बंगाल में SIR पर घमासान के बीच चुनाव आयोग से मिला टीएमसी प्रतिनिधिमंडल, एक-दूसरे पर लगाए आरोप
पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले चुनाव आयोग और तृणमूल कांग्रेस के बीच तीखी बहस हुई। अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी प्रतिनिधिमंडल ने संदिग्ध मतदाताओं की ...और पढ़ें

अभिषेक बनर्जी । (एएनआई)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल चुनाव मे तो चार महीने का वक्त है लेकिन उसकी गरमी दिल्ली तक पहुंच गई है। बुधवार को SIR में संदिग्ध मतदाताओं की सुनवाई और चुनाव प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग और तृणमूल कांग्रेस के बीच घमासान हुआ। चुनाव आयोग में ढाई घंटे तक चली बैठक में दोनों ओर से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी संदिग्ध मतदाताओं की सुनवाई के दौरान बीएलओ-दो की मौजूदगी पर अड़ गए। वहीं चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि चुनावी प्रक्रिया शामिल किसी भी अधिकारी को डरा-धमकाने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। तृणमूल कांग्रेस के 10 सांसदों व पश्चिम बंगाल के मंत्रियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ अभिषेक बनर्जी पूर्ण चुनाव आयोग (मुख्य चुनाव आयुक्त व दो चुनाव आयुक्त) के सामने अपनी बात रखने पहुंचे।
शुरूआत में 60 साल से अधिक उम्र के संदिग्ध मतदाताओं की सुनवाई उनके घर पर करने की मांग पर चुनाव आयोग ने जल्द फैसला लेने का भरोसा भी दिया। लेकिन पूरी तरह से टकराव के मूड में आए अभिषेक बनर्जी ने चुनाव आयोग पर आरोपों की झड़ी लगा दी। बनर्जी ने चुनाव आयोग को यह बताने को कहा कि जिन 58 लाख मतदाताओं के नाम ड्राप्ट सूची से हटाए गए हैं, उनमें कितने बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं।
चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि यह बताने का काम उनका नहीं है और वे सिर्फ मतदाता सूची के शुद्धिकरण की कोशिश कर रहे हैं। सबसे बड़ा टकराव संदिग्ध मतदाताओं की सुनवाई के दौरान बीएलओ-दो की मौजूदगी को लेकर हुई।
अभिषेक बनर्जी का कहना था कि जब बीएलओ फार्म बांटने में शामिल हो सकता है, मतदान के दौरान बूथ में रह सकता है, तो फिर सुनवाई के दौरान क्यों नहीं रह सकता है। लेकिन चुनाव आयोग ने इसकी अनुमति देने से साफ-साफ इनकार कर दिया। इस पर अभिषेक बनर्जी ने चुनाव आयोग से इसकी लिखित अधिसूचना जारी करने को कहा, जिसे चुनाव आयोग ने मना कर दिया।
इसके साथ ही अभिषेक बनर्जी ने बहुमंजिली इमारतों, सोसाइटियों और स्लम एरिया के भीतर मतदान केंद्र बनाने के चुनाव आयोग के फैसले पर भी सवाल उठा दिया। जबकि देश में हर जगह बड़ी सोसायटी में बूथ लगाए जाते हैं ताकि मतदाताओं को आसानी हो। लेकिन तृणमूल सिर्फ सरकारी स्कूलों, सरकारी भवनों और सामुदायिक केंद्रों में बूथ बनाने की मांग करती रही है।
दोनों ओर से चली गरमागरम बहस के बीच चुनाव आयोग ने प्रतिनिधिमंडल को साफ कर दिया कि मतदाताों की सुविधा को देखते हुए बहुमंजिली इमारतों, सोसाइटियों और स्लम एरिया में बूथ बनाने का फैसला नहीं बदला जाएगा और यहां नए बूथ बनाए जाएंगे। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि तृणमूल सरकार को बीएलओ को मिलने वाले भत्ते को तत्काल जारी करना चाहिए।
पश्चिम बंगाल सरकार बीएलओ के 18 हजार रुपये मानदेय जारी नहीं कर रही है। चुनाव आयोग ने तृणमूल को यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसका कोई भी कार्यकर्ता चुनाव ड्यूटी में शामिल किसी भी अधिकारी को नहीं धमकाए। कानून हाथ में लेने वाले ऐसे उपद्रवियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। चुनाव आयोग का कहना था कि बीएलओ, ईआरओ, एईआरओ और आब्जर्वर समेत किसी भी अधिकारी को किसी भी प्रकार की धमकी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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