'बिना अपमानित करने की मंशा के जातिसूचक शब्द बोलना अपराध नहीं', इस मामले में 17 साल बाद शिक्षिका बरी
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की जस्टिस रजनी दुबे की एकलपीठ ने 17 वर्ष पुराने एट्रोसिटी एक्ट के प्रकरण में फैसला सुनाते हुए शिक्षिका अनीता सिंह ठाकुर को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बिना अपमानित करने की मंशा के जातिसूचक शब्द बोलने पर अपराध नहीं बनता। राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ की शिक्षिका अनीता सिंह विशेष अदालत से दोष सिद्ध होने के बाद अपील पर आई थी।

जेएनएन, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की जस्टिस रजनी दुबे की एकलपीठ ने 17 वर्ष पुराने एट्रोसिटी एक्ट के प्रकरण में फैसला सुनाते हुए शिक्षिका अनीता सिंह ठाकुर को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बिना अपमानित करने की मंशा के जातिसूचक शब्द बोलने पर अपराध नहीं बनता।
2008 को शिक्षिका पर लगाया गया था एस-एसटी एक्ट
राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ की शिक्षिका अनीता सिंह विशेष अदालत से दोष सिद्ध होने के बाद अपील पर आई थी। ट्रायल कोर्ट ने 11 अप्रैल 2008 को शिक्षिका को एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा 3(1) (एक्स) में छह माह की सजा और 500 रुपये जुर्माने से दंडित किया था।
मामले के अनुसार, 23 नवंबर, 2006 को प्राथमिक स्कूल पिपरिया में पदस्थ कार्यालय सहायक टीकमराम ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि शिक्षिका अनीता सिंह ने चाय पीने से मना करते हुए जातिसूचक शब्द कहे और अपमानित किया।
शिक्षिका ने उसे मोची कहा था
आरोप लगाया कि शिक्षिका ने उसे मोची कहते हुए उसके हाथ की चाय पीने से मना कर दिया था। पुलिस ने अपराध दर्ज कर विशेष न्यायालय (एट्रोसिटी) में चालान पेश किया। शिकायतकर्ता का जाति प्रमाणपत्र (एक अस्थायी प्रमाण पत्र) घटना के बाद चार दिसंबर 2006 को जारी हुआ था, जिसकी वैधता केवल छह माह थी।
शिक्षिका ने कभी भी नहीं किया भेदभाव
कोर्ट ने कहा कि यह प्रमाण पत्र विधिसम्मत नहीं है। गवाहों ने स्वीकार किया कि घटना से पहले शिक्षिका अक्सर उसी चपरासी के हाथ की बनी चाय पीती थीं और कभी भेदभाव नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि केवल जातिसूचक शब्द बोलना, यदि अपमान या नीचा दिखाने की मंशा साबित न हो, तो एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं बनता।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।