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    Explainer: कौन होते हैं शंकराचार्य, कैसे मिलती है ये उपाधि? जानें हिंदू धर्म में इनकी कितनी है अहमियत

    Updated: Sat, 13 Jan 2024 01:57 PM (IST)

    धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक आदि शंकराचार्य ने देश में मठों की शुरुआत की थी। इन्हें जगदगुरु के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपने प्रमुख चार शिष्यों को देश के चार दिशाओं में स्थापित किए गए मठों की जिम्मेदारी दी ताकि सनातन धर्म का प्रसार किया जा सके। इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। सनातन धर्म में शंकराचार्य को सर्वोच्च माना जाता है।

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    देश के चार प्रमुख मठों के शंकराचार्य

    ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर तैयारियां काफी जोरो-शोरों से चल रही हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए देश के वरिष्ठ गणमान्यों और साधु-संतों को मंदिर ट्रस्ट की ओर से निमंत्रण भी भेजा गया है। इसी बीच, शंकराचार्यों का नाम भी काफी चर्चा में है।

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    ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर शंकराचार्य कौन होते हैं और उनका क्या महत्व होता है। इस खबर में हम आपको बताएंगे कि शंकराचार्य कौन होते हैं और हिंदू धर्म में इनकी कितनी अहमियत होती है।  

    कौन होते हैं शंकराचार्य?

    धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, आदि शंकराचार्य ने मठों की शुरुआत की थी। वह हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, इन्हें जगदगुरु के नाम से भी जाना जाता है, जो सनातन धर्म की रक्षा और प्रसार करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने प्रमुख चार शिष्यों को देश के चार दिशाओं में स्थापित किए गए मठों की जिम्मेदारी दी। इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। सनातन धर्म में शंकराचार्य को सर्वोच्च माना जाता है।

    मठ/पीठ क्या होते हैं?

    सनातन धर्म के मुताबिक, मठ में गुरु अपने शिष्यों को सनातन धर्म की शिक्षा और ज्ञान देते हैं। यह आध्यात्मिक शिक्षा होती है। हालांकि, इसके साथ ही, मठों में जीवन के कुछ अहम पहलू, सामाजिक सेवा, साहित्य आदि का भी ज्ञान देते हैं। मठ एक ऐसा शब्द है जिसके बहुधार्मिक अर्थ हैं। देश में चार प्रमुख मठ द्वारका, ज्योतिष, गोवर्धन और शृंगेरी पीठ है। दरअसल, संस्कृत में मठों को ही पीठ कहा जाता है।

    कैसे होता है शंकराचार्य का चयन?

    शंकराचार्य के पद पर बैठने वाले व्यक्ति को त्यागी, दंडी संन्यासी, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत ब्राह्मण, ब्रह्मचारी और पुराणों का ज्ञान होना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन, मुंडन, पिंडदान और रूद्राक्ष धारण करना काफी अहम माना जाता है। शंकराचार्य बनने के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है, जिन्हें चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए।

    जिन्हें शंकराचार्य बनाया जाता है, उन्हें अखाड़ों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति के साथ और काशी विद्वत परिषद की स्वीकृति की मुहर भी चाहिए होती है। इसके बाद ही शंकराचार्य की पदवी मिलती है।

    देश के प्रमुख शंकराचार्य कौन और किस मठ पर हैं?

    गोवर्धन मठ

    ओडिशा के पुरी राज्य में गोवर्धन मठ स्थापित है। गोवर्धन मठ के संन्यासियों के नाम के बाद 'अरण्य' सम्प्रदाय नाम लगाया जाता है। निश्चलानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं।

    इस मठ के अन्तर्गत 'ऋग्वेद' को इसके अंतर्गत रखा गया है। गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद आचार्य थे।

    शारदा मठ

    शारदा मठ, गुजरात के द्वारकाधाम में शारदा मठ स्थित है। सदानंद सरस्वती ही शारदा मठ के शंकराचार्य हैं। इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ या आश्रम लगाया जाता है। इस मठ के अंतर्गत 'सामवेद' को रखा गया है। शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे।

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    ज्योतिर्मठ

    उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ स्थित है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद इस मठ के शंकराचार्य हैं। ज्योर्तिमठ के संन्यासियों के नाम के बाद सागर का प्रयोग किया जाता है। अथर्ववेद को इस मठ के अंतर्गत रखा गया है। इस मठ के पहले मठाधीश त्रोटकाचार्य थे।

    शृंगेरी मठ

    दक्षिण भारत के रामेश्वरम में शृंगेरी मठ स्थापित है। इस मठ के संन्यासियों के नाम के पीछे सरस्वती या भारती लगाया जाता है। जगद्गुरु भारती तीर्थ इस मठ के शंकराचार्य हैं।

    इस मठ के अंतर्गत यजुर्वेद को रखा गया है। बता दें कि मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वराचार्य थे।

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