Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'इमरजेंसी के दौरान सुप्रीम कोर्ट मूकदर्शक बना रहा', उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका को लेकर और क्या-क्या कहा?

    Updated: Thu, 17 Apr 2025 11:24 PM (IST)

    उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 के दुरुपयोग और कार्यपालिका की शक्तियों को कमजोर करने पर तीखी आलोचना की। उन्होंने जस्टिस वर्मा के घर नकदी मामले में एफआईआर न होने और जांच में देरी पर सवाल उठाए। धनखड़ ने न्यायपालिका को ‘सुपर संसद’ बताते हुए संविधान की मनमानी व्याख्या और जवाबदेही की कमी पर चिंता जताई है।

    Hero Image
    उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के दुरुपयोग पर तीखा प्रहार किया। (फोटो सोर्स- पीटीआई)

    नीलू रंजन, जागरण। नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा संविधान के अनुच्छेदों का मनमानी व्याख्या कर कार्यपालिका की शक्तियों को कमजोर करने की बढ़ती प्रवृति पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गहरी आपत्ति जताई है। उन्होंने संविधान का अनुच्छेद 142 देश में लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बताया, जिसका इस्तेमाल न्यायपालिका रात-दिन कभी भी कर सकता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जस्टिस वर्मा के घर मिली नकदी को लेकर क्या बोले उपराष्ट्रपति?

    जगदीप धनखड़ ने जस्टिस वर्मा के घर मिले नोटों के मामले में अभी तक एफआइआर दर्ज नहीं होने को न्यायाधीशों को खुद को कानून से ऊपर करने का प्रमाण बना लिया। उन्होंने कहा कि आग लगने की घटना के बाद सात दिनों तक बात को दबाए रखा गया। मीडिया में सामने आने पर जले नोटों के फोटो और वीडियो जारी कर पारदर्शिता दिखाने की कोशिश की गई। लेकिन जांच शुरू नहीं हो सकी।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा जांच के लिए तीन सदस्य कमेटी के अधिकार पर सवाल उठाते हुए धनखड़ ने कहा कि कमेटी को जांच करने का क्या अधिकार है। यह समिति कानून सम्मत नहीं है। समिति सिर्फ सिफारिश कर सकती है। जांच करने का अधिकार सिर्फ कार्यपालिका को है और उसकी प्रक्रिया एफआइआर से शुरू होती है। लेकिन कार्यपालिका ऐसा नहीं कर सकती है, क्योंकि न्यायाधीशों ने खुद को सुरक्षित कर लिया है।

    'सुप्रीम कोर्ट नहीं तय कर सकती है सीमा'

    राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने साफ किया कि राष्ट्रपति के लिए सुप्रीम कोर्ट समय सीमा तय नहीं कर सकती है। राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद की गरिमा का ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल के फैसले में राष्ट्रपति के लिए समय सीमा निर्धारित कर न्यायापालिका ने कार्यपालिका और विधायिका दोनों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण की सीमा पार कर दी है। उन्होंने साफ किया कि अनुच्छेद 143 का हवाला देकर राष्ट्रपति के लिए समय सीमा नहीं बांधी जा सकती है।

    उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करना अलग बात है। राष्ट्रपति के लिए समय सीमा निर्धारित करने को अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण बताते हुए उन्होंने कहा कि अब न्यायाधीश ही कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम भी करेंगे। उन्होंने कहा कि इससे न्यायपालिका एक ऐसा सुपर संसद बन जाएगा, जिस पर देश का कोई कानून लागू नहीं होगा। सुपर संसद की तरह काम करने और बिल्कुल जवाबदेही नहीं होने का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विधानसभा, संसद के हर चुनाव में उम्मीदवार को संपत्ति घोषित करनी होती है, लेकिन न्यायाधीशों पर यह अनिवार्यता लागू नहीं होती है।

    जगदीप धनखड़ ने आजादी के बाद न्यायपालिका में लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण और खुद को संविधान के असली संरक्षक बताने की प्रवृति पर भी आपत्ति जताई। धनखड़ के अनुसार संविधान की व्याख्या करने का अधिकार पांच जजों की संविधान पीठ को है। लेकिन जब यह व्यवस्था की गई थी, तब केवल आठ न्यायाधीश होते थे। अब 30 है। आठ में से पांच का मतलब है कि व्याख्या बहुमत द्वारा होगी। लेकिन अभी 30 में पांच के छोटे अल्पमत से संविधान की व्याख्या हो रही है।

    सुप्रीम कोर्ट मूकदर्शक बना बैठा रहा: जगदीप धनखड़

    धनखड़ के अनुसार न्यायाधीश केशवानंद भारती केस में 1973 में संविधान के मूल ढांचे की व्याख्या कर खुद को संविधान का असली संरक्षक बताते फिरते हैं। लेकिन उसके दो साल ही आपातकाल की घोषणा कर संविधान प्रदत मूल अधिकारों को छिन लिया गया और सुप्रीम कोर्ट मूकदर्शक बना बैठा रहा।

    धनखड़ ने संसद के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से पारित किये गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के कानून को निरस्त करने और कोलेजियन प्रणाली द्वारा जजों की नियुक्ति का अधिकार खुद के पास करने को संविधान की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने जजों की नियुक्ति के मामले में संविधान सभा में हुई बहस और उसमें बाबा साहब भीमराव अंबेडेकर के बयान का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 124 में सिर्फ मुख्य न्यायाधीश से परामर्श की बात रखी गई थी। लेकिन इसकी मनमानी व्याख्या कर परामर्श को सहमति में परिवर्तित कर दिया गया।

    उन्होंने लोकपाल द्वारा हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को अधिकार क्षेत्र लेने पर सुप्रीम कोर्ट की त्वरित प्रतिक्रिया और स्वत: संज्ञान लेते हुए इसकी सुनवाई करने पर हैरानी जताई।

    उन्होंने कहा कि दूसरे लोकतांत्रिक देशों ने न्यायापालिक के स्वत: संज्ञान लेने की बात नहीं है। उनके अनुसार न्यायपालिका की स्वतंत्रता किसी मामले में जांच और छानबीन के खिलाफ अभेद्य कवच नहीं हो सकता है। अभी तक एफआइआर क्यों नहीं।

    यही भी पढ़ें: भविष्य में कैसे लड़ा जाएगा युद्ध? चुनौतियों से निपटने के लिए भारतीय सेना बना रही ये प्लान

    comedy show banner
    comedy show banner