अंतरिम जमानत पर पवन खेड़ा: क्या होती है Interim, अग्रिम और नियमित Bail; यहां सबकुछ जानें
अक्सर हम सुनते आए हैं कि लोगों को कोर्ट द्वारा अंतरिम अग्रिम और नियमित जमानत दिया गया। आखिर संविधान के अनुसार क्या हैं यह तीनों जमानत। आखिर किन परिस्थितियों में मिलते हैं तीनों जमानत। आइए जानते हैं जमानत से जुड़ी जरूरी बातें।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा की गिरफ्तारी का मामला गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां पर उन्हें बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने पवन खेड़ा को अंतरिम राहत दी है। कई बार हम सुनते हैं कि नेताओं और कई लोगों को कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी या फिर किसी ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया है। तो आखिर क्या होती है अंतरिम, अग्रिम और नियमित जमानत। आइए जानते हैं।
अंतरिम जमानत (Interim Bail)
अंतरिम जमानत एक कुछ समय के लिए जमानत दी जाती है। यह किसी भी आवेदन की पेंडेंसी के दौरान अदालत द्वारा दी जाती है। यह जमानत तब तक दी जाती है जब तक कि नियमित या एंटीऑप्टिटरी जमानत के लिए आवेदन कोर्ट के सामने लंबित नहीं होता है।
गौरतलब है कि यह कुछ शर्तों के साथ दी जाती है, जिन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है। बता दें कि जमानत की अवधि समाप्त होते ही आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर लिया जा सकता है। अंतरिम जमानत रद करने की कोई विशिष्ट प्रक्रिया नहीं है। अगर अंतरिम जमानत की समय समाप्त हो जाती है तो इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)
अग्रिम जमानत एक जमानत है जो किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी से पहले ही इस उम्मीद में दी जाती है कि उसे कुछ दिनों में एक आपराधिक अपराध के लिए गिरफ्तार कर लिया जाएगा। ज्यादातर मामलों में यह उन लोगों की दी जाती हैं, जिनके नाम को बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ झूठे और तुच्छ आपराधिक मामले दर्ज कराए जाते हैं। कई लोग अपने विरोधियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने या उन्हें कुछ समय के लिए गिरफ्तार कराने के लिए उनके खिलाफ मामले दर्ज करवाते हैं। झूठे अपराधों से लोगों की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए इस जमानत का उपयोग किया जाता है।
गौरतलब है कि जब तक किसी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जाता या हिरासत में नहीं रखा जाता है, तब तक जमानत की कोई चर्चा नहीं हो सकती है। नतीजतन, अग्रिम जमानत देने वाला आदेश गिरफ्तारी पर ही प्रभावी होता है। बता दें कि धारा 438 केवल अभियुक्त को उसकी गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत पर रिहा करने के आदेश पर विचार करती है, न कि अग्रिम जमानत पर।
यह भी बता दें कि इस जमानत के लिए एफआईआर की कोई जरूरत नहीं होती है। जब कोई व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी के लिए मौजूद उपर्युक्त आधारों का अनुमान लगाता है, तो वह एफआईआर दर्ज करने से पहले ही इसके लिए आवेदन कर सकता है।
नियमित जमानत ( Regular Bail)
अगर किसी जुर्म में किसी अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है तो वो साधारण या नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। सीआरपीसी की धारा 437 और 439 के तहत नियमित जमानत दी जाती है। पुलिस हिरासत की अवधि, यदि कोई हो, समाप्त होने के बाद आरोपी को जेल भेजा जाना चाहिए। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि नियमित जमानत अदालत में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए हिरासत से एक अभियुक्त की रिहाई है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।