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    मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराएगी VHP, राज्यों के सीएम से करेगी मुलाकात; पूछा- मस्जिद क्यों नहीं चलाते?

    Updated: Sun, 20 Jul 2025 11:30 PM (IST)

    विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने सभी हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का अभियान चलाने का फैसला किया है। इसके लिए विहिप सात सितंबर से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलकर उन पर दबाव बनाएगी। विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि सरकार चर्च मस्जिद गुरुद्वारे नहीं चलाती लेकिन मंदिर चलाती है।

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    सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का अभियान चलाएगी विहिप (फाइल फोटो)

    राज्य ब्यूरो, जागरण, मुंबई। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने तय किया है कि वह सभी हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का अभियान चलाएगी। इसके लिए विहिप सात सितंबर से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलेगी और उन पर हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का दबाव बनाएगी।

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    महाराष्ट्र के जलगांव में दो दिन चली विहिप की केंद्रीय प्रबंध समिति की बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि सरकार चर्च नहीं चलाती, मस्जिद नहीं चलाती, गुरुद्वारे नहीं चलाती, लेकिन मंदिर चलाती है। कई राज्यों का कानून कहता है कि मंदिर की आय का 12 प्रतिशत प्रशासनिक खर्च के रूप में सरकारी खजाने में जमा किया जाएगा। दो प्रतिशत ऑडिट फीस लेते हैं।

    मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने का संकल्प

    उन्होंने कहा कि यदि मंदिर में कोई प्रशासक रखा गया है, तो उसका वेतन-भत्ता मंदिर से लिया जाएगा। जबकि हमारी जमीनों की रक्षा सरकार नहीं कर पा रही है। यह भी सुनिश्चित नहीं कर पा रही है कि मंदिर में अच्छे वातावरण में पूजा हो। इसलिए सात सितंबर से हम प्रत्येक मुख्यमंत्री को मिलेंगे और उनसे कहेंगे कि उन्हें मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने पड़ेंगे।

    कुमार ने कहा कि हम विधानसभा के सत्रों में प्रत्येक विधायक से मिलेंगे और उनसे कहेंगे कि वे मंदिर वापस करने के लिए अपनी पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाएं। इस प्रकार सरकारी नियंत्रण से सभी मंदिर वापस लेकर उन्हें एक ट्रस्ट चलाएगा, जिसमें भक्तों के सभी वर्ग शामिल होंगे। कम से कम एक महिला, एक व्यक्ति अनुसूचित जाति का और यदि उस क्षेत्र में जनजातियां भी रहती होंगी तो एक व्यक्ति जनजातीय समाज का भी ट्रस्ट में शामिल होगा।

    हिंदी-मराठी विवाद पर रखी राय

    • महाराष्ट्र में इन दिनों चल रहे हिंदी-मराठी विवाद पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए आलोक कुमार ने कहा कि यह विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। हम तो संविधान में विश्वास करने वाले लोग हैं। इसलिए संविधान के शेड्यूल में जितनी भी भाषाएं शामिल हैं, उन सभी को राष्ट्रभाषा मानते हैं। इनमें हिंदी के साथ मराठी, बंगाली, तमिल सभी भाषाएं शामिल हैं। संविधान बनाने वालों ने यह भी स्वीकार किया है कि राज्य का कामकाज राज्य की भाषा में होने से लोगों को सुविधा होगी।
    • लेकिन देश में संपर्क की भाषा हिंदी होगी। अब हिंदी को कौन सी कक्षा से पढ़ाया जाना चाहिए, इसके बारे में सरकार ने एक समिति बनाई है। सभी लोग उस समिति को अपनी राय देंगे। उसके आधार पर जो फैसला होगा, वह स्वीकार्य होगा। मैं हिंदी और मराठी में कोई संघर्ष या विरोध नहीं देखता हूं। आलोक कुमार ने कहा कि आजकल भाषा, प्रांत, संस्कृति से संबंधित छोटे-छोटे मुद्दों को बड़ा करके विवाद खड़ा करने का षड्यंत्र चल रहा है।
    • अभी तो यह कहा जा रहा है कि आगामी जनगणना में कुछ लोग अपने आपको हिंदू लिखवाएंगे ही नहीं। हम इन शक्तियों का भी मुकाबला करेंगे। मा‌र्क्सवादी, कट्टर इस्लामवादी, विस्तारवादी चर्च, विदेशी पैसा और बाजारवाद आदि ऐसी चुनौतियां हैं, जो टुकड़े-टुकड़े गैंग बनाकर वैमनस्य निर्माण कर रहे हैं। हमने हिंदू समाज, संतों व सामाजिक संगठनों से अपील की है कि वे समाज में जाएं और इस प्रकार पैदा किए जा रहे विवादों का विरोध करें।

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