एक अधूरी प्रेम कहानी और बन गया IIM अहमदाबाद, क्या था विक्रम साराभाई और कमला चौधरी के रिश्ते का सच?
डॉ. विक्रम साराभाई, भारत के अंतरिक्ष मिशन के जनक थे। उनकी जिंदगी में एक प्रेम कहानी भी थी, जो कमला चौधरी से जुड़ी थी। कमला, साराभाई की पत्नी की दोस्त थीं और उनका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव था। कहा जाता है कि साराभाई ने कमला को अहमदाबाद में रखने के लिए IIM अहमदाबाद की स्थापना की। कमला इसकी पहली फैकल्टी सदस्य बनीं। विक्रम साराभाई और कमला चौधरी का रिश्ता IIM अहमदाबाद की स्थापना का कारण बना।

विक्रम साराभाई और कमला चौधरी क्या एक प्रेम कहानी से बना IIM अहमदाबाद (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। डॉ. विक्रम साराभाई, ये सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि भारत के अंतरिक्ष मिशन की पहचान हैं। वे वही व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाया और वो मानते थे कि विज्ञान सिर्फ प्रयोगशालाओं के लिए नहीं बल्कि समाज के बदलाव के लिए भी होना चाहिए।
पर विक्रमसाराभाई की जिंदगी में एक ऐसा अध्याय भी है जो किसी भारतीय प्रेम कहानी जैसी लगती है, जहां बुद्धि और भावना साथ चले और इसी के बीच जन्म लिया एक महान संस्थान IIM अहमदाबाद ने।
कैसे कहानी में आईं कमला चौधरी?
मनोविश्लेषक और लेखक सुधीर काकर ने अपनी किताब 'A Book Of Memory: Confessions and Reflections' में लिखा है कि अहमदाबाद में दूसरा भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) सिर्फ सरकार की योजना या शैक्षणिक महत्वकांक्षा का नतीजा नहीं था, बल्कि इसमें एक गहरे व्यक्तिगत रिश्ते की भूमिका भी थी। सुधीर काकर कमला चौधरी के भतीजे हैं। ये वही महिला हैं जिनसे साराभाई का रिश्ता इस कहानी का केंद्र बन गया।
1919 में अहमदाबाद के प्रसिद्ध औद्योगिक परिवार में जन्मे विक्रम साराभाई का बचपन समृद्ध और बौद्धिक माहौल में बीता। उनके पिता अंबालाल साराभाई उस दौर के बड़े वस्त्र उद्योगपति थे और उनका घर स्वतंत्रता सेनानियों व विचारकों का मिलन स्थल था। यही माहौल विक्रम में विज्ञान और समाज सुधार दोनों के प्रति गहरी रुची लेकर आया।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत लौटे विक्रम साराभाई
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे भारत लौटे और बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में नोबेल विजेता डॉ. सीवी रमन के साथ काम किया। 1947 में उन्होंने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की स्थापना की जो बाद में भारत की अंतरिक्ष यात्रा की जननी बनी।
1950 के दशक में साराभाई ने विज्ञान के साथ-साथ उद्योग के आधुनिकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया और अहमदाबाद टेक्सटाइन इंडस्ट्री रिसर्च एसोसिएशन (ATIRA) बनाई। यहीं उनकी मुलाकात हुई कमला चौधरी से जो मनोविज्ञान में प्रशिक्षित, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय और सामाजिक सुधारों में गहरी रुची रखने वाली महिला थीं।
कमला चौधरी का विक्रम साराभाई के जीवन पर प्रभाव
सुधीर काकर के अनुसार, कमला न सिर्फ साराभाई की पत्नी मृणालिनी की मित्र थीं, बल्कि साराभाई के जीवन में एक गहरा स्थान बना गईं। साराभाई ने उन्हें ATIRA में नौकरी की पेशकश की और यहीं से शुरू हुआ एक रिश्ता जो लगभग दो दशकों तक चला।
काकर की किताब में उनके रिश्ते को बौद्धिक और भावनात्मक साझेदारी बताया गया है, एक ऐसा जुड़ाव जो संस्थान निर्माण और समाज परिवर्तन दोनों में झलकता था। लेकिन यह रिश्ता आसाम नहीं था। कमला यह महसूस करने लगीं थी कि यह नाजुक स्थिति उन्हें असहज बना रही है और उन्होंने दिल्ली जाने की इच्छा जताई।
कैसे रखी गई IIM अहमदाबाद की नींव
कहा जाता है कि तब साराभाई ने उन्हें अहमदाबाद में ही बनाए रखने का रास्ता खोज निकाला और एक नए संस्थान की स्थापना की। उस समय भारत सरकार और फोर्ड फाउंडेशन, प्रबंधन शिक्षा के लिए नए संस्थान की योजना बना रहे थे।
साराभाई ने अपनी दूरदर्शिता, संपर्कों और प्रभाव से दोनों पक्षों को अहमदाबाद को इस संस्थान के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान मानने के लिए राजी कर लिया। इस तरह 1961 में IIM अहमदाबाद की नींव रखी गई। कमला चौधरी इसकी पहली फैकल्टी सदस्य बनीं और संस्थान की संस्कृति व दिशा तय करने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
विक्रम साराभाई की बेटी ने प्यार की बात से किया इनकार
हालांकि, इस कहानी के रोमांटिक पहलू पर सब सहमत नहीं है। विक्रम साराभाई की बेटी मलिका साराभाई ने यह स्वीकार किया कि उनके पिता और कमला चौधरी के बीच गहरा रिश्ता था, लेकिन उन्होंने यह मानने से इनकार किया कि IIM अहमदाबाद केवल उसी वजह से अस्तित्व में आया।
उन्होंने कहा, "पापा और कमला के बीच गहरा रिश्ता था लेकिन यह कहना कि IIM सिर्फ उन्हें यहां रखने के लिए बनाया गया उनके विजन के साथ अन्याय होगा। मनोविश्लेषक हर चीज में निजी मकसद ढूंढ लेते हैं।"
क्या है दोनों के रिश्ते का सच?
सच क्या था, यह शायद पक्के तौर पर कोई नहीं कह सकता। पर इतना जरूर है कि कमला चौधरी ने IIM अहमदाबाद के शुरुआती दौर को गहराई से प्रभावित किया और विक्रम साराभाई जिन्होंने आगे चलकर ISRO की स्थापना की और भारत की पहली उपग्रह परियोजना को दिशा दी, उन्होंने दिखाया कि विज्ञान, संवेदना और दृष्टि तीनों मिलकर राष्ट्र निर्माण की असली ताकत हैं।

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