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    बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन का मुद्दा पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दो एक्टिविस्टों ने दायर की याचिका; 10 जुलाई को होगी सुनवाई

    Updated: Wed, 09 Jul 2025 02:44 PM (IST)

    याचिका दायर करने के पीछे एक्टिविस्टों ने तर्क दिया किया कि यह प्रक्रिया जन्म निवास और नागरिकता से संबंधित मनमानी अनुचित और असंगत दस्तावेजीकरण जरूरतों को लागू करके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के साथ-साथ प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों को कमजोर करती है। इन लोगों ने आगे कहा कि यह प्रक्रिया गरीबों प्रवासियों महिलाओं और हाशिए पर पड़े समूहों पर असमान रूप से बोझ डालती है।

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    बिहार मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा SC पहुंचा।

    पीटीआई, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के वोटर लिस्ट रिवीजन के फैसले का मुद्दा गरमाता ही जा रहा है। अब इस फैसले को चुनौती दी गई है। दो एक्टिविस्टों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए एक याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई करने के लिए अदालत तैयार हो गई है।

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    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने 10 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की है। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने मामले की तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था। अधिवक्ता ने कहा कि अरशद अजमल और रूपेश कुमार की ओर से दायर याचिका में राज्य में मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी गई है। इसे अन्य मामलों के साथ सूचीबद्ध करने का आग्रह किया गया है।

    एक्टिविस्टों ने क्या दिया तर्क?

    याचिका दायर करने के पीछे एक्टिविस्टों ने तर्क दिया किया कि यह प्रक्रिया जन्म, निवास और नागरिकता से संबंधित मनमानी, अनुचित और असंगत दस्तावेजीकरण जरूरतों को लागू करके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के साथ-साथ प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों को कमजोर करती है। इन लोगों ने आगे कहा कि यह प्रक्रिया गरीबों, प्रवासियों, महिलाओं और हाशिए पर पड़े समूहों पर असमान रूप से बोझ डालती है, जिनके लिए वोट राजनीतिक जवाबदेही का महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है।

    एसआईआर को रद्द करने की मांग

    याचिका में कहा गया है कि इस तरह के बहिष्कार के उपायों में कानूनी आधार का अभाव है और इससे मतदाताओं के बड़े वर्ग के मताधिकार से वंचित होने का खतरा है। इसके साथ ही याचिका में बिहार में चल रही एसआईआर प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की गई है। चुनाव आयोग के 24 जून, 2025 के आदेश को असंवैधानिक बताया गया है।

    7 जुलाई को शीर्ष अदालत ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमति जताई थी।

    सुप्रीम कोर्ट में कई और याचिकाएं भी की गई दायर

    बिहार में चुनाव से पहले एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी, झामुमो, सीपीआई और सीपीआई (एमएल) के नेताओं की संयुक्त याचिका सहित कई नई याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर की गईं।

    आरजेडी सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की अलग-अलग याचिकाओं के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार एनसीपी गुट से सुप्रिया सुले, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

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