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    पिता को गांव में दफनाने में असमर्थ बेटे ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा, SC बोला- ‘बेटे को ऐसे देखकर दुख हुआ’

    Updated: Mon, 20 Jan 2025 03:32 PM (IST)

    छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति ने अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उसे यह देखकर दुख हुआ। SC ने कहा हम उच्च न्यायालय की टिप्पणी से हैरान हैं कि इससे कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा होगी।

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    पिता को गांव में दफनाने में असमर्थ बेटे ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

    पीटीआई, नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति ने अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे।

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    न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ रमेश बघेल नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उनके पिता, जो पादरी हैं, को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों को दफनाने के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाने की उनकी याचिका का निपटारा कर दिया गया था।

    पीठ ने कहा, किसी व्यक्ति को जो किसी विशेष गांव में रहता है, उसे उसी गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा है। यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या उच्च न्यायालय इस समस्या को हल करने में सक्षम थे। हम उच्च न्यायालय की टिप्पणी से हैरान हैं कि इससे कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति अपने पिता को दफनाने में असमर्थ है और उसे सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है।

    बघेल ने कहा कि गांव वालों ने शव को दफनाने पर "कड़ा विरोध" जताया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी।

    शुरुआत में राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि ईसाइयों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है और उस व्यक्ति को गांव से 20 किलोमीटर दूर किसी स्थान पर दफनाया जा सकता है।

    बघेल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य द्वारा प्रस्तुत हलफनामे से पता चलता है कि उनके परिवार के सदस्यों को भी गांव में दफनाया गया था। हलफनामे का हवाला देते हुए गोंजाल्विस ने कहा कि मृतक को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही है, क्योंकि वह ईसाई था।

    मेहता ने कहा कि बेटा आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए अपने पिता को अपने परिवार के पैतृक गांव की कब्रगाह में दफनाने पर अड़ा हुआ है।

    इस दलील का विरोध करते हुए, गोंसाल्विस ने कहा कि यह ईसाइयों को बाहर निकालने के आंदोलन की शुरुआत है।

    मेहता ने कहा कि इस मुद्दे पर भावनाओं के आधार पर फैसला नहीं किया जाना चाहिए और वह इस मामले पर विस्तार से बहस करने के लिए तैयार हैं।

    मेहता द्वारा समय मांगे जाने के बाद शीर्ष अदालत ने सुनवाई 22 जनवरी के लिए टाल दी।

    ग्राम पंचायत के सरपंच द्वारा जारी प्रमाण पत्र पर भरोसा करते हुए कि ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है, उच्च न्यायालय ने बेटे को दफनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और कहा कि इससे आम जनता में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है। पादरी की मृत्यु वृद्धावस्था के कारण हुई।

    बघेल के अनुसार, छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान था जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और दाह संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया था। कब्रिस्तान में आदिवासियों के दफनाने, हिंदू धर्म के लोगों के दफनाने या दाह संस्कार और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किए गए थे।

    ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में, याचिकाकर्ता की चाची और दादा को इस गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया था।

    याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य उस व्यक्ति का अंतिम संस्कार करना चाहते थे और कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में उसके पार्थिव शरीर को दफनाना चाहते थे।

    इसमें कहा गया है कि यह सुनकर कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया और धमकी दी कि यदि याचिकाकर्ता और उसके परिवार ने इस भूमि पर अपने पिता को दफनाया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। वे याचिकाकर्ता के परिवार को निजी स्वामित्व वाली भूमि पर पार्थिव शरीर को दफनाने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं।

    बघेल के अनुसार, ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में किसी ईसाई को दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या निजी स्वामित्व वाली जमीन।

    उन्होंने कहा, जब ग्रामीण हिंसक हो गए, तो याचिकाकर्ता के परिवार ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद 30-35 पुलिसकर्मी गांव पहुंचे। पुलिस ने परिवार पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव भी डाला।

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