Guidelines on Medical Negligence: चिकित्सकीय लापरवाही को लेकर दिशा-निर्देश विचाराधीन: स्वास्थ्य मंत्रालय
केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की ओर से चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों के निर्धारण के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की लंबे समय से मांग की जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अब इस पर विचार कर रहा है। एक आरटीआई के जवाब में इसका खुलासा हुआ है।
नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की ओर से चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों के निर्धारण के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की लंबे समय से मांग की जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अब इस पर विचार कर रहा है। एक आरटीआई के जवाब में इसका खुलासा हुआ है।
'अब तक कोई दिशानिर्देश नहीं किए गए तैयार'
मंत्रालय ने समाचार एजेंसी PTI की ओर से सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में कहा कि फिलहाल कोई दिशानिर्देश नहीं है। यह मामला विचाराधीन है। मंत्रालय के चिकित्सा शिक्षा नीति खंड में अवर सचिव सुनील कुमार गुप्ता ने कहा, 'अब तक कोई दिशानिर्देश तैयार नहीं किया गया है। यह मामला विचाराधीन है।'
सुनील कुमार गुप्ता केंद्रीय जन सूचना अधिकारी भी हैं। उनसे समाचार एजेंसी पीटीआई ने सवाल किया था कि क्या केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में चिकित्सा लापरवाही के मामलों को संभालने के लिए कोई दिशानिर्देश तैयार किया है? इस पर उन्होंने लिखित में जवाब दिया।
17 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार 2005 में जैकब मैथ्यू मामले में केंद्र को तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा नियामक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के परामर्श से चिकित्सा लापरवाही के मामले वैधानिक नियम बनाने का निर्देश दिया था। यह डॉक्टरों और रोगियों दोनों को प्रभावित करता है। इस मामले में 17 साल से अधिक समय हो गया है। लेकिन, अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
दोषी डॉक्टरों के खिलाफ न्याय पाने के लिए रोगियों को दर-दर भटकना पड़ता है। वहीं, ओछे आरोप और दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही चिकित्सकों को परेशान करती है। कानूनी और चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, एक उचित वैधानिक ढांचा न केवल रोगियों के हितों की रक्षा करेगा, बल्कि डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामलों की भी जांच करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने दी थी यह काम चलाऊ व्यवस्था
स्टॉपगैप अरेंजमेंट यानी कामचलाऊ व्यवस्था के रूप में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशा-निर्देश तैयार किए थे। इसके अनुसार, जांच अधिकारी को जल्दबाजी या लापरवाही के कार्य या चूक के आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले एक स्वतंत्र और सक्षम चिकित्सा राय (मेडिकल ओपीनियन) लेनी चाहिए। राय अधिमानतः सरकारी सेवा में एक डॉक्टर से लेनी चाहिए, जो चिकित्सा पद्धति की उस शाखा में योग्य हो।
इससे दिशा-निर्देशों के अनुसार, सामान्य रूप से निष्पक्ष राय की उम्मीद की जा सकती है। मगर, 'दुर्भाग्य से इस निर्देश का पालन नहीं किया गया है। जांच अधिकारियों को पता नहीं है कि किससे संपर्क करना है। इसलिए वे राज्य चिकित्सा परिषदों के संपर्क में हैं।'
हितों में टकराव की वजह से बढ़ते हैं कोर्ट में मामले
चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों से निपटने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील अजय कुमार अग्रवाल ने कहा, 'इससे अदालतों में मामले सामने आते हैं। दरअसल, पीड़ित मरीजों को लगता है कि राज्य चिकित्सा परिषदों से राय लेना हितों का टकराव है।' चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी देरी पर खेद जताया और कहा कि यह सरकारों की ओर से उदासीनता दिखाता है।
एमसीआई ने भी की थी पहल
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग यानी एमसीआई ने 31 अक्टूबर 2017 को पहली बार एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सरकार को चिकित्सा के संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों के साथ मेडिकल बोर्ड गठित करने का प्रस्ताव दिया गया था। जब एनएमसी ने एमसीआई की जगह ली, तो इसने 29 सितंबर 2021 को फिर से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखा। इसमें संविधान, सदस्यों की शर्तें और जिला और राज्य स्तर पर ऐसे मेडिकल बोर्ड के कामकाज का सुझाव दिया गया था।