में आदिनम ने अपनी जिम्मेदारी निभाई और धर्म का प्रचार किया। इतना ही नहीं, इन्होंने गरीबों और जरूरतमंदों की हमेशा मदद की।
    • यूं तो दक्षिण में कई तरह के अधीनम हैं, लेकिन कुछ सबसे ज्यादा चर्चित रहे हैं। जैसे- मदुरै आदिनम। इन्हें दक्षिण भारत का सबसे पुराना आदिनम कहा जाता है। इनके मठ मदुरै में हैं। ये शैव सम्पदाय से ताल्लुक रखते हैं। इसके अलावा थिरुवदुतुरई अधीनम है, जो हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ स्कॉलरशिप देने के लिए भी जाने जाते हैं। वहीं, धर्मापुरम आदिनम है जो तमिलनाडु के मयिलाडुतुरै में है। ये सामाजिक कार्य और शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े हैं।

    क्या करते हैं आदिनम?

    हिन्दू दर्शन की जानकारी देना और शास्त्रों को पढ़ाना आदिनम के कार्यक्षेत्र का हिस्सा है। इसके अलावा धार्मिक अनुष्ठानों और समारोहों का आयोजन करना, हिंदू संस्कृति और परंपरा को बढ़ावा देना और गरीबों-जरूरतमंदों की मदद करना भी इनका काम है। इसके अलावा हिंदू धर्म और संस्कृति पर पुस्तकें-लेख प्रकाशित करना, स्कूल और कॉलेज चलाना और मंदिरों व अन्य धार्मिक संस्थानों की प्रशासन व्यवस्था देखना भी इनके कार्यक्षेत्र का हिस्सा है।

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