देशभक्ति की ऐसी मिसाल; जब सरकार के फैसले से मनमोहन सिंह को हुआ फायदा, तो PM फंड में जमा करा दी रकम
Manmohan Singh मनमोहन सिंह को उनकी आर्थिक नीतियों के लिए ही नहीं बल्कि सादगी के लिए भी हमेशा जाना जाएगा। उन्होंने सादगी की ऐसी मिसाल पेश की है कि जब वित्त मंत्री रहते हुए उन्हें सरकार के एक फैसले की वजह से लाभ हुआ तो उन्होंने वह रकम खुद नहीं रखी बल्कि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करा दिया। पढ़ें क्या है पूरा मामला।
पीटीआई, नई दिल्ली। मनमोहन सिंह 1991 में जब नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री थे, उस समय विदेश में उनका एक खाता था, जिसमें विदेश में काम करने से हुई उनकी कमाई जमा थी। इसी दौरान जुलाई 1991 में भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किया गया।
अवमूल्यन का मतलब था कि अमेरिकी डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा और विदेशी संपत्ति को भारतीय रुपये में परिवर्तित करने पर अधिक मूल्य मिलने वाला था। सरकार के फैसले के बाद रुपये के संदर्भ में विदेशी खाते में उनकी रकम का मूल्य बढ़ गया। उन्होंने लाभ का खुद इस्तेमाल करने के बजाय प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में चेक जमा करा दिया।
वित्तीय संकट को टालने के लिए किया गया था अवमूल्यन
घटना को याद करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के निजी सचिव रहे रामू दामोदरन ने कहा, 'अवमूल्यन के फैसले के कुछ समय बाद मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे थे। शायद वह प्रधानमंत्री के साथ बैठक के लिए आए थे और बाहर जाते समय उन्होंने मुझे लिफाफा दिया और इसे प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करने के लिए कहा। लिफाफे में एक बड़ी रकम का चेक था। मुझे उल्लेखित राशि याद नहीं है।'
उस समय की सरकार, जिसमें मनमोहन वित्त मंत्री थे, ने वित्तीय संकट को टालने के लिए एक जुलाई 1991 को रुपये का नौ प्रतिशत अवमूल्यन किया और तीन जुलाई 1991 को अतिरिक्त 11 प्रतिशत का अवमूल्यन किया। उस समय भारत के पास बेहद कम विदेशी मुद्रा भंडार बचा था। निर्यात कम हो गया था।
कैंब्रिज में कई बार सस्ती चॉकलेट खाकर रहना पड़ता था
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति पर पढ़ाई के दौरान मनमोहन को पैसों की किल्लत से जूझना पड़ता था। कई बार बिना खाना खाए रहना पड़ता था। कई बार सस्ती चॉकलेट खाकर ही गुजारा चलाते थे। मनमोहन ने 1957 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी।
आर्थिक समस्या से रहते थे परेशान
2014 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'स्टि्रक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण' में, मनमोहन की बेटी दमन सिंह ने कैंब्रिज में अपने पिता के दिनों के बारे में लिखा, 'पैसा ही वास्तविक समस्या थी, जो उन्हें परेशान करती थी, क्योंकि उनकी पढ़ाई और रहने का खर्च प्रति वर्ष लगभग 600 पाउंड था, जबकि पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति से उन्हें लगभग 160 पाउंड मिलते थे। बाकी के रकम लिए उन्हें अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता था। मनमोहन बहुत किफायती थे। डाइनिंग हाल में सब्सिडी वाला भोजन अपेक्षाकृत सस्ता था। वह कभी बाहर खाना नहीं खाते थे। फिर भी अगर घर से पैसे कम पड़ जाते या समय पर नहीं आते तो मुश्किल बढ़ जाती थी।'
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