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    पढ़ें-पॉन्टी चड्ढा की कहानी

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    Updated: Sat, 17 Nov 2012 09:01 PM (IST)

    मशहूर कारोबारी पॉन्टी चड्ढा और उसके भाई हरदीप की गोलीबारी में मौत हो गई है। दोनों भाईयों की मौत आपसी फायरिंग में हुई। गुरुदीप सिंह चड्ढा उर्फ पॉन्टी चड्ढा का जन्म मुरादाबाद के एक गरीब परिवार में हुआ था। अपने कैरियर की शुरुआत में पॉन्टी एक शराब की दुकान के सामने अपने पिता के साथ नमकीन एवं स्नैक्स बेचा करता था। बाद में उनके पिता को एक शराब की दुकान का लाइसेंस मिल गया और यहीं से पॉन्टी के दिन बदलने शुरू हो गए।

    नई दिल्ली। मशहूर कारोबारी पॉन्टी चड्ढा और उसके भाई हरदीप की गोलीबारी में मौत हो गई है। दोनों भाईयों की मौत आपसी फायरिंग में हुई। गुरुदीप सिंह चड्ढा उर्फ पॉन्टी चड्ढा का जन्म मुरादाबाद के एक गरीब परिवार में हुआ था। अपने कैरियर की शुरुआत में पॉन्टी एक शराब की दुकान के सामने अपने पिता के साथ नमकीन एवं स्नैक्स बेचा करता थे। बाद में उनके पिता को एक शराब की दुकान का लाइसेंस मिल गया और यहीं से पॉन्टी के दिन बदलने शुरू हो गए।

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    मुरादाबाद के रहने वाले पॉन्टी का वहां बड़ा साम्राज्य फैला हुआ है। लखनऊ में उनके वेब मल्टीपलेक्स का उद्घाटन तब सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने किया था और उसी समय से पॉन्टी सुर्खियों में आने लगे थे।

    पॉन्टी के पिता कुलवंत सिंह चढ्डा के तीन बेटे पॉन्टी चढ्डा, राजेंद्र सिंह चढ्डा एवं हरदीप सिंह चढ्डा और पोता मनप्रीत सिंह चढ्डा पूरे चढ्डा साम्राज्य की देखरेख में लगे हुए थे। और आज चढ्डा ग्रुप का पूरा साम्राज्य 25 सौ करोड़ का आंका जाता हैं।

    सरकारें बदलीं पर नहीं बदला पोंटी का रसूख

    जेएनएन, मेरठ। रीयल एस्टेट व शराब कारोबार में धाक जमाने वाले गुरदीप सिंह उर्फ पोंटी चढ्डा के कारोबार के साथ ही उनका सियासी रसूख भी बढ़ा। वक्त के साथ न सिर्फ यूपी और उत्तराखंड के साथ कई राज्यों का शराब कारोबार पोंटी के अधीन आ गया बल्कि इन राज्यों की सियासत से लेकर सत्ता तक पोंटी की पकड़ के चर्चे कई बार सुर्खियां बने।

    उत्तर प्रदेश में हुकूमत सपा की रही हो या बसपा की, पोंटी कई बार खास फैसलों के कारण चर्चाओं में आए। वर्ष 2005 में मुलायम सरकार में इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोजेक्ट का बड़ा ठेका हासिल करने पर पोंटी को काफी सुर्खियां मिलीं। इसे लेकर कई विपक्षी नेताओं ने सरकार पर उंगली भी उठाई थी। वर्ष 2007 में बसपा की सरकार आने पर पोंटी को सपा सरकार से अधिक मजबूती मिली। कहा तो यहां तक जाता है कि वर्ष 2009 में चढ्डा ग्रुप के इशारे पर ही यूपी की आबकारी नीति में बदलाव किया गया। यही नहीं बसपा शासन में ही राज्य की 21 चीनी मिलों में से 11 नीलामी के बाद पोंटी को मिलीं। अब सपा सरकार आते ही चीनी मिलों के हस्तांतरण की जांच शुरू कराए जाने से पोंटी फिर सुर्खियों में हैं।

    उत्तर प्रदेश के पर्वतीय जिलों [अब उत्तराखंड] में भी पोंटी का बराबर दखल रहा। उत्तराखंड गठन के बाद जहां कई सरकार बनवाने-गिरवाने को लेकर भी पोंटी का नाम सुर्खियों में आया, वहीं उत्तराखंड के अस्तित्व में आने से पहले भी कुमाऊं में अरबों का राजस्व देने वाली गोला नदी के खनन का ठेका 90 के दशक में वन निगम से चढ्डा ग्रुप ने हासिल कर लिया था, जबकि गोला का खनन आमतौर पर वन विभाग के पास ही रहा है। उत्तराखंड के बागेश्वर में खड़िया खनन का बड़ा ठेका भी चढ्डा ग्रुप को अपने सियासी रसूख के कारण ही हासिल होता रहा है। यहां से निकलने वाले पाउडर को विदेशों में भी सप्लाई किया जाता है।

    सत्ता और उच्च स्तरीय अफसरशाही तक पोंटी की गहरी पहुंच की मिसाल इसी वर्ष फरवरी में उनके परिसरों पर पडे़ आयकर छापों की सूचना पहले ही पोंटी तक पहुंच जाने की चर्चाओं से भी देखने को मिली। इन चर्चाओं को बल मिलने के बाद आयकर टीम से जुड़े अफसर व कर्मचारी कार्रवाई की जद में भी आए थे। मुरादाबाद स्थित पोंटी के पैतृक आवास में करीब एक माह पहले [पांच अक्टूबर] को गोली चलने के बाद पुलिस कार्रवाई खानापूरी तक सीमित रहने के पीछे भी पोंटी का नाम और रसूख बताया गया था।

    मनचाही जगह प्लाट देने को नेस्तानाबूत कर दी थी मार्केट

    सरकार में सीधा दखल होने के कारण ही नोएडा में एक-एक प्लाट की मारामारी के बीच चढ्डा ग्रुप की कंपनियों ने दो सेक्टर हासिल करने में कामयाबी ली थी। गाजियाबाद के पास 4800 एकड़ में वेब हाइटेक सिटी की नींव भी पोंटी के ग्रुप ने उसी दौर में डाली थी, जिसे एशिया की सबसे बड़ी टाउनशिप बताया जाता है। नोएडा की सबसे पॉश मार्केट में बना मॉल [सेंटर स्टेज मॉल] का मालिक पोंटी चड्ढा ही था। इस मॉल के आस-पास की जमीन आज तक किसी को नहीं दी जा सकी है।

    सूत्र बताते हैं कि इस जमीन को भी पोंटी चड्ढा खरीदना चाहता था। पोंटी को मनचाही जगह पर एक प्लॉट देने के लिए नोएडा की एक पूरी मार्केट को नेस्तानाबूत किया गया था। मार्केट गिराने से पहले इस पर लगे स्टे को खारिज कराया गया। इसके बाद इस प्लॉट को पोंटी को दिया गया। प्लॉट पर बहुमंजिला मॉल बनाने के लिए यहां से गुजर रही शहर के दो प्रमुख सब स्टेशनों को जोड़ने वाली हाईटेंशन लाइन को भी शिफ्ट कर दिया गया। सेक्टर-18 में बनने वाले पोंटी के मॉल की राह में बाधा बनी एक चौकी भी हटा दिया गया।

    पोंटी ने बदलवा दी थी आबकारी नीति

    जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। यह पोंटी चढ्डा का असर रसूख था कि आबकारी नीति बदलवा दी थी। पहली मर्तबा किसी शराब कारोबारी ने प्रदेश की आबकारी नीति मन मुताबिक करायी और सूबे में पहली दफा शराब की दुकानों के नवीनीकरण की परंपरा शुरू करायी जबकि इससे पहले लाटरी के जरिए शराब की दुकानों का आवंटन किया जाता था।

    उत्तर प्रदेश के शराब व्यवसाय में पोंटी चढ्डा ने जब से कदम रखा था तभी से उनका रुतबा दिनोंदिन आबकारी विभाग में बढ़ता चला गया। डेढ़ दशक में उन्होंने विभाग पर इस कदर दबदबा कायम कर लिया था कि 2010-11 में पूरे विभाग उनके इशारे पर काम करने लगा था। 2010-11 में ही बसपा शासनकाल के दौरान आबकारी नीति बदली गई थी। इस अप्रत्याशित परिवर्तन की मुख्य वजह शराब के प्रमुख कारोबारी पोंटी चढ्डा ही थे। उन्होंने ही नीति में परिवर्तन कराते हुए शराब की पुरानी दुकानों का नवीनीकरण कराने का प्रस्ताव तत्कालीन सरकार के सामने रखा था। इसके बाद शासन स्तर से इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई और फिर आबकारी विभाग ने नीति में परिवर्तन करते हुए पूरे प्रदेश में अंग्रेजी शराब, देसी शराब और बीयर के होलसेल का ठेका पोंटी को दे दिया।

    इसके अलावा नई नीति के तहत मेरठ को विशेष जोन बनाते हुए इसके दो दर्जन से ज्यादा जिलों में पोंटी को शराब के होलसेल तथा रिटेल का ठेका दिया गया। यही नहीं लाटरी से दुकानों का आवंटन बंद कराकर जो दुकानें पोंटी के पास पहले से थीं उनका नवीनीकरण कराकर उन्हें ही सौंप दी गई थीं। यह नीति दो वर्ष के लिए बनाई गई थी, जो अगले वर्ष खत्म हो जाएगी।

    पोंटी के इशारे पर होती थी तैनाती

    मुरादाबाद। सूबे के सबसे बड़े शराब कारोबारी गुरदीप सिंह चढ्डा उर्फ पोंटी चढ्डा की 'ऊपर' तक पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी थी कि उनके इशारे पर ही आबकारी विभाग में अफसरों की तैनाती होती थी। किस जिले में किसे जिला आबकारी अधिकारी रखना है तथा किस क्षेत्र में किसे आबकारी निरीक्षक नियुक्त किया जाना है इसमें भी पोंटी का मशविरा चलता था। यह दीगर बात है कि इस बाबत कोई भी अफसर कभी जुबान नहीं खोल पाया।

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