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    'वक्फ सिर्फ दान, यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं'; केंद्र ने SC में दी दलील; गैर मुस्लिमों की नियुक्ति को बताया जरूरी

    Updated: Wed, 21 May 2025 05:53 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि वक्फ सिर्फ एक इस्लामी अवधारणा है लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि वक्फ बाय यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि केवल वैधानिक मान्यता है। उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड धर्मनिरपेक्ष काम करता है।

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    तुषार मेहता ने तर्क दिया कि वक्फ बाय यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है (फोटो: जागरण)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को केंद्र सरकार ने अपनी दलीले पेश कीं। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कहा कि वक्फ सिर्फ एक इस्लामी अवधारणा है। यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

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    लाइव लॉ के मुताबिक, केंद्र ने कहा कि इस्लाम में वक्फ का मतलब केवल दान है, इसके अलावा कुछ नहीं। दान को हर धर्म में मान्यता प्राप्त है। इसलिए इसे धर्म का अनिवार्य सिद्धांत नहीं माना जा सकता। तुषार मेहता ने तर्क दिया कि वक्फ बाय यूजर कोई मौलिक अधिकार नहीं है। यह केवल वैधानिक मान्यता है, जिसे छीना जा सकता है।

    चीफ जस्टिस की बेंच कर रही सुनवाई

    बता दें कि वक्फ कानून से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ कर रही है। तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड केवल धर्म निरपेक्ष काम करता है। इसलिए बोर्ड में दो गैर मुस्लिमों की नियुक्ति से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।

    सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि हिंदू बंदोबस्ती पूरी तरह से धार्मिक है। इसमें आयुक्त मंदिर के अंदर जाकर पुजारी की नियुक्ति कर सकता है। लेकिन वक्फ मस्जिद, दरगाह, अनाथालय या स्कूल कुछ भी हो सकता है। इसलिए इसमें गैर मुसलमामों का शामिल किया गया है।