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    'इस्लाम में जरूरी हिस्सा नहीं वक्फ, दान हर धर्म का हिस्सा', Waqf Law पर केंद्र सरकार ने SC में क्या-क्या दलीलें दी?

    केंद्र सरकार की ओर से कानून के पक्ष में दलीलें रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी बात के समर्थन में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संविधान सभा में दिए गए भाषण का जिक्र किया जिसमें उन्होंने रिलीजियस प्रैक्टिस और अनिवार्य रिलीजियस प्रैक्टिस में अंतर की बात कही थी।

    By Mala Dixit Edited By: Piyush Kumar Updated: Wed, 21 May 2025 08:37 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून 2025 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की।(फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून 2025 का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ एक इस्लामी धारणा है इसमें कोई विवाद नहीं है लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि हर धर्म में दान एक हिस्सा होता है लेकिन वह धर्म का जरूरी हिस्सा नहीं होता। वक्फ इस्लाम में केवल दान देने की एक व्यवस्था है जैसे ईसाई धर्म में चैरिटी, हिन्दू धर्म में दान और सिख धर्म में सेवा की परंपरा होती है वैसे ही वक्फ है।

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    केंद्र सरकार की ओर से कानून के पक्ष में दलीलें रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी बात के समर्थन में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संविधान सभा में दिए गए भाषण का जिक्र किया जिसमें उन्होंने रिलीजियस प्रैक्टिस और अनिवार्य रिलीजियस प्रैक्टिस में अंतर की बात कही थी।

    मेहता की ओर से कोर्ट में रखी गई लिखित दलीलों में यह भी कहा गया कि इसलिए वक्फ बाई यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ घोषित) श्रेणी को सक्षम कानून के जरिए कानून लागू होने के बाद से (प्रास्पेक्टिवली) गैर अधिसूचित किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर वक्फ का दावा नहीं कर सकता।

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि अगर संपत्ति सरकार की है और उसे वक्फ बाई यूजर के सिद्धांत का उपयोग करते हुए वक्फ घोषित किया गया है, तो सरकार उसे बचा सकती है।

    कानून पर अंतरिम रोक लगाने का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यहां जितने भी लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं वे सभी याचिकाएं जनहित याचिका हैं, किसी प्रभावित व्यक्ति ने याचिका नहीं की है। किसी भी याचिका में यह सवाल नहीं उठाया गया है कि संसद को ये कानून बनाने की विधायी क्षमता नहीं थी। यही एक आधार होता है जिस पर किसी कानून पर रोक लगाई जाती है।

    यह कानून किसी जल्दबाजी में पारित नहीं हुआ है: तुषार मेहता

    मेहता ने कहा कि इस कानून में 102 साल से चली आ रही खराबियों को दूर किया गया है। यह कानून किसी जल्दबाजी में पारित नहीं हुआ है। इसमें प्रत्येक हितधारक की बात सुनी गई है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में चर्चा हुई। उसे 96 लाख ज्ञापन मिले। जेपीसी की 36 बैठकें हुईं उसकी रिपोर्ट आयी मुस्लिम संस्थाओं से भी परामर्श हुआ। उसके बाद संसद में लंबी चर्चा के बाद कानून पारित हुआ है। उन्होंने कहा कि वक्फ संशोधन कानून के बारे में झूठा प्रचार किया जा रहा है।प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और अगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ आजकल वक्फ संशोधन कानून पर अंतरिम रोक लगाने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है।

    मंगलवार को याचिकाकर्ताओं ने कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हुए कहा था कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वाला है। इस कानून में मुसलमानों के अपनी धार्मिक संपत्ति का प्रबंधन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है।

    'कानून वक्फ के धार्मिक मामलों में दखल नहीं देता'

    बुधवार को केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कानून वक्फ के धार्मिक मामलों में दखल नहीं देता, यह सिर्फ वक्फ संपत्तियों के प्रशासनिक प्रबंधन की धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों के संबंध में है।

    उन्होंने कहा कि वक्फ एक इस्लामी धारणा है इसमें कोई विवाद नहीं है, लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जब तक यह साबित नहीं होता तब तक बाकी दलीलें विफल हैं।

    मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दान हर धर्म का हिस्सा है लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। हिंदुओं में दान की व्यवस्था है, ईसाइयों में चैरिटी है, सिखों में है लेकिन ये धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

    उन्होंने कहा कि अगर वक्फ बोर्ड का कार्य देखा जाए तो ये वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन सुनिश्चित करता है यानी लेखा जोखा उचित है, खातों का आडिट किया जाता है, आदि ये कार्य पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं।

    'वक्फ बोर्ड में सिर्फ दो गैर मुस्लिम सदस्यों के होने से क्या फर्क पड़ जाएगा'

    मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड में सिर्फ दो गैर मुस्लिम सदस्यों के होने से क्या फर्क पड़ जाएगा इससे क्या इसका चरित्र बदल जाएगा। वक्फ बोर्ड वक्फ की किसी भी धार्मिक गतिविधि को नहीं छू रहा है।

    उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ और हिन्दू एन्डोवमेंट (हिन्दू धर्मार्थ ट्रस्ट) में अंंतर है। हिंदू एंडोवमेंट सिर्फ धार्मिक गतिविधियों को देखता है मंदिर उससे जुड़ा होता है जबकि वक्फ में ऐसा नहीं है। वक्फ मस्जिद और मजार का हो सकता है उसके अलावा भी स्कूल, अस्पताल आदि भी वक्फ हो सकता है।

    मेहता ने कहा कि कानून के जरिए धर्मनिरपेक्ष प्रथाओं को विनियमित करने की शक्ति है। संपत्ति का प्रशासन कानून के अनुसार होना चाहिए। वक्फ संशोधन कानून 2025 में वक्फ को अनिवार्य रूप से पंजीकृत कराने के प्रविधान का बचाव करते हुए कहा कि यह कोई नया प्रविधान नहीं है। 1923, 1954 और 1995 के वक्फ कानून में भी वक्फ पंजीकृत कराने की बात थी।

    उन्होंने कहा कि जो संपत्तियां वक्फ बाई यूजर में पंजीकृत हैं उन्हें दो अपवादों को छोड़ कर संरक्षण है। जैसे कि संपत्ति के बारे में अगर कोई विवाद है कोई निजी व्यक्ति के साथ विवाद है या सरकारी संपत्ति को लेकर विवाद है। अगर वक्फ को लेकर किसी निजी पक्ष के बीच विवाद है तो उसे सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णीत किया जाएगा।

    'संपत्ति सरकार की है तो क्या सरकार को यह जांचने का अधिकार नहीं होना चाहिए'

    मेहता ने वक्फ बाई यूजर को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका मतलब होता है कि संपत्ति किसी और की है और आपने निरंतर उपयोग के आधार पर उसे वक्फ घोषित किया है। इसके लिए जरूरी है कि निजी या सरकारी संपत्ति का लंबे समय तक उपयोग किया गया हो।

    मेहता ने सवाल किया कि अगर कोई संपत्ति सरकार की है तो क्या सरकार को यह जांचने का अधिकार नहीं होना चाहिए संपत्ति सरकार की है कि नहीं। उन्होंने कानून प्रविधान का बचाव करते हुए कहा कि सरकार किसी संपत्ति की खुद मालिक नहीं होती वह जनता की ट्रस्टी होती है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व फैसले में कहा है कि सरकार को अपनी जमीन बचानी चाहिए। तभी सीजेआइ गवई ने सवाल किया कि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार का अधिकारी ही तय करेगा कि यह संपत्ति सरकार की है कि नहीं और उसके बाद वह संपत्ति वक्फ नहीं रहेगी। सरकार खुद ही अपने बारे में फैसला दे देगी।

    मेहता ने कहा कि यह सब गलत प्रचार किया जा रहा है। संपत्ति सरकार की है कि नहीं यह सिर्फ राजस्व रिकार्ड में दर्ज करने के लिए जांच होगी संपत्ति का टाइटिल अगर सरकार को पाना है तो इसके लिए उसे कोर्ट में टाइटिल सूट दाखिल करना होगा। इसके अलावा संपत्ति की जांच से अगर कोई पक्ष पीड़ित है तो वह ट्रिब्युनल या कोर्ट जा सकता है।

    मेहता ने वक्फ संशोधन कानून को मुसलमानों के खिलाफ लाए जाने की याचिकाकर्ता की दलीलों का जवाब देते हुए काह कि जब हिन्दू कोड बिल पास हुआ था तब हिन्दुओं, जैन आदि के बहुत से अधिकार चले गए थे तब ये बात नहीं उठी थी। मुसलमान तब भी शरीया कानून से संचालित हो रहे थे।

    मेहता ने वक्फ संशोधन कानून 2013 पर सवाल उठाते हुए कहा कि 1923, 1954 दोनों कानूनों में कहा गया था कि वक्फ एक मुसलमान कर सकता है लेकिन 2013 नवंबर में चुनाव से थोड़ा पहले कानून में संशोधन किया गया और मुस्लिम हटा दिया गया।

    पहले के कानून में भी काग दिखाना था जरूरी: तुषार मेहता

    उन्होंने कहा कि वक्फ बाई यूजर के पंजीकरण की अनिवार्यता के बारे में भी भ्रम फैलाया जा रहा है कि कानून में सौ और दो सौ साल पुरानी संपत्ति के कागज मांगे जाएंगे और कागज नहीं दिखाने पर वक्फ नहीं रहेगी। जबकि ऐसा नहीं है पहले के कानून में भी कागज नहीं दिखाने थे सिर्फ वक्फ को पंजीकृत कराना जरूरी थी और जो भी उसके बारे में पता हो वह बताना था। संपत्ति से होने वाली आय आदि का ब्योरा देना था। इस कानून में भी पंजीकरण के लिए छह महीने का वक्त दिया गया है।

    प्राचीन स्मारक घोषित संपत्तियों के वक्फ न रहने से संबंधित प्रविधान पर मेहता ने कहा कि शुरूआती बिल में यह प्रविधान नहीं था इसे संस्कृति मंत्रालय के अनुरोध पर जोड़ा गया है। एएसआइ ने जेपीसी को दिए ज्ञापन में बताया था कि विभिन्न संपत्तियां हैं मेहता ने कई मंस्जिदों का नाम लिया, जो प्राचीन संरक्षित स्मारक हैं लेकिन प्रबंधन कमेटी एएसआइ को कई बार वहां जाने नहीं देती या उनका संरक्षण नहीं करने देती। जो कानून के खिलाफ है। कई जगह तो दुकाने बना ली गईं है।

    कई जगह मुतवल्ली संपत्ति को अपनी संपत्ति की तरह पेश करते हैं ऐसे में यह पंजीकरण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि ये वक्फ है और उसका प्रबंधन और प्रशासन उचित ढंग से होगा। मेहता की बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी। उसके बाद याचिकाकर्ता प्रतिउत्तर देंगे।

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