'वीरप्पन: चेसिंग द ब्रिगैंड' किताब में विजय ने दी कई दिलचस्प जानकारियां
वीरप्पन को मार गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले विजय कुमार ने अपनी किताब 'वीरप्पन: चेसिंग द ब्रिगैंड' में इस ऑपरेशन से जुड़े कई खुलासे किए हैंं।
नई दिल्ली (पीटीआई)। कुख्यात चंदन तस्कर के नाम से आतंक का पर्याय बनेे वीरप्पन को ऑपरेशन कॉकून के तहत खत्म करने वाले विजय कुमार ने अपनी किताब 'वीरप्पन: चेसिंग द ब्रिगैंड' में इस ऑपरेशन से जुड़े कई खुलासे किए हैं। तमिलनाडु के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की टीम की अगुवाई करने वाले के विजय कुमार ने वीरप्पन द्वारा की गयी नृशंस हत्याओं और अपहरण की घटनाओं का ज़िक्र किया है। इसमें कन्नड़ अभिनेता राजकुमार को 108 दिन तक अगवा किये जाने की घटना का भी वर्णन है। उनकी इस किताब का विमोचन खुद केंद्रीय गृह मंत्री करेंगे।
गजब की सिक्स्थ सैंस
इस किताब में उन्होंने कहा है कि वीरप्पन को गजब की सिक्स्थ सैंस थी। इसकी वजह से वह कई बार पुलिस की गिरफ्त में आते आते रह गया था। एक वाकयेे का जिक्र करते हुए उन्होंने किताब में लिखा है कि उसको पकड़ने के लिए एक बार पुलिस ने जाल बिछाया था। उसको हथियार बेचने के नाम पर बिछाए गए इस जाल में वह काफी हद तक फंस भी गया था और प्लान के मुताबिक वह हथियारों की डील के लिए अपने साथियों के साथ आ भी रहा था। लेकिन रास्ते मेंं उसके कंधे पर एक छिपकली गिर गई। उसको लगा यह अपशकुन लगा और वह वहां से ही वापस लौट गया।
विरप्पन का पूरा किस्सा किताब में शामिल
रूपा प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक में 1952 में गोपीनाथम में वीरप्पन के जन्म से लेकर 2004 में पादी में ऑपरेशन कॉकून के दौरान मारे गिराये जाने तक की कई घटनाओं को शामिल किया गया है। वर्ष 2010-2012 के दौरान सीआरपीएफ का नेतृत्व करने वाले कुमार वर्तमान में गृह मंत्रालय में वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं।
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बिजनेसमैन कराता था जानकारी मुहैया
इसमें उन्होंने उस बिजनेसमैन का भी जिक्र किया है जो विरप्पन को जानकारियां मुहैया करवाता था। इसमें कहा गया है कि एक प्रभावशाली बिजनसमैन के श्री लंका के तमिल लड़ाकों से संबंध थे। यही आदमी वीरप्पन को सूचना और शायद हथियार भी मुहैया कराता था। पर कहानी यहां खत्म नहीं होती। लेकिन बाद में एसटीएफ ने इसी को विरप्पन को पकड़ने के लिए मोहरा बनाया। इस आदमी को जब उसके श्री लंका कनेक्शन उजागर का डर दिखाया गया तो इसने वीरप्पन के खिलाफ स्पेशल टास्क फोर्स का साथ देने का फैसला किया। 18 अक्टूबर 2004 को स्पेशल टास्क फोर्स ने वीरप्पन को मार गिराया।
वीरप्पन का आतंक
तीन दशकों तक दक्षिण के जंगलों में वीरप्पन का आतंक था। हाथी दांत से लेकर चंदन की लकड़ी तक की तस्करी में वीरप्पन की तूती बोलती थी। उसके रास्ते में जो आया, मारा गया। वीरप्पन की नजर कमजोर हो रही थी। वह चाहता था कि बिजनसमैन उसके लिए कुछ बंदूकों को इंतजाम करे। इसके साथ ही उसके मोतिया के ऑपरेशन का भी बंदोबस्त करे।
एसटीएफ की भूमिका
जब मुखबिर ने बिजनसमैन को फोन कर वीरप्पन के दिए पासवर्ड बताया, तो बिजनसमैन ने उसे दूसरे शहर के गेस्ट हाउस में बुलाया। एसटीएफ ने खुफिया तरीके से दोनों की बातचीत सुन ली। बिजनसमैन ने मुलाकात के दौरान वीरप्पन की सेहत का हाल पूछा। वह वीरप्पन को अन्ना (बड़ा भाई) कहकर पुकार रहा था। जब मुखबिर ने वीरप्पन की चाह बतायी तो बिजनसमैन इसके लिए राजी हो गया।
बिजनेसमैन को एसटीएफ का ऑफर
जैसे ही मुखबिर बाहर निकला एसटीएफ कमरे में दाखिल हो गयी। उन्होंने व्यापारी को धमकी दी कि अगर वह उनका साथ नहीं देगा तो श्री लंकाई उग्रवादियों के साथ उसके संबंधों की बात जगजाहिर हो जाएगी। एसटीएफ ने जैसे ही व्यापारी को ऑफर दिया कि अगर वीरप्पन को पकड़ने में उनकी मदद करेगा तो उसे अभय दे दिया जाएगा वह फौरन इसके लिए राजी हो गया।
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हथियारों की डील
योजना बनी कि बिजनसमैन वीरप्पन के पास एक संदेशवाहक भेजेगा जो उसे बताएगा कि बंदूकों की डील श्री लंका में होगी। वही आदमी वीरप्पन को त्रिची या मदुरै के अस्पताल में ले जाएगा जहां उसकी आंखों का ऑपरेशन हो जाएगा। इसके बाद उसे श्री लंका ले जाया जाएगा। हथियारों की डील होने के बाद उसे वापस भारत लाया जाएगा। बिजनसमैन जानना चाहता था कि आखिर वह आदमी कौन होगा जो यह सब काम करेगा। एसटीएफ ने इस बारे मे उसे फिक्र न करने को कहा।
एसटीएफ का फुलप्रुफ प्लान
इस काम के लिए तत्कालीन एसटीएफ चीफ के विजय कुमार ने सब-इंस्पेक्टर वेल्लादुरई को चुना। योजना के मुताबिक एसटीएफ ने बिजनसमैन से कहा कि वह वीरप्पन के आदमी से धर्मपुरी के नजदीक किसी चाय की दुकान पर मिले। इसके बाद उस आदमी ने एक लॉटरी टिकट के दो टुकड़े किए और एक बिजनसमैन को देते हुए कहा, 'यह अन्ना का ट्रैवल टिकट' है। यह टिकट उस आदमी के लिए था जो वीरप्पन को आंखों के ऑपरेशन के लिए अस्पताल लेकर जाएगा। यानी टिकट के दोनों टुकड़े मिलने के बाद ही वीरप्पन उस आदमी के साथ जाएगा।यही लॉटरी का आधा टिकट वीरप्पन के लिए वन-वे टिकट बन गया।
ढेर हुआ वीरप्पन
एनकाउंटर वाले दिन एंबुलेंस से जा रहे वीरप्पन और उसके साथियों को तमिलनाडु के जंगल में एसटीएफ की टीम ने रास्ते में एक बड़ा ट्रक खड़ा कर रोक दिया और उसको चारों तरफ से घेर लिया। शुरुआत में विरप्पन को सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उसने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी। इसके बाद कुछ समय के लिए ताबड़तोड़ गोलियांं चली। इनमें से एक गोली विरप्पन के सिर को चीरती हुई निकल गई और वह वहीं पर ढ़ेर हो गया। इस ऑपरेशन में एंबुलेंस में मौजूद विरप्पन के सभी साथी मारे गए थे। वीरप्पन को पकड़ने में पुलिस को 20 साल से भी ज्यादा का समय लग गया था। इसमें करीब 130 पुलिस अधिकारियों को पकड़ने की कोशिश में लगाया गया। साथ ही 1 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च भी किया गया।
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