जागरण प्राइम टीम, नई दिल्ली। हाल के आर्थिक संकट में भारत मजबूत बनकर उभरा है तो उसके कई कारण है। एक तो भारत के पास विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार है, सरकार की तरफ से चलाई गई सब्सिडी योजनाओं से लोगों को मदद मिली, ईंधन की नियंत्रित कीमत का भी फायदा मिला। यह कहना है भारत में संयुक्त राष्ट्र के अर्थशास्त्री क्रिस्टोफर गैरोवे का। उन्होंने कहा कि भारत की खाद्य सुरक्षा तथा अन्य सामाजिक सुरक्षाओं से अन्य देश सीख ले सकते हैं। क्रिस्टोफर ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की सालाना रिपोर्ट ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रोस्पेक्ट्स 2023’ जारी करने के बाद विशेष चर्चा में यह बात कही। उन्होंने कहा कि आने वाले बजट में भारत को सस्टेनेबिलिटी पर ध्यान देना चाहिए।

भारत में संयुक्त राष्ट्र के अर्थशास्त्री क्रिस्टोफर गैरोवे।

भारत सबसे तेज विकास दर वाला देश बना रहेगा

रिपोर्ट के अनुसार 2023 में भी भारत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज विकास दर वाला बना रहेगा। इस वर्ष भारत की विकास दर 2022 के 6.4% की तुलना में 5.8% रहने की संभावना है। ऊंची ब्याज दर और विश्व अर्थव्यवस्था में सुस्ती से भारत में भी निवेश और निर्यात प्रभावित होगा।

2023 में समूचे विश्व की विकास दर 1.9% रहने की संभावना है। यह हाल के दशकों में सबसे कम होगी। 2022 में ग्लोबल ग्रोथ रेट 3% रहने का अनुमान है। इस वर्ष विकास दर में गिरावट विकसित और विकासशील सभी देशों में रहेगी। यूएन के अनुसार कुछ देशों को हल्की मंदी का भी सामना करना पड़ सकता है।

सिर्फ 0.4% रहेगी अमेरिका की विकास दर

अमेरिका की ग्रोथ रेट 2023 में सिर्फ 0.4% रहने के आसार हैं, 2022 में उसकी जीडीपी 1.8% बढ़ने की संभावना है। यूरोप के अनेक देशों में मंदी की आशंका है। यूरोपियन यूनियन की विकास दर 2022 के 3.3% की तुलना में इस वर्ष सिर्फ 0.2% रहने के आसार हैं। ऊंची ब्याज दर और वास्तविक आय में गिरावट के कारण उपभोक्ता खर्च भी घटने की आशंका है।

जीरो कोविड पॉलिसी खत्म करने तथा मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों में बदलाव के बाद चीन में विकास की गति बढ़ने की संभावना है। यह 2022 के 3% के मुकाबले इस वर्ष 4.8% रहेगी। जहां तक एशिया की बात है तो खाद्य और ऊर्जा की अधिक कीमत तथा सख्त मौद्रिक नीति के कारण दक्षिण एशियाई देशों में आर्थिक हालात कमजोर हुए हैं। इस क्षेत्र की विकास दर 2022 के 5.6% के मुकाबले इस वर्ष 4.8% रहने की संभावना है। पूर्वी एशिया की विकास दर 3.2% की तुलना में 4.4% और पश्चिम एशिया की 6.4% की तुलना में 3.5% रहने की संभावना है।

85% देशों ने ब्याज दरें बढ़ाईं

2022 में औसत वैश्विक महंगाई 9% पर पहुंच गई जो दो दशक में सबसे ज्यादा है। कीमतों का यह दबाव आने वाले दिनों में कम होगा, लेकिन इसकी वजह कम मांग होगी। हालांकि महंगाई का स्तर 2023 में 6.5 फीसदी के आसपास रहने के आसार हैं। केंद्रीय बैंकों ने 2022 में काफी तेजी से ब्याज दरें बढ़ाईं। करीब 85 फ़ीसदी देशों के केंद्रीय बैंकों ने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों में इजाफा किया।

वैश्विक वित्तीय परिस्थितियां विपरीत होने के चलते अनेक देशों के सामने भुगतान संतुलन और कर्ज लौटाने की समस्या आ गई है। डॉलर महंगा होने से देशों को कर्ज पर ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ रहा है। इससे सस्टेनेबल डेवलपमेंट में निवेश करने के लिए सरकारों के पास कम रकम पैसा बच रहा है।

2019 की तुलना में दोगुने हो गए गरीब

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि महामारी का असर अभी पूरी दुनिया में दिख रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध एक नया संकट बन कर उभरा है। इससे खाद्य एवं ऊर्जा बाजार पर असर पड़ा है और खाद्य असुरक्षा बढ़ी है। महंगाई अधिक होने से लोगों की वास्तविक आय घट गई और जीवन-यापन का खर्च बढ़ गया है, जिससे करोड़ों लोग गरीब हो गए। जलवायु संकट भी अपना असर लगातार दिखा रहा है और इससे बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान हो रहे हैं।

2022 में गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे लोगों की संख्या 35 करोड़ के आसपास पहुंच गई। 2019 की तुलना में यह संख्या दोगुनी है। बिगड़ते वैश्विक हालात और आर्थिक परिस्थितियों में विकासशील देश ज्यादा प्रभावित होंगे। लगातार कमजोर आर्थिक परिस्थितियों और विकास दर में गिरावट से गरीबी दूर करने के प्रयासों में कमी आएगी। स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटल, इन्फ्रास्ट्रक्चर आदि पर निवेश भी कम होगा।

खाद्य असुरक्षा से प्रभावित लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देश ज्यादा प्रभावित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की मध्यस्थता के बाद ब्लैक सी ग्रेन इनीशिएटिव से कुछ राहत मिली और यूक्रेन से अन्य देशों को खाद्य निर्यात शुरू हुआ, लेकिन युद्ध जारी रहने के कारण 2023 में खाद्य आपूर्ति की चुनौतियां बने रहने के आसार हैं।

नीति पर संयुक्त राष्ट्र के सुझाव

मौजूदा हालात में विभिन्न देशों को किस तरह की आर्थिक नीतियां अपनानी चाहिए, संयुक्त राष्ट्र ने इस बारे में सुझाव भी दिए हैं। उसने कहा है कि यह समय सार्वजनिक खर्च घटाने का नहीं है। ऐसा करने पर महिलाएं, बच्चे तथा कमजोर वर्ग के लोग सबसे अधिक प्रभावित होंगे। सार्वजनिक खर्च घटने पर अक्सर पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए चलने वाले कार्यक्रम अधिक बंद किए जाते हैं। इससे महिलाओं की आमदनी प्रभावित होती है। उनका स्वास्थ्य और उनकी शिक्षा पर भी असर पड़ता है।

समय से पहले खर्च घटाने की नीति अपनाने से विकास प्रभावित होगा और रिकवरी में लंबा समय लग सकता है। नीतियों में गलती होने पर आर्थिक सुस्ती बढ़ने की आशंका रहेगी। सरकारों को अपना खर्च उन क्षेत्रों में बढ़ाना चाहिए जिनका प्रभाव अन्य कई क्षेत्रों में हो सकता है। ऐसा करते समय भी कमजोर वर्ग को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए। अल्पावधि में मांग बढ़ाने के उपायों की जरूरत है। सार्वजनिक निवेश से पूंजी निर्माण किया जा सकता है, उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है, विकास की संभावनाएं बढ़ सकती हैं तथा कर्ज लौटाना आसान हो सकता है।

यूएन का सुझाव है कि सार्वजनिक खर्च बढ़ना चाहिए, लेकिन साथ ही खर्च फोकस्ड हो। इससे महंगाई भी नहीं बढ़ेगी। इसके लिए उसने कहा है कि सामाजिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार किया जाए, सप्लाई की दिक्कतें दूर की जाएं और रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं। सार्वजनिक निवेश, निजी क्षेत्र के निवेश को भी आकर्षित करने का काम करेगा। इससे भी ग्रोथ रेट बढ़ेगी।