जंगल की इनसाइक्लोपीडिया और हलक्की समुदाय की कोकिला कही जाती हैं ये दो महिलाएं, PM ने भी आदर से झुकाया सिर
PM Modi in Karnataka समाज के लिए किया गया योगदान कभी न कभी सराहा ही जाता है। ऐसे ही योगदान के लिए देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा का आदर किया। जानिए कौन हैं दोनों महिलाएं और समाज में क्या योगदान है। (जागरण ग्राफिक्स)

नई दिल्ली, प्रीति गुप्ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को कर्नाटक के दौरे पर थे। उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोल की चुनाव रैली में पीएम का दिल छू लेने वाला अंदाज दिखा। देश के प्रधानमंत्री ने पद्मश्री से सम्मानित विजेता तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा के पैर छुए। तुलसी गौड़ा ने पीएम को स्नेह दिया। यह मनमोहक तस्वीर देख कर आपके मन में भी यह सवाल आया होगा कि आखिर इतनी साधारण सी दिखने वाली महिलाओं के आगे देश के पीएम ने आखिर क्यों आदर से सिर झुकाया।
इन दोनों ही महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों से देश का, अपने समाज का नाम रोशन किया है। आदिवासी वेशभूषा में रहने वाली साधारण-सी तुलसी गौड़ा को पेड़-पौधों के बारे में एक विशेषज्ञ से भी अधिक जानकारी है। वहीं, बात करें तो सुकरी बोम्मगौड़ा की उन्हें हलक्की वोक्कालिगा समुदाय की कोकिला कहा जाता है।
पद्म श्री से सम्मानित हैं दोनों महिलाएं
सुकरी बोम्मगौड़ा अपने जनजाति के पारंपरिक संगीत और गीतों को संरक्षित करने के लिए काम किया है। इसलिए 2017 में उन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पद्म श्री से सम्मानित किया था। वहीं, तुलसी गौड़ा को साल 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने उनकी उपलब्धियों के लिए पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा था। आप इस लेख के माध्यम से तुलसी गौड़ा और सुकरी बोम्मगौड़ा की हर उपलब्धियों से रूबरू हो सकेंगे और जानेंगे कि कैसे इन आदिवासी महिलाओं ने समाज में कितना अहम योगदान दिया है।
जंगल की इन्सायक्लोपीडिया हैं तुलसी गौड़ा
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित की गईं कर्नाटक की 79 वर्षीय आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा की उपलब्धियों से दुनिया के कोने-कोने के लोग वाकिफ हैं। नंगे पैर रहने वाली और जंगल से जुड़ी तमाम जानकारियां रखनी वालीं तुलसी गौड़ा ने अपना पूरा जीवन पेड़ पौधों के लिए समर्पित कर दिया है। तुलसी गौड़ा के लिए पेड़-पौधे बच्चे की तरह हैं। छोटी झाड़ियों वाले पौधे से लेकर लंबे पेड़ों को कब कैसी देखभाल की जरूरत है, उन्हें इसका ज्ञान बखूबी है। इसीलिए इन्हें जंगल की इन्सायक्लोपीडिया भी कहा जाता है।
पेड़-पौधों के बारे में विशेषज्ञ से भी अधिक हैं जानकारी
आपको जानकर हैरानी होगी की तुलसी गौड़ा ने कभी किताबी ज्ञान नहीं लिया, वह कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन उन्हें तब भी पेड़-पौधों के बारे में इतना अधिक ज्ञान है। कई राज्यों के लोग तुलसी के पास उनकी यह कला सीखने के लिए आते हैं। तुलसी गौड़ा को पेड़ और हर्ब्स की प्रजातियों के बारे में विशेषज्ञों से भी अधिक जानकारी है। उन्होंने अपना जीवन पेड़-पौधों की सेवा में लगाया हुआ है। वह 1 लाख से अधिक पौधे लगा चुकी हैं। उम्र के इस पड़ाव जहां अधिकतर लोग आराम की जिंदगी जीना पंसद करते हैं। वहीं, तुलसी गौड़ा हरियाली बढ़ाने और पर्यावरण सहेजने में ही अपना समय व्यतीत करती हैं।
12 साल की उम्र से कर रही हैं पेड़-पौधों की सेवा
तुलसी कर्नाटक के होनाली गांव में रहती हैं और वह हलक्की वोक्कालिगा समुदाय से तालुक्क रखती हैं। माना जाता है कि वह 12 साल की उम्र से ही पेड़-पौधे की सेवा में लगी हुई हैं। जंगल की इन्सायक्लोपीडिया कही जाने वाली तुलसी गौड़ा ने कम उम्र में पौधरोपण की शुरुआत ऐसे पेड़ों से की जो अधिक लंबे थे और हरियाली फैलाने के लिए जाने जाते थे। इसके बाद उन्होंने कटहल, अंजीर और दूसरे बड़े पेड़ों को लगाना शुरू किया और वह हर बार अलग-अलग किस्म के हर-भरे पेड़-पौधे लगाती थीं। यही नहीं, उनके लगाए हुए एक भी पौधे कभी भी सूखते नहीं थे। जंगलों में किसी एक तरह के पेड़ के बीच उनकी उत्पत्ति के लिए आवश्यक मदर ट्री की पहचान करने में तुलसी को महारत हासिल है। इसके अलावा उन्हें बीजों की गुणवत्ता पहचानने का भी काफी अनुभव है। उन्होंने जैविक विविधता संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में मिली नौकरी
तुलसी गौड़ा के इस अतुल्य ज्ञान के वजह से उन्हें कर्नाटक में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में नौकरी मिली। पेड़-पौधों से इतने लगाव और उनकी देखभाल करने की वजह से उन्हें फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने स्थायी नौकरी का ऑफर मिला। वहां, उन्होंने लगातार 14 साल तक नौकरी की। हालांकि वर्तमान में वे रिटायर हो चुकी हैं। लेकिन जिस तरह एक मां का लगाव अपने बच्चों से ताउम्र तक रहता है। ठीक इसी तरह के रिटायरमेंट के बाद भी तुलसी गौड़ा अब भी पेड़-पौधों की सेवा में अपना दिन व्यतीत करती हैं। पर्यावरण को सहेजने के लिए उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड, कविता मेमोरियल और 2020 में पद्मश्री अवॉर्ड समेत कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।
हलक्की समुदाय की कोकिला कहीं जाती हैं सुकरी
हलक्की वोक्कालिगा समुदाय से तालुक्क रखने वाली तुलसी गौड़ा कहलाती हैं जंगल की इन्सायक्लोपीडिया तो वहीं सुकरी बोम्मगौड़ा हैं 'हलक्की की कोकिला। सुकरी बोम्मगौड़ा एक लोक गायिका हैं। उन्होंने अपने समुदाय के गीतों को अब तक लोगों कों मन में संजोए रखा है। सुकरी बोम्मगौड़ा कर्नाटक के अंकोला से आती हैं। वह परंपरागत जनजातीय संगीत की विरासत को लंबे समय से संभाल रही हैं, जिस कारण उन्हें 'हलक्की की बुलबुल' के नाम से पुकारा जाता है। वह लगभग पांच दशकों से जनजातीय संस्कृति की आवाज बनी हुई हैं।
1000 से अधिक पारंपरिक हलक्की गीतों को दे चुकी हैं आवाज
कोकिला कही जाने वाली सुकरी बोम्मगौड़ा ने यह कला अपनी मां से पाई है। उन्होंने हलक्की वोक्कालिगा जनजाति के पारंपरिक संगीत और गीतों को संरक्षित करने के लिए काम किया है। वह अपने कबीले के सदस्यों को पारंपरिक संगीत और गाने सिखाती हैं। उन्होंने 1000 से अधिक पारंपरिक हलक्की गीतों को गाया है। वह अपने लोक गीतों के माध्यम से अपने अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए अपनी संस्कृति का विकास और प्रचार करती रही हैं। अखिल भारतीय रेडियो और कर्नाटक जनपद अकादमी बोम्मगौड़ा के गीतों को रिकॉर्ड करने में उनकी सहायता करते हैं।
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2017 में पद्म श्री से किया गया सम्मानित
साल1988 में, कर्नाटक सरकार ने उन्हें 'आदिवासी जनजातियों की संस्कृति के संरक्षण' के लिए सम्मानित किया था। उसका नाम एसएसएलसी बोर्ड के आठवीं कक्षा के छात्रों की कन्नड़ पाठ्यक्रमोंं में भी शामिल किया गया है। उनके गीत विभिन्न उत्सवों में गाए जाते हैं। उनके गीत समाज को संदेश देते हैं और कर्नाटक के सांस्कृतिक इतिहास को सभी लोगों के जहन में रखते हैं। सुकरी को कला और संगीत में योगदान के लिए कई राज्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। लोकगीतों के गायन में उनके योगदान के लिए उन्हें नादोजा पुरस्कार और जनपद श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसी के साथ साल 2017 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित अवॉर्ड पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
खुद अनपढ़ होने के बाद भी चलाया साक्षरता अभियान
संगीत में अपने काम के अलावा, बोम्मागौड़ा कर्नाटक के बडिगेरी में एक स्थानीय सरकारी निकाय, ग्राम पंचायत की सदस्य भी हैं। सुकरी खुद अनपढ़ हैं, लेकिन इसके बावजूद शिक्षा की महत्वता को समझते हुए उन्होंने लड़कियों के बीच साक्षरता के लिए अभियान चलाया है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने क्षेत्र में शराब पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी अभियान चलाया है।
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