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    लीवर को बचाएगी यूनानी औषधि

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    Updated: Wed, 02 Jul 2014 12:25 PM (IST)

    अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अजमल खां तिब्बिया कॉलेज ने लीवर को जीवनदान देने वाली दवा खोज निकाली है। यह बीमारी तो भगाएगी ही, बेकार लीवर के हिस्से को भी री-जेनरेट करेगी। हेपेटाइटिस जैसे रोगों को भगाने में दवाई रामबाण साबित हुई है। इसका प्रयोग चूहों के साथ इंसानों पर भी हो चुका है।

    अलीगढ़ [संतोष शर्मा]। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अजमल खां तिब्बिया कॉलेज ने लीवर को जीवनदान देने वाली दवा खोज निकाली है। यह बीमारी तो भगाएगी ही, बेकार लीवर के हिस्से को भी री-जेनरेट करेगी। हेपेटाइटिस जैसे रोगों को भगाने में दवाई रामबाण साबित हुई है। इसका प्रयोग चूहों के साथ इंसानों पर भी हो चुका है। केंद्रीय आयुष विभाग से मिले एक प्रोजेक्ट के तहत हुए शोध के इन तमाम फायदों को जल्दी ही किताब की शक्ल मिलने वाली है।

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    कमाल की जड़ी-बूटी

    लीवर से जुड़ी हेपेटाइटिस सीरीज (ए,बी,सी व ई) जैसी बीमारियां मेडिकल साइंस को कड़ी चुनौती दे रही हैं। देसी औषधियों में शोध के लिए केंद्र सरकार के आयुष विभाग ने 2009 में एएमयू के तिब्बिया कॉलेज के प्रो. नईम अहमद खां को प्रोजेक्ट दिया था। प्रो. नईम ने यूनानी औषधियों के जरिये शोध के दौरान रेबन चीनी, केसर, जाफरान, मकोय, कासिमी, लुक, चिरायता, अफसनतीन आदि जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया। औषधि ने चूहों के न सिर्फ लीवर को ठीक किया, बल्कि खराब हिस्से को भी री-जेनरेट किया।

    प्रो. नईम का दावा है कि इस फार्मुलेशन से लीवर के खराब हिस्से को री-जेनरेट किया जा सकता है। इससे हेपेटाइटिस-बी का सफाया संभव है। हेपेटाइटिस के 20 मरीजों में से 17 इस दवा से पूरी तरह स्वस्थ भी हो चुके हैं। तीन मरीजों ने बीच में ही इलाज छोड़ दिया था।

    ऐसे करती है काम

    प्रो. नईम बताते हैं कि लीवर के बीमार पड़ने पर एंजाइम का स्त्राव गड़बड़ा जाता है। इस दौरान सीरम एसजी ओटी, सीरम एसजी पीटी, अल्कलाइन फास्फेट तो सामान्य होते हैं, जबकि सीरम लाइकोजेन गड़बड़ा जाता है। चूहों को यूनानी दवा देने पर लीवर एंजाइम का स्त्राव ठीक हो गया। फिर, लीवर ने भी ठीक से काम करना शुरू कर दिया।

    लीवर से होती हैं सर्वाधिक मौत

    देश में 25 से 30 हजार लोगों की मौत लीवर की बीमारियों के कारण होती है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिसीजेज (एनआइसीडी) की रिपोर्ट के अनुसार देश में एक लाख से ज्यादा मरीज हर साल वायरल हेपेटाइटिस की चपेट में आ रहे हैं। इनमें हेपेटाइटिस-ए के 16 प्रतिशत, हेपेटाइटिस-बी के 42 प्रतिशत और बाकी हेपेटाइटिस सी व ई के हैं। ये मरीज सिरोसिस व कैंसर के शिकार हो जाते हैं। वहीं, डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 40 करोड़ लोग हेपेटाइटिस-बी के वाहक हैं।

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