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    Caveat Petition: अतीक-अशरफ हत्या मामले में UP सरकार ने दाखिल की कैविएट, जानिए क्या होती है यह याचिका

    By Versha SinghEdited By: Versha Singh
    Updated: Wed, 26 Apr 2023 05:55 PM (IST)

    अतीक-अशरफ हत्याकांड़ अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की सुनवाई से पहले ही SC में कैविएट याचिका दायर की है और मांग की है कि कोई भी फैसला सुनाने से पहले उनका पक्ष भी सुना जाए। बताते हैं आपको कि क्या होती है कैविएट...

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    जानिए क्या होती है कैविएट और कहां की जाती है दायर

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कोर्ट कचहरी के मामले में आप लोगों ने कई बार कैविएट याचिका (What is Caveat Petition) का जिक्र जरूर सुना होगा। कई वकील और आम लोग भी इस शब्द का प्रयोग करते हैं। आखिर ये कैविएट होता क्या है और किन किन तरह के मामलों में कैविएट याचिका दायर की जाती है। बताते हैं आपको हम इस खबर के माध्यम से...

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    बता दें कि केवियट के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 148(ए) में प्रावधान मिलते हैं। कैविएट का संबंध केवल सिविल मामलों से होता है।

    क्या होती है Caveat Petition

    कैविएट (Caveat) का मतलब किसी व्यक्ति को पहले से ही सावधान करना होता है। सिविल मामलों में कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जहां कोई परिवादी किसी मुकदमे को न्यायालय में लेकर आता है और उस मुकदमे से संबंधित प्रतिवादी को समन जारी किए जाते हैं।

    कैविएट याचिका (Caveat Petition) एक तरह का बचाव होता है ताकि कोर्ट किसी मामले में एक पक्षीय फैसला ना सुनाए। सिविल प्रोसीजर के कोड 148 (ए) के तहत कैविएट याचिका फाइल की जाती है।

    यदि पक्षकार हाजिर नहीं होता है तब कोर्ट ऐसे पक्षकार को एकपक्षीय कर अपना फैसला सुना देता है।

    ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए कैविएट जैसी व्यवस्था बनाई गई है। कानून में यह नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत है कि सभी पक्षकारों को बराबरी से सुना जाए।

    सभी पक्षकारों से बराबरी से सबूत लिए जाएं, उसके बाद अपना फैसला सुनाया जाए। लेकिन कई मामले ऐसे होते हैं, जहां पक्षकार कोर्ट की किसी बात को सुनते ही नहीं हैं।

    किसी प्रतिवादी (Defendant) को न्यायालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया जाता है, लेकिन प्रतिवादी न्यायालय की बात की अवहेलना कर देते हैं।

    को मजबूर होकर उस अवहेलना करने वाले पक्षकार को कार्यवाही से एकपक्षीय करना पड़ता है, जिसका मतलब है कि उस व्यक्ति का पक्ष सुना ही नहीं जाता है, क्योंकि कोर्ट उसे बार बार बुला रहा होता है और वह व्यक्ति कोर्ट के समक्ष उपस्थित ही नहीं हो रहा था।

    यहां पर कोर्ट को भी न्याय करना होता है, ऐसी परिस्थिति में अदालत केवल एक पक्ष (वादी) को सुनकर कोई भी फैसला सुना देती है, जो तथ्यों और परिस्थितियों के अनुरूप ही होता है।

    तो ऐसे आई Caveat व्यवस्था

    वहीं, कई बार इस व्यवस्था का दुरुपयोग (Misuse of caveat petition) भी होता था। कई बार समन की तामील होती ही नहीं थी और वादी द्वारा यह कह दिया जाता था कि समन की तामील हो चुकी है। इसके बाद इससे संबंधित सबूत भी न्यायालय में पेश कर दिए जाते थे, जबकि प्रतिवादी (Defendant) को इस बात की कोई जानकारी ही नहीं होती थी, इसलिए कैविएट (Caveat) जैसी व्यवस्था आई।

    सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 148(ए) कैविएट को उल्लेखित करती है। इस धारा में कहा गया है कि कोई भी पक्षकार किसी मामले में अंदेशे के आधार पर न्यायालय के समक्ष एक कैविएट दाखिल करके यह कह सकता है कि अगर उससे संबंधित मामला कोर्ट में लाया जाए तब उसके पक्ष को सुने बिना मामले में किसी प्रकार का कोई भी फैसला ना दिया जाए।

    ऐसी कैविएट किसी कोर्ट में अपने खिलाफ भविष्य में आने वाली किसी कार्यवाही में पक्षकार बनने के अंदेशे पर दिया जाता है। जाहिरतौर पर न्यायालय में किसी तरह का कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता है, लेकिन मुकदमा दर्ज होने की संभावनाएं होती हैं।

    तो बस इसी संभावना के आधार पर ही कैविएट को दाखिल किया जाता है। जैसे कि किसी व्यक्ति को यह संभावना है कि कोई व्यक्ति या संस्था उसके खिलाफ किसी प्रकार का सिविल प्रकरण या किसी अन्य मामले को लेकर न्यायालय के समक्ष ला सकता है, तब वह व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कैविएट दायर कर सकता है।

    बता दें कि इस तरह की कैविएट किसी भी मामले में दाखिल की जा सकती है, भले ही कोई वाद हो या कोई अपील। हालांकि आमतौर पर ऐसी कैविएट अपील की संभावना के आधार पर दाखिल होती है।

    Caveat Petition के लाभ 

    • अपने मामले और तथ्यों के अनुसार सबसे अच्छा वकील खोजना फायदे में से एक है।
    • कैविएट एप्लिकेशन दाखिल करने के लिए दस्तावेजों की एक चेकलिस्ट तैयार करना।
    • वकील आपकी ओर से एक कैविएट आवेदन का मसौदा तैयार करेगा।
    • दाखिल होने के हर चरण में अंत तक आपको कैविएट याचिका के अपडेट के बारे में बताया जाएगा।
    • आपको सौंपे गए वकील पर नजर रखता है ताकि आपको कोई परेशानी न हो।
    • आपका कैविएट आवेदन किसी भी मुद्दे के (Of issue) बिना दायर किया जाएगा।

    कितनी होती है Caveat की अवधि? (period of Caveat)

    जानकारी के लिए आपको बता दें कि कोई भी कैविएट 3 महीने यानी 90 दिनों के लिए वैध रहती है। 90 दिन के बाद इसकी वैध अवधि खत्म हो जाती है। किसी मामले को लेकर अगर न्यायालय को फिर से जानकारी देनी है तो फिर से एक नया कैविएट दाखिल करना होता है।

    इसका उल्लेख सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 148(ए) की उपधारा 5 में किया गया है, जहां साफ शब्दों में कहा गया है कि कोई भी कैवियट केवल 90 दिनों तक ही वैध रहता है।

    90 दिनों के बाद यह खुद ही खत्म हो जाता है। अगर इसके बाद पक्षकार कोई मामला कोर्ट के समक्ष लाता है, तब प्रतिवादी के हाजिर नहीं होने के चलते उसे एकपक्षीय किया जा सकता है।

    कौन दाखिल कर सकता है Caveat? (Who file Caveat)

    कोई भी व्यक्ति जिसे न्यायालय के समक्ष पुनर्विचार के अधिकार की आवश्यकता होती है वह कैविएट दाखिल कर सकता है।

    क्या होती है Caveat दाखिल करने की प्रक्रिया (Caveat filing process)

    कैविएट को किसी कोर्ट में दाखिल किया जाता है। कैविएट को दाखिल करने के लिए एक फॉर्म मिलता है, जिसमें कोर्ट का नाम लिखा जाता है। जिस व्यक्ति द्वारा कैविएट दाखिल किया जा रहा है, उस व्यक्ति का नाम भी इसमें लिखना होता है।

    जिस व्यक्ति के खिलाफ कैविएट दाखिल हो रही है, उस व्यक्ति की पूरी जानकारी इसमें लिखनी होती है और जिस मामले में पक्षकार होने की संभावना है, उस मामले के बारे में संक्षेप में इस फॉर्म में भरना होता है।

    इन सभी जानकारियों के साथ पक्षकार अपना कैविएट न्यायालय के समक्ष दाखिल कर सकता है। जिसके बाद कोर्ट कैविएट (Caveat) को अपने रिकॉर्ड में रख लेती है और जब भी उससे संबंधित कोई मामला उस कोर्ट में आता है, तब अदालत किसी भी स्थिति में एक पक्ष में कार्यवाही नहीं करती है और कैविएट दाखिल करने वाले पक्षकार को इस बात की सूचना दी जाती है।

    हाल ही में किन मामलों में लगाई गई Caveat Petition?

    • बता दें कि हाल में हुए अतीक अहमद और अशरफ अहमद की हत्या को लेकर पहले ही कई याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं। वहीं, अब इस मामले को लेकर योगी सरकार ने एक कैविएट दाखिल की है। इस कैविएट के जरिए योगी सरकार ने मांग की है कि बिना उसका पक्ष सुने इस मामले में कोई आदेश पास न किया जाए।
    • वहीं, इसके अलावा बात करें कैविएट याचिका की तो मार्च में दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में अपने खिलाफ ईडी द्वारा जारी समन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती वाली भारत राष्ट्र समिति की एमएलसी के. कविता की याचिका के बाद जांच एजेंसी ने कैविएट एप्लीकेशन दायर की थी।
    • उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना की कमान, उसका नाम और चुनाव चिह्न छीन गया था। वहीं इस दौरान एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका दायर की थी। इस याचिका में कहा गया था कि इस मामले में कोई भी फैसला सुनाने से पहले शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार की दलील को भी सुने।